गणतंत्र दिवस परेड में केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख की पहली झांकी दिखाए जाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. कारगिल के नेताओं ने मांग की है कि या तो इस झांकी को वापस लिया जाए या फिर प्रशासन इसमें संशोधन करे. उन्होंने कहा कि इस झांकी में सिर्फ़ बौद्ध बहुल लेह के प्रतीकों को शामिल किया गया है.
श्रीनगर: गणतंत्र दिवस परेड में केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख की पहली झांकी दिखाए जाने को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. प्रदेश में कारगिल जिले के नेताओं ने स्थानीय प्रशासन पर ‘पक्षपात करने’ और ‘झांकी में उनके धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहरों’ को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है.
केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया था, जिसमें से एक लद्दाख है. यह 31 अक्टूबर 2019 को अस्तित्व में आया था. लद्दाख में बौद्धबहुल लेह जिला और मुस्लिम बहुल कारगिल जिला शामिल है.
कारगिल में नाराजगी
कारगिल जिले के नेतृत्व ने आरोप लगाया है कि प्रशासन ने झांकी में उनके क्षेत्र की धार्मिक एवं सांस्कृतिक प्रतीकों को नजरअंदाज किया है.
नेताओं ने शिकायत करते हुए कहा कि उन्हें इस बात से समस्या नहीं है कि बौद्ध बहुल लेह जिला के धरोहरों को दर्शाया गया है, बल्कि उन्हें इस बात की तकलीफ है कि कारगिल के प्रतीतों को नजरअंदाज किया गया है.
जिले के एक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता सज्जाद कारगिली ने द वायर को बताया, ‘झांकी पक्षपातपूर्ण है और सिर्फ एक विशेष पहचान को दर्शाता है. झांकी में जो दिखाया गया है, उससे हमें कोई समस्या नहीं है, बल्कि जो नहीं दिखाया गया है उसे लेकर हमें समस्या है.’
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन ने जान-बूझकर ऐसा किया है ताकि कारगिल की पहचान को मिटाया जा सके. कारगिली ने कहा कि या तो ये झांकी हटाई जाए या फिर इसमें बदलाव किया जाए.
लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (एलएएचडीसी) के मुख्य कार्यकारी काउंसलर फिरोज अहमद खान ने लद्दाख के उप-राज्यपाल आरके माथुर को पत्र लिखकर जिले की धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत की अनदेखी पर अपनी पीड़ा व्यक्त की है. उन्होंने कहा कि गणतंत्र दिवस जैसे प्रमुख दिन ऐसा करना कारगिल के लोगों को अलग-थलग करना है.
खान अपने पत्र के जरिये सरकार के गुजारिश की कि झांकी में कारगिल जिले के धरोहरों को भी शामिल किया जाए.
लद्दाख की झांकी
लद्दाख की झांकी में तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय से जुड़े थिकसे मठ को प्रमुखता से दिखाया गया है. यह लेह जिले के थिकसे में एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है. मठ की वास्तुकला तिब्बत के ल्हासा में दलाई लामाओं की पूर्व आधिकारिक सीट पोटाला पैलेस से मिलती जुलती है.
इस झांकी में सौर ऊर्जा समेत अन्य तरीकों से लद्दाख को ‘कार्बन न्यूट्रल’ बनाने के विजन को भी दर्शाया गया है.
द वायर के पास उपलब्ध दस्तावेजों से पता चलता है कि अगस्त 2020 में उप-राज्यपाल के सलाहकार उमंग नरूला की अध्यक्षता में झांकी कमेटी ने अपनी बैठक में निर्णय लिया था कि वर्ष 2021 की झांकी का थीम ‘यूटी लद्दाख-भविष्य का विजन’ होगा.
द वायर ने संस्कृति विभाग के प्रशासनिक सचिव रिगज़िन सम्पेल से इस संबंध में कई बार संपर्क किया, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं मिला. सरकार की ओर से प्रतिक्रिया आने पर उसे इस स्टोरी में शामिल कर लिया जाएगा.
पुराना विवाद
राजनीतिक एवं प्रशासनिक मामलों को लेकर लेह और कारगिल जिला हमेशा एक दूसरे के आमने-सामने रहे हैं. साल 1979 में कारगिल जिला बना था.
फरवरी 2019 में तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक के नेतृत्व वाले प्रशासन ने लद्दाख को संभाग (डिविजन) का दर्जा दिया था और इसका मुख्यालय लेह में बनाया गया.
इस कदम के चलते कारगिल में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, जिसके बाद सरकार को कारगिल और लेह दोनों को संयुक्त मुख्यालय बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा था. सरकार ने फैसला किया कि छह-छह महीने के लिए लेह और कारगिल दोनों बारी-बारी से मुख्यालय रहेंगे.
लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने को लेकर भी कारगिल ने विरोध किया था और यह जम्मू कश्मीर के एकीकरण का समर्थन करता है. वहीं लेह पहले से ही जम्मू कश्मीर से अलग किए जाने की मांग कर करता आ रहा था और कश्मीर को दो भागों में बांटने पर यहां खुशियां मनाई गई थीं.
दोनों जिलों में अलग-अलग स्थानीय स्वशासी निकाय हैं, जिन्हें स्वायत्त पहाड़ी परिषद कहा जाता है और इसमें 30 सदस्य होते हैं.
लेह जिले के पहाड़ी परिषद का गठन 1995 में किया गया था, जब तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य तत्कालीन राष्ट्रपति शासन के अधीन था. साल 2003 में मुफ्ती मुहम्मद सईद के नेतृत्व वाली पीडीपी-कांग्रेस सरकार ने कारगिल जिले के लिए एक पहाड़ी परिषद की स्थापना की.
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