‘धर्मांतरण का झूठा सांप्रदायिक विज्ञापन देश के संविधान पर हमला’

झारखंड सरकार के विज्ञापन को सामाजिक कार्यकर्ताओं ने झूठा बताते हुए की निंदा.

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झारखंड सरकार के विज्ञापन को सामाजिक कार्यकर्ताओं ने झूठा बताते हुए की निंदा.

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दैनिक भास्कर के रांची संस्करण में 11 अगस्त को छपा विज्ञापन.

धर्मांतरण को लेकर झारखंड सरकार के विज्ञापन पर विरोध प्रकट करते हुए कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मांग की है कि गांधी जी के गलत कथन को छापने के लिए मुख्यमंत्री रघुबर दास सार्वजनिक रूप से माफी मांगें. उनका कहना है कि सरकार के इस करतूत से वे आहत, स्तब्ध और विचलित हैं और इसकी कड़ी निंदा करते हैं.

दरअसल दिनांक 11 अगस्त 2017 को झारखंड के कई अखबारों के प्रथम पृष्ठ पर राज्य सरकार के विज्ञापन को प्रकाशित किया गया है जिसमें गांधी जी का हवाला देकर एक वक्तव्य छपा है.

विज्ञापन में लिखा गया है कि, ‘यदि ईसाई मिशनरी समझते हैं कि ईसाई धर्म में धर्मांतरण से ही मनुष्य का आध्यात्मिक उद्धार संभव है तो आप यह काम मुझसे या महादेव देसाई (गांधीजी के निजी सचिव) से क्यों नहीं शुरू करते. क्यों इन भोले-भाले, अबोध, अज्ञानी, गरीब और वनवासियों के धर्मांतरण पर जोर देते हो. ये बेचारे तो ईसा और मोहम्मद में भेद नहीं कर सकते और न आपके धर्मोपदेश को समझने की पात्रता रखते हैं. वे तो गाय के समान मूक और सरल हैं. जिन भोले-भाले, अनपढ़ दलितों और वनवासियों की गरीबी का दोहन करके आप ईसाई बनाते हैं वह ईसा के नहीं (चावल) अर्थात पेट के लिए ईसाई होते हैं.’

सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि विज्ञापन में प्रकाशित कथन गलत और झूठा है. गांधी जी ने आदिवासियों के धर्मांतरण को लेकर ऐसा कोई वक्तव्य नहीं दिया है न ही कहीं लिखा है. यह कथन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक देवेंद्र स्वरूप की किताब ‘गांधी जी: हिंद स्वराज से नेहरू तक’ से लिया गया है जिसमें धर्मांतरण पर गांधी जी के विचार को संघ के एजेंडे के अनुसार तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत किया गया है. यह गांधी जी के शब्द नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भाषा है. इस विज्ञापन ने यह साबित कर दिया है कि रघुबर दास की सरकार भारत के संविधान के अनुसार नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सांप्रदायिक एजेंडे पर काम कर रही हैं एवं गांधी जी के नाम पर झारखंड को आशंत करने एवं बांटने का प्रयास कर रही है.

उनका आगे कहना है कि हम मानते हैं कि यह झूठा सांप्रदायिक सरकारी विज्ञापन देश के संविधान पर हमला है एवं लोगों में द्वेष व नफरत फैलाने का प्रयास है. इस विज्ञापन को सरकार द्वारा हाल ही में कैबिनेट द्वारा पारित गैर संवैधानिक धार्मिक स्वतंत्रता बिल की कड़ी में देखना चाहिए जिसके द्वारा रघुबर दास की सरकार झारखंड की जनता को बांटने एवं झारखंड को अशांत करने का प्रयास कर रही है. झारखंड में हाल में हुई सांप्रदायिक घटनाओं में अल्पसंख्यकों के प्रति प्रशासन का उदासीन रवैया भी सरकार के नियत को दर्शाती है. यह भी निंदनीय है कि सरकार अमन और इंसानियत की बात न करके समाज को बांटने में लगी है.

सामाजिक कार्यकताओं ने इसे कार्तिक ओरांव के विचार के भी खिलाफ बताया है. उनका कहना है कि झारखंड सरकार का यह विज्ञापन न सिर्फ झूठा है बल्कि स्वर्गीय कार्तिक ओरांव के विचार के भी खिलाफ है जिनके सपनों को साकार करने की बात विज्ञापन में की गई है. कार्तिक ओरांव ने तो अपनी पुस्तक ‘आदिवासी हिंदू नहीं है’ में कहा है कि हिंदू मिशनरी द्वारा आदिवासियों को ‘वनवासी हिंदू’ कहना उनका अपमान है. जिस तरह से इस सरकारी विज्ञापन में आदिवासियों और दलितों को ‘मूक’ और ‘अनपढ़’ कहा गया है यह बेहद आपत्तिजनक है. यह उनका अपमान है और हम इसकी घोर निंदा करते हैं. इस झूठे उन्मादी विज्ञापन में शांतिप्रिय गांधी जी और झारखंड के नायकों बिरसा मुंडा और कार्तिक उरांव का सहारा लेकर उनकी साम्प्रदायिक छवि प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है. यह न सिर्फ़ उनका अपमान है बल्कि आपराधिक कृत्य है. यह देश के सभी शांतिप्रिय नागरिकों और संविधान का अपमान है.

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कार्तिक ओरांव की किताब का कवर पेज.

सामाजिक कार्यकर्ताओं ने झारखंड उच्च न्यायालय से अपील की है कि वे सरकार के इस भड़काउ, गैरसंवैधानिक एवं सांप्रदायिक विज्ञापन पर स्वत: संज्ञान ले क्योंकि झारखंड की कानून व्यवस्था खतरे में पड़ सकती है.

उनका आगे कहना है कि सी.एन.टी.एस.पी.टी एक्ट में संशोधन के ख़िलाफ़ एक साथ संघर्ष कर झारखंड की जनता ने रघुवर सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया. इस बात से विचलित और परेशान होकर सरकार अब झारखंड के आदिवासियों को बांटने का प्रयास कर रही है. हमें आशंका है कि भाजपा सरकार द्वारा जनता के पैसे का दुरुपयोग कर छपवाए गए सांप्रदायिक भड़काऊ विज्ञापन के कारण झारखंड में क़ानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है एवं अल्पसंख्यकों के खिलाफ दंगे भड़क सकते हैं.

विरोध प्रकट करने वाले कार्यकर्ताओं में सामाजिक कार्यकर्ता स्टने स्वामी, मेघनाथ, ज्यां द्रेेज, बलराम, विनोद सिंह, वास्वी कीड़ो, बीबी चौधरी, जेम्स हेरेंज, सिराज दत्ता, धीरज कुमार, अंकिता अग्रवाल, अफजल अनिस, नदीम खान, आलोका कुजूर, बिन्जू अब्राहम, अंजोर भास्कर, प्रवीण पीटर, जियाउल्ला, देव्माल्या, प्रांजल धांडा और कुमार संजय शामिल हैं.

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