केंद्र सरकार श्रम संहिताओं के तहत नियमों को अंतिम रूप दे रहा है. दस केंद्रीय मज़दूर संगठनों की संयुक्त मंच द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि सभी चार संहिताओं को रोक दिया जाना चाहिए और फिर इन श्रम संहिताओं पर केंद्रीय मज़दूर संगठनों के साथ सच्ची भावना से द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय बातचीत होनी चाहिए.
नई दिल्ली: देश के 10 मजदूर संगठनों के संयुक्त मंच ने बुधवार को सरकार ने चार श्रम संहिताओं के क्रियान्वयन पर रोक लगाने और इस पर फिर से चर्चा करने की मांग की.
दस केंद्रीय मजदूर संगठनों- इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक), ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी), हिंद मजदूर सभा (एचएमएस), सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू), इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एआईयूटीयूसी), ट्रेड यूनियन को-ऑर्डिनेशन सेंटर (टीयूसीसी), सेल्फ-एम्प्लॉइड वुमेन्स एसोसिएशन (सेवा), ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (एआईसीसीटीयू), लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन (एलपीएफ) और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (यूटीयूसी) के संयुक्त मंच द्वारा जारी बयान में यह मांग की गई.
इस मंच के साथ कुछ स्वतंत्र संगठन भी जुड़े हैं.
बयान में कहा गया, ‘केंद्रीय मजदूर संगठनों की मांग है कि सभी चार संहिताओं को रोक दिया जाना चाहिए और फिर इन श्रम संहिताओं पर केंद्रीय मजदूर संगठनों के साथ सच्ची भावना से द्विपक्षीय और त्रिपक्षीय बातचीत होनी चाहिए.’
मंच ने श्रम मंत्री संतोष गंगवार को लिखे पत्र में पिछले पांच वर्षों से भारतीय श्रम सम्मेलन का आयोजन नहीं करने का भी विरोध किया.
श्रम मंत्रालय इन नए कानूनों को लागू करने के लिए श्रम संहिताओं के तहत नियमों को अंतिम रूप दे रहा है.
मंत्रालय ने बुधवार को सामाजिक सुरक्षा और व्यवसायों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी परिस्थितियों पर चर्चा के लिए मजदूर संगठनों और अन्य हितधारकों की बैठक बुलाई थी.
मंत्रालय इस महीने के अंत तक श्रम संहिताओं के तहत नियमों को अंतिम रूप देना चाहता है, ताकि इन कानूनों को लागू किया जा सके.
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने सरकार के श्रम संहिताओं के नियमों को अंतिम रूप देने के कदम को खारिज कर दिया है, जो केंद्रीय ट्रेड यूनियनों या संसद में विपक्ष के सदस्यों की अनुपस्थिति में बिना किसी चर्चा के पारित किए गए थे.
बयान में कहा गया है, ‘कुछ सांसदों ने सरकार को लिखित रूप में यहां तक कहा था कि श्रम संहिता को जल्दबाजी में नहीं रखा जाना चाहिए और ट्रेड यूनियनों के साथ और संसद के अंदर भी इस तरह के महत्वपूर्ण मामले पर गंभीर चर्चा की आवश्यकता है.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन सरकार संसदीय मानदंडों की धज्जियां उड़ाते हुए आगे बढ़ी और अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं और आईएलओ कन्वेंशनों के उल्लंघन में त्रिपक्षीय परामर्श को दरकिनार करते हुए इन्हें पारित कर दिया.’
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने पहले ही सरकार द्वारा 40 श्रम कानूनों के साथ छेड़छाड़ करने और इन चार कानूनों को लाने के मनमाने फैसले का विरोध किया है.
यूनियनों ने बैठक में मंत्रालय को बताया कि तीन स्थायी श्रम संहिता पर संसद की स्थायी समिति द्वारा दी गईं सिफारिशों को भी सरकार ने खारिज कर दिया.
बता दें कि बीते साल मानसून सत्र में मोदी सरकार द्वारा श्रम सुधार के नाम पर लाए गए तीन विधेयकों- औद्योगिक संबंध संहिता बिल 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता बिल 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता बिल 2020– को संसद ने पारित कर दिया था.
मोदी सरकार द्वारा लाए गए नए श्रम कानूनों में जहां एक ओर सामाजिक सुरक्षा के दायरे में ऐसे विभिन्न कामगारों को लाया गया है, जो अब तक इसमें नहीं थे, वहीं दूसरी ओर हड़ताल के नियम कड़े किए गए हैं. साथ ही नियोक्ता को बिना सरकारी मंजूरी के कामगारों को नौकरी देने और छंटनी के लिए अधिक छूट दी गई है.
वहीं, श्रम सुधारों से जुड़ा पहला कानून ‘मजदूरी संहिता’ के लिए नियमों का मसौदा पिछले साल जुलाई में जारी किया था.
मजदूरी संहिता विधेयक, 2019 में मजदूरी, बोनस और उससे संबंधित मामलों से जुड़े कानून को संशोधित और एकीकृत किया गया है. राज्यसभा ने इसे दो अगस्त 2019 और लोकसभा ने 30 जुलाई, 2019 को पारित कर दिया था.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)