जब भारत में मुसलमान कहेंगे कि वे सुरक्षित अनुभव कर रहे हैं तब ही माना जाएगा कि वे सुरक्षित हैं.
उपराष्ट्रपति के रूप में हामिद अंसारी के आखिरी दिन सरकार की तरफ से जो बयान दिए गए उन पर ध्यान देने की जरूरत है. क्योंकि उन बयानों को देखने से ये पता चलता है कि भारतीय राजनीति और खासकर शासक दल की राजनीति असभ्यता की कितनी सीमाएं पार कर गई हैं, न सिर्फ असभ्यता की बल्कि क्रूरता की.
भारत सरकार के प्रधानमंत्री की ओर से ये बयान दिया गया कि उपराष्ट्रपति के पूर्वज एक विशेष धार्मिक आंदोलन से जुड़े हुए थे.
ये भी कहा गया कि पारिवारिक रूप से वे कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए थे.
ये भी कहा गया कि अपने राजनयिक जीवन में उनका रिश्ता खास किस्म के देशों से रहा है. देशों के नाम लिए गए जिससे ये स्पष्ट था कि दरअसल मुसलमान देशों की बात कर रहें हैं.
इस तरह से ये इशारा किया गया कि उपराष्ट्रपति के अनुभवों का दायरा बहुत ही सीमित है और वो मुस्लिम दायरा है.
कहा गया कि आप आज तक इसी दायरे में काम करते रहे जब तक उपराष्ट्रपति नहीं बन गए. उपराष्ट्रपति बन जाने के बाद ,ये ध्यान देने की बात है प्रधानमंत्री ने कहा कि उपराष्ट्रपति बन जाने के बाद आप संविधान के दायरे में बंध गए.
और इस वजह से जो आपका स्वाभाविक रुझान था उस रुझान को आपको दबाना पड़ा और पिछले दस वर्षों में आप उस दायरे में बंध कर संकुचित हो गए और आपने अपने स्वभाविक रूप को उजागर नहीं किया है.
ये कहा गया कि अब जब आप इस पद से मुक्त हो रहें है आप आजाद हो जाएंगे आपके जो आंतरिक विश्वास हैं, उन विश्वासों के अनुसार आपको काम करने का मौका मिलेगा.
इस बयान को ठीक से सुनने की जरूरत है और समझने की जरूरत है. क्योंकि ये एकतरफ अंसारी के पूरे जीवन पर हमला है, उनके मूल्यों पर हमला है और दूसरी तरफ ये खतरनाक इशारा है जो देश के तमाम मुसलमानों को लेकर किया गया. ये खतरनाक इशारा जिसमें ये कहा जाता है कि मुसलमान अपने अनुभवों में ही संकुचित होते हैं.
वे सिर्फ संकुचित अनुभव व्यक्त कर सकते हैं और उनके जो अपने मूल्य विश्वास हैं वो दरअसल मुस्लिम विश्वास हैं.
हामिद अंसारी को इशारे से ये कहा गया कि अब आप आजाद हो गए हैं और अब आप अपने पुराने संकुचित विचारों को व्यक्त कर सकते हैं.
इनका संदर्भ बहुत स्पष्ट था एक रोज पहले हामिद अंसारी साहब का एक इंटरव्यू प्रसारित हुआ जिस इंटरव्यू में उनसे एक पत्रकार ने प्रश्न किया था भारत की परिस्थिति को लेकर और उस परिस्थिति में विशेषकर अल्पसंख्यकों को लेकर और उनके भीतर जो आशंकाएं जन्म ले रही हैं उन्हें लेकर.
उपराष्ट्रपति ने कहा था कि उनका ये प्रश्न जायज है और भारत के अल्पसंख्यकों में खासकर मुसलमानों में एक नए तरीके की आशंका घर कर रही है जो आज तक नहीं थी.
ये बात तीन वर्षों से अलग-अलग मंचों से अलग-अलग लोग कह चुके हैं. ख़ुद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जो पिछले राष्ट्रपति थे, इतने खुले रूप में नहीं लेकिन प्रच्छन्न्न रूप में ये बात कह चुके हैं. इस बात को कहने के लिए आपका मुसलमान होना जरूरी नहीं है.
