अगर इंसेफलाइटिस ख़त्म हो गया तो धर्म ख़तरे में पड़ जाएगा

मृत्यु तो संसार का एकमात्र शाश्वत सत्य है. योगी जी उत्तर प्रदेश को इसी सत्य का साक्षात्कार कराना चाहते हैं जो धर्म का मर्म है. लेकिन लोग उनके पीछे पड़ गए हैं.

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Lucknow: Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Aditiyanath addressing a press conference in Lucknow on Saturday. Union Minister Anupriya Patel and Uttar Pradesh Health Minister Siddharth Nath Singh are also seen. PTI Photo by Nand Kumar (PTI8_12_2017_000138B)

मृत्यु तो संसार का एकमात्र शाश्वत सत्य है. योगी जी उत्तर प्रदेश को इसी सत्य का साक्षात्कार कराना चाहते हैं जो धर्म का मर्म है. लेकिन लोग उनके पीछे पड़ गए हैं.

Lucknow: Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Aditiyanath addressing a press conference in Lucknow on Saturday. Union Minister Anupriya Patel and Uttar Pradesh Health Minister Siddharth Nath Singh are also seen. PTI Photo by Nand Kumar (PTI8_12_2017_000138B)
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह (बाएं) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल (दाएं) लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान. (फोटो: पीटीआई)

योगी जी को नाहक बदनाम किया जा रहा है. वे लखनऊ की सुध लें कि गोरखपुर की. प्रदेश में रामराज पहली बार आया है. बहुत व्यस्तताएं होंगी. इंसेफलाइटिस तो हर साल आता है. सालों से आ रहा है. इसमें नई बात क्या है.

और मृत्यु तो संसार का एकमात्र शाश्वत सत्य है. क्या बच्चे, क्या बड़े-बूढ़े या नौजवान, मरना तो एक दिन सबको है. योगी जी उत्तर प्रदेश को इसी सत्य का साक्षात्कार कराना चाहते हैं जो धर्म का मर्म है. लेकिन लोग उनके पीछे पड़ गए हैं.

साठ बच्चे पिछले तीन-चार दिनों में मर गएं तो हंगामा मच गया. एक-दो बच्चे रोज़ के हिसाब से मरतें तो कौन पूछता? बच्चे तो रोज़ मर ही रहे हैं. गोरखपुर और यूपी क्या पूरे देश में. इस पर हल्ला मचाना सस्ती राजनीति है. देशद्रोह है.

तो योगी जी आप चिंता मत कीजिए. बस अपने धर्म पर डटे रहिए. इंसेफलाइटिस से बच्चे पहले भी मरते रहे हैं. अखिलेश राज में भी, मुलायम राज में भी, मायावती राज में भी और कल्याण सिंह या राजनाथ सिंह के राज में भी.

ख़बरों से पता चलता है कि पिछले चार दशकों में पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस बीमारी से मरने वाले बच्चों की संख्या 25 हज़ार से एक लाख तक हो सकती है. इस चार दशक में देश परमाणु शक्ति से लेकर आर्थिक शक्ति और महाशक्ति आदि पता नहीं क्या-क्या बन गया.

राम मंदिर के नाम पर देशभर में कत्ले-आम हो गया. मगर पूर्वांचल से इंसेफलाइटिस नहीं ख़त्म किया जा सका. इन चार दशकों में देश कल्याणकारी से खांटी पूंजीवादी बन गया.

लाइसेंस-कोटा राज से उदारीकरण तक आ गया लेकिन इंसेफलाइटिस से पार नहीं पाया जा सका. यह मामला अक्षमता का नहीं मंशा का है. दरअसल इस बीमारी को ख़त्म करना कभी किसी सरकार का एजेंडा रहा ही नहीं.

मैंने शुरू में ही कहा था कि योगी जी को नाहक बदनाम किया जा रहा है. अरे उत्तर प्रदेश क्या, पूरे देश की सरकारें असल में धर्म के मार्ग पर ही चलने वाली रही हैं.

मृत्युलोक में मृत्यु के अटल सत्य का एहसास लोगों को कराना हमारे देश की सरकारों की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी रही है. यह ज़िम्मेदारी सबने बखूबी निभाई है और योगी भी यही कर रहे हैं.

जब देश में कल्याणकारी राज था तो सरकारें यह मानती थीं कि मृत्युलोक में जनता का कल्याण करने का मतलब होगा लोगों को माया के चंगुल में फंसाना. भौतिक सुख-सुविधाएं लोगों का मन ख़राब कर देंगी, भोग-लिप्सा को बढ़ावा देंगी.

अगर लोगों को ज़्यादा पगार मिलने लगी तो लोग अच्छे खाने-पहनने के लालच में पड़ जाएंगे. स्वास्थ्य सेवाएं अच्छी हो जाएंगी तो लोगों को इस मायालोक में ज्यादा समय बिताना पड़ेगा. शिक्षा सबको मिल गई तो धर्म के मार्ग से मन भटकेगा.

इसीलिए कल्याणकारी राज ने भौतिक सुख-सुविधाओं को कम-से-कम लोगों के हाथ में सिमटने दिया ताकि आम जनता भौतिकता में न भटक कर धर्म मार्ग का शोध करती रहे. पुण्य कमाए और जल्दी मर-खप कर स्वर्ग चली जाए. बल्कि मुक्त ही हो जाए.

मैं दावे से कह सकता हूं कि हिंदुस्तान के आधे लोग तो मरकर मोक्ष ही पा जाते होंगे. अरