सोशल मीडिया पर कुछ लोगों का यह दावा है कि गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल क़िले पर पहुंचे प्रदर्शनकारियों ने खालिस्तान का झंडा फहरा दिया था, हालांकि फैक्ट चेक में ग़लत पाया गया है.
नई दिल्ली: मंगलवार को गणतंत्र दिवस के मौके पर कृषि कानूनों के खिलाफ बीते दो महीने से प्रदर्शन कर रहे किसानों ने ट्रैक्टर परेड निकालने की योजना बनाई थी और इसके लिए दिल्ली पुलिस की तरफ से उन्हें गाजीपुर, सिंघु और टिकरी बॉर्डर से एक सर्कुलर रूट मैप दिया गया था.
यह भी तय हुआ था कि प्रदर्शनकारी दिल्ली में प्रवेश तो करेंगे लेकिन सीमाओं के पास के इलाकों में ही रहेंगे. हालांकि जब मंगलवार को परेड निकली तब ऐसा नहीं हुआ और एक प्रदर्शनकारी समूह पुलिस के लाठीचार्ज और आंसू गैस का सामना करता हुआ आईटीओ होते हुए लाल किले तक पहुंच गया.
इस ऐतिहासिक स्मारक के गुंबद पर चढ़कर कुछ प्रदर्शनकारियों ने झंडा लगाया, साथ ही जिस जगह पर स्वतंत्रता दिवस पर झंडा लहराया जाता है, उस ध्वज स्तंभ पर भी एक झंडा लगा दिया गया.
इसके बाद सोशल मीडिया समेत विभिन्न जगहों पर दो दावे किए जा रहे हैं कि –
1.) प्रदर्शनकारियों ने यहां तिरंगा उतारा
2.) साथ ही तिरंगे उतारकर खालिस्तान का झंडा लगाया
Terror apologists are now justifying the act of war at the Red Fort. Saying, it’s not Khalistani flag but Nishan Sahib. Sure but the Red Fort is no Gurudwara.
What point are these farmers trying to make by replacing the tricolour with their religious flag? War against the state?
— Sonam Mahajan (@AsYouNotWish) January 26, 2021
सवाल किया गया कि क्यों प्रदर्शनकारियों ने तिरंगे को धार्मिक झंडे से बदला?
टाइम्स नाउ के एडिटर इन चीफ राहुल शिवशंकर ने भी दावा किया कि तिरंगे को हटाया गया, लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि जो झंडा लहराया गया वो किसान यूनियन या धार्मिक पंथ का हो.
Disquieting assault on our most visible national symbol. That too on #RepublicDay. Our Tricolour replaced at iconic flagpole at #RedFort. Was this protest always about undermining our State? | #RDaySpiritShamed pic.twitter.com/Bfp1psRsAJ
— Rahul Shivshankar (@RShivshankar) January 26, 2021
हालांकि इस बीच सोशल मीडिया पर यह दावा लगातार किया गया कि इस ध्वज स्तंभ पर खालिस्तानी झंडा लगाया गया था. जिन लोगों ने यह दावा किया उनमें दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता हरीश खुराना, भाजपा संसदीय सचिव वरुण गांधी, इशिता यादव, भाजपा समर्थक दिव्य कुमार सोती, विक्रांत कुमार, सुमित कड़ेल, सुमीत ठक्कर, अनुराग दीक्षित और शेफाली वैद्य शामिल हैं.
इसके बाद दक्षिणपंथी वेबसाइट ऑप इंडिया ने एक लेख में लिखा कि प्रदर्शनकारियों ने लालकिले पर खालिस्तानी झंडा फहराया.
कई अन्य भाजपा समर्थक हैंडल @NindaTurtles, @ExSecular and @IamMayank_ द्वारा भी ऐसे ही दावे किए गए.
क्या है सच
ऑल्ट न्यूज़ के फैक्ट-चेक द्वारा इसे दो हिस्सों में बांटा गया है-
1. भारतीय झंडे को उतारा नहीं गया था
प्रदर्शनकारियों ने खाली ध्वज स्तंभ पर झंडा लगाया था. न ही उन्होंने तिरंगे को उतारा, न ही उस पर खालिस्तानी झंडा लगाया. इस बात की पुष्टि कई वीडियो करते हैं.
नीचे दिए गए वीडियो में देखा जा सकता है कि जब एक प्रदर्शनकारी खाली ध्वज स्तंभ पर चढ़ रहा है, तब लाहौर गेट (लाल किले के प्रवेश द्वार पर तिरंगा लहरा रहा है.
#WATCH A protestor hoists a flag from the ramparts of the Red Fort in Delhi#FarmLaws #RepublicDay pic.twitter.com/Mn6oeGLrxJ
— ANI (@ANI) January 26, 2021
भारतीय झंडे को कई तस्वीरों में देखा जा सकता है. किले के गुंबदों पर भी झंडे लगाए गए थे.
2. प्रदर्शनकारियों द्वारा लगाया गया झंडा खालिस्तान का नहीं
प्रदर्शनकारियों द्वारा लगाया गया झंडा निशान साहिब कहलाता है, जो सिखों का धार्मिक झंडा है.
लेखक अमनदीप संधू ने बताया, ‘पीला हो या केसरिया, दो खंदों (तलवारों) के निशान वाला त्रिकोणीय झंडा सिख झंडा होता है, खालिस्तान का नहीं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘जब सत्ता परिवर्तन के प्रतीक के लिए कोई झंडा लहराया जाता है तब पिछले झंडे को उतारते हुए नया झंडा लगाया जाता है. लेकिन यहां भारत का झंडा उसी तरह लगा रहा जैसे वो लगा था. इसे किसी ने छुआ भी नहीं. सिख झंडा लगाने का अर्थ है कि देश के लोग अपनी यह पहचान भी जाहिर करना चाहते हैं. वे चाहते हैं कि उन्हें भी साथ गिना जाए. वे नहीं चाहते कि सत्तानशीं उन्हें हल्के में लें.’
पत्रकार हरतोष सिंह बल ने भी ट्विटर पर बताया कि प्रदर्शनकारियों वाले झंडे खालिस्तानी नहीं बल्कि सिख धार्मिक झंडे हैं.
btw the right wing has the effrontery to raise this on a day the ram mandir is the UP govt's r-day float.
— Hartosh Singh Bal (@HartoshSinghBal) January 26, 2021
सिखों के यह झंडे गणतंत्र दिवस पर निकलने वाली पंजाब की झांकी का भी हिस्सा रहे हैं. इस साल और पिछले साल की तस्वीरें इस बात की तस्दीक करती हैं.
निष्कर्ष यही है कि यह दावा कि प्रदर्शनकारियों ने खालिस्तान का झंडा लहराया, गलत है. वहीं यह दावा भी कि तिरंगे को हटाकर अन्य झंडा लगाया गया भी सही नहीं है क्योंकि झंडा एक खाली ध्वज स्तंभ पर लगाया गया था.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)