ये देखने के लिए कि आपको मुसलमान होने की वजह से पीटा जा सकता है आपकी हत्या की जा सकती है, अगर आप टिफिन में गोश्त लेकर जा रहे हैं तो आप पर हमला किया जा सकता है. गाय के गोश्त के नाम पर मुसलमानों को पूरे भारत में अलग-अलग जगह हिंसा का शिकार बनाया गया है ये देखने के लिए या कहने के लिए आपका मुसलमान होना जरूरी नहीं है.
दूसरी तरफ इस बात को कहने का अधिकार मुसलमानों का भी है, जब वो ये बात कहते हैं तो उन पर ये कहकर हमला नहीं किया जा सकता कि वो संकीर्ण हैं. ये बात हामिद अंसारी के बारे कही गई है.
ये ध्यान देने की जरूरत है कि हामिद अंसारी पर कुछ समय पहले हमला भारत सरकार के मंत्रियों ने किया था कि हामिद अंसारी ने योग दिवस में भाग क्यों नहीं लिया पर हामिद अंसारी को योग दिवस का आमंत्रण ही नहीं मिला था.
दूसरी तरफ ये कहते हुए कि खास मौके पर उन्होंने झंडे के सामने अपना हाथ क्यों नही उठाया सलामी में जबकि वो प्रोटोकॉल के खिलाफ था और प्रोटोकॉल का उल्लंघन उस समय प्रधानमंत्री कर रहे थे. पर हामिद अंसारी पर चौतरफा हमला किया गया ये इशारा करते हुए चूंकि वो मुसलमान है इस लिए राष्ट्रीय ध्वज के प्रति उनका सम्मान कम है उनकी प्रतिबद्धता कम है.
ये जो असभ्यता पिछले तीन वर्षों में बढ़ती जा रही है. इसकी एक नई ऊंचाई या नए पतन के बिंदु पर पहुंच गई तब तो और भी जब नए उप राष्ट्रपति ने निवर्तमान उपराष्ट्रपति पर हमला किया ये कहते हुए कि जो लोग मुसलमानों में असुरक्षा की बात कर रहे हैं वो दरअसल राजनीति करना चाहते हैं.
अब वे उपराष्ट्रपति बन चुके हैं यह उनके पद के शालीनता के अनुरूप नही था कि वे निवर्तमान अपने ठीक पहले के उपराष्ट्रपति पर हमला करें पर उन्होंने किया. अपने पद की मर्यादा का ध्यान नहीं रखते हुए.
अगर आप हामिद अंसारी के बयानों को देखेंगे तो पाएंगे कि वे अत्यंत ही संयमित हैं वे लोगों को नाम नहीं लेते, किसी पर आक्रमण नहीं करते और इसका कारण ये है कि उनका पूरा जीवन राजनयिक जीवन रहा है और एक विशेष प्रकार के संयम में काम करने की आजादी उनको रही है.
एक के बाद एक सरकार के पितृ संगठन यानी कि भारतीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े हुए संगठनों ने ये कहां कि भारत में बहुलतावाद है भारत में मुसलमान असुरक्षित नहीं है, ये कहने का हक किसी को नहीं है कि भारत में मुसलमान असुरक्षित है.
ये बहुत मजेदार बात है क्योंकि ये कहने वाले वे लोग हैं जिन पर ये आरोप है कि वे मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का वातावरण बना रहें हैं. तो अगर खुद शिकारी कहने लगे कि शिकार को उससे डर नहीं है तो उस बात का भरोसा कैसे किया जाए.
जब भारत में मुसलमान कहेंगे कि वे सुरक्षित अनुभव कर रहे हैं तब ही माना जाएगा कि वे सुरक्षित हैं. अगर उस संगठन के लोग कहेंगे कि भारत में मुसलमान सुरक्षित हैं जिनका काम ही रहा है पिछले 80 साल में मुसलमानों के खिलाफ घृणा का निर्माण करना, उन पर हमला करना, नफरत का माहौल बनाना तो उनपर भरोसा नहीं किया जा सकता.
इस बात को इस तरह से देखने की जरूरत है कि भारत के सभ्य समाज को अब अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए और ये कहना चाहिए कि ये असभ्यता, आशालीनता और असंसदीय आचरण अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं.)