राजस्थान: सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने रेत खनन में बंदरबाट पर लगाई फटकार, सरकार पर सवाल उठाए

सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 में इसके द्वारा नियुक्त सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी को निर्देश दिया था कि वे राज्य में रेत खनन से संबंधित आरोपों पर विचार कर इसे रोकने के लिए एक रिपोर्ट पेश करें. रिपोर्ट में कमेटी ने राज्य सरकार के साथ पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की भी आलोचना की है.

सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2020 में इसके द्वारा नियुक्त सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी को निर्देश दिया था कि वे राज्य में रेत खनन से संबंधित आरोपों पर विचार कर इसे रोकने के लिए एक रिपोर्ट पेश करें. रिपोर्ट में कमेटी ने राज्य सरकार के साथ पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की भी आलोचना की है.

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(प्रतीकात्मक तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: राजस्थान सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) ने कहा है कि राज्य सरकार ने बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों की बंदरबाट में अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका निभाई है.

रेत खनन की निगरानी के लिए बनाई गई समिति ने राज्य सरकार द्वारा पर्यावरणीय मंजूरी दिए जाने पर सवाल उठाया है. कोर्ट ने पिछले साल फरवरी में सीईसी को निर्देश दिया था कि वे रेत खनन से संबंधित आरोपों पर विचार कर इसे रोकने के लिए एक रिपोर्ट पेश करें.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इसे लेकर समिति द्वारा सौंपे गए रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सीईसी को यह निष्कर्ष निकालने में कोई संकोच नहीं है कि खातेदारी (कृषि/राजस्व) भूमि में खनन पट्टों के मुद्दे ने राज्य में नदी के तल से अवैध रूप से निकाले गए रेत की बिक्री एवं परिवहन को वैध कर दिया है.’

इसमें राजस्थान माइनर मिनरल कंसेशन रूल्स में संशोधन पर सवाल उठाया गया है, जिसमें प्रावधान किया गया है कि केवल सरकार या सरकार द्वारा समर्थित कार्यों के लिए खातेदारी भूमि में खनन के लिए अल्पकालिक परमिट दी जा सकती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की परमिट का दुरूपयोग किया गया और गैर कानूनी रेत खनन किया गया. इसमें कहा गया है कि इस तरह की 194 खनन परमिट में से 192 को मंजूरी नवंबर 2017 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिया गया, जिसमें कहा गया था कि वैज्ञानिक अध्ययन और पर्यावरणीय मंजूरी देने तक नदी में रेत खनन पर रोक लगाई जाए.

रिपोर्ट में कहा गया, ‘194 खातेदारी लीज कृषि/राजस्व भूमि है, जिसमें ऐसे रेत नहीं है जो निर्माण के लिए योग्य हो. यह महज इत्तेफाक नहीं है कि कृषि भूमि पर दी गई खातेदारी लीज नदी से सटी हुई है.’

उन्होंने कहा कि 114 खातेदारी लीज नदी के 100 मीटर या इससे कम दूरी के दायरे में है. इसके चलते लीज लेने वालों को लाभ मिला, जिन्होंने गैर कानूनी ढंग से नदी से रेत खनन किया.

इसके अलावा पर्यावरणीय मंजूरी देने में देरी के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की भी आलोचना की गई है. उन्होंने कहा कि कानूनी खनन की मंजूरी देने में देरी के चलते नदी में रेत का गैरकानूनी खनन किया गया.

रिपोर्ट में कहा गया कि रेत खनन पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले 2016-17 में राजस्थान में रेत का खनन 57 एमएमटी था, जो 2019-20 में घटकर पांच एमएमटी हो गया.

सीईसी ने कहा, ‘राज्य सरकार के मुताबिक कानूनी खनन से सिर्फ 25-30 फीसदी की मांग पूरी हो पाती है. इसी अंतर के चलते गैर कानूनी रेत खनन तेजी से बढ़ रहा है.’

राजस्थान पुलिस ने सीईसी को बताया कि एक जनवरी, 2019 से 20 सितंबर, 2020 के बीच अवैध रेत खनन के संबंध में 4,417 एफआईआर दर्ज की गईं, जिसमें 5,044 गिरफ्तार किए गए, और 1,58,637 टन रेत जब्त की गई.

आंकड़ों से पता चलता है कि इस अवधि में रेत माफियाओं द्वारा 109 लोक सेवकों पर हमला किया गया, जिसके परिणामस्वरूप दो की मौत हो गई, जबकि नागरिकों पर हमले में 10 घायल हो गए और तीन की मौत हो गई.

इसे लेकर सीईसी ने सिफारिश की है कि नदी के पांच किलोमीटर के भीतर स्थित सभी खातेदारी लीज को खारिज किया जाना चाहिए.

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