कोविड-19 लॉकडाउन के कारण प्रभावित हुए रेहड़ी-पटरी वाले विक्रेताओं को उनकी आजीविका फिर शुरू करने के लिए सस्ते कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री स्वनिधि की शुरुआत की गई थी. अब कुछ बैंकों ने स्थानीय प्रशासन को पत्र लिखकर लोन वसूलने में मदद करने को कहा है.
नई दिल्ली: कोरोना महामारी के चलते रेहड़ी-पटरी वालों के लिए लाई गई योजना पीएम स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) के तहत दिए गए लोन अब एनपीए में तब्दील हो रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ बैंकों ने स्थानीय प्रशासन को पत्र लिखकर लोन वसूलने में मदद करने को कहा है.
प्रधानमंत्री स्वनिधि की शुरुआत रेहड़ी-पटरी वालों को सस्ती कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान करने के लिए की गई थी, ताकि वे अपनी आजीविका फिर से शुरू कर सकें जो कोविड-19 लॉकडाउन के कारण प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई.
इस योजना के तहत विक्रेता 10,000 रुपये तक के कार्यशील पूंजी ऋण का लाभ उठा सकते हैं जो एक वर्ष के कार्यकाल में मासिक किस्तों में चुकाया जा सकता है.
ऋण की समय पर या जल्दी अदायगी करने पर, तिमाही आधार पर डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिये लाभार्थियों के बैंक खातों में प्रति वर्ष 7 प्रतिशत की ब्याज सब्सिडी जमा की जाएगी. ऋण की जल्दी अदायगी करने पर कोई जुर्माना नहीं होगा. यह योजना प्रति माह 100 रूपये कैश-बैक प्रोत्साहन के माध्यम से डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देगी.
हालांकि अब बैंकों का कहना है कि ऋण से छूट प्रदान करने के बावजूद कुछ अकाउंट एनपीए में तब्दील हो रहे हैं.
मध्य प्रदेश में बुरहानपुर के नगर आयुक्त को भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य प्रबंधक द्वारा हाल ही में लिखे गए पत्र में इसे लेकर आगाह किया गया है.
अपने पत्र में एसबीआई अधिकारी ने कहा है कि बैंक ने नगर निगम बुरहानपुर की सिफारिश पर शहरी रेहड़ी विक्रेताओं को 160 से अधिक पीएम स्वनिधि ऋण मंजूर किए थे. लेकिन इसमें से अधिकतर लोगों ने एक भी किस्त जमा नहीं की है.
उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत कोई कौलेटरल देने का प्रावधान नहीं है, इसलिए एनपीए की स्थिति में बैंकों का कोई सहारा नहीं है.
मालूम हो कि यदि समयसीमा पूरी होने के 90 दिन बाद तक ब्याज नहीं दिया जाता है तो बैंक उसे एनपीए की श्रेणी में डाल देते हैं.
भारतीय स्टेट बैंक के प्रवक्ता ने कहा कि दिशानिर्देशों के अनुसार ऋण लेने वालों की पहचान और उनके सत्यापन की जिम्मेदारी शहरी स्थानीय निकाय और टाउन वेंडिंग कमेटी की होती है. बैंक इन निकायों को इसलिए शामिल करते हैं ताकि समय पर वसूली सुनिश्चित की जा सके.
इसी तरह इंदौर नगरपालिका आयुक्त ने शहर में निजी बैंकों को पत्र लिखकर कहा कि इंदौर को 44,874 स्ट्रीट वेंडरों को ऋण देने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब तक (20 दिसंबर के आसपास) केवल 13,000 लोगों को ही इसका लाभ मिला है.
उन्होंने कहा कि उच्च स्तरीय समिति की बैठक में इस पर चिंता जाहिर की गई थी. आयुक्त ने 28 दिसंबर 2020 को लिखे पत्र में कहा कि यहां के सभी बैंकों को ये लक्ष्य दिया गया था कि 50 रेहड़ी-पटरी वालों को 10,000 रुपये का लोन दें.
रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय प्रशासन बैंकों पर दबाव डाल रहा है कि वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को योजना के तहत ऋण जारी करें.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस योजना के तहत बैंकों ने दिसंबर तक 1783.17 करोड़ रुपये के कुल 17.93 लाख ऋण आवेदनों को मंजूरी दी है. जिसमें से 13.27 लाख लोगों को 1306.76 करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया गया है.
सबसे ज्यादा लोन एसबीआई ने जारी किया है और सबसे ज्यादा लोन फल और सब्जी विक्रेताओं को मिला है.