वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को 2021-22 के लिए केंद्रीय बजट पेश करते हुए कपास पर 10 फ़ीसदी सीमा शुल्क की घोषणा की. कपास किसानों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता का मानना है कि इससे किसानों को कोई विशेष लाभ होने की संभावना नहीं है.
नागपुर: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को 2021-22 के लिए केंद्रीय बजट पेश करते हुए कपास पर 10 फीसदी सीमा शुल्क की घोषणा की.
हालांकि, कपास किसानों की आवाज उठाने वाले एक किसान कार्यकर्ता मानना है कि इससे कपास किसानों को कोई विशेष लाभ होने की संभावना नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, किसान कार्यकर्ता विजय जावंधिया का कहना है कि कपास पर सीमा शुल्क में वृद्धि से कपास किसानों की आमदनी में ज्यादा इजाफा होने की संभावना नहीं है.
जावंधिया ने कहा, ‘यह आयातित कपास को महंगा बना देगा. यह केवल कुछ भी नहीं की जगह कुछ तो है के रूप में माना जा सकता है. इससे केवल बड़ी संख्या में आयात किया जाने वाला मिस्र का कपास थोड़ा महंगा होगा लेकिन किसानों के लाभ के लिए अन्य कपास की कीमतों को ज्यादा प्रभावित नहीं करेगा.’
जावंधिया हमेशा से गन्ना उत्पादकों को दी गई सीमा शुल्क सुरक्षा से कपास किसानों को वंचित किए जाने के आलोचक रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा, ‘वित्त मंत्री की यह जानकारी कि वर्तमान सरकार ने 2013-14 में कांग्रेस सरकार की तुलना में इस वर्ष गेहूं खरीद पर अधिक खर्च किया है, भ्रामक है. एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तब 1,200 रुपये प्रति क्विंटल था, जबकि आज 2,500 रुपये प्रति क्विंटल है. साथ ही, पिछले कुछ वर्षों में सिंचाई में वृद्धि के कारण अधिक उत्पादन हुआ है.’
जावंधिया ने कहा, ‘इसी तरह मंत्री ने यह भी कहा कि उनकी सरकार ने 2013-14 में बहुत कम की तुलना में इस साल कपास खरीद पर 25,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. लेकिन उस वर्ष खुले बाजार की कीमत बहुत अधिक थी इसलिए कोई खरीद आवश्यक नहीं थी. पिछले तीन वर्षों में उनकी सरकार ने कितनी खरीद की, यह नहीं बताया. इस वर्ष की खरीद कोविड-19 महामारी और सामान्य मंदी के कारण अधिक थी.’
उन्होंने यह भी बताया कि पिछले साल 15 लाख करोड़ रुपये की तुलना में इस साल कृषि ऋण बढ़कर 16.5 लाख करोड़ रुपये हो गया है.
जावंधिया ने कहा, ‘वृद्धि सीमांत है और इस तरह की वृद्धि आमतौर पर बजट में की जाती है. देखने की जरूरत है कि ज्यादातर किसान डिफॉल्ट हो जाते हैं और इसलिए नए ऋण के लिए अयोग्य हो जाते हैं. इसलिए, कृषि ऋण परिव्यय में वृद्धि वास्तव में कम मायने रखती है.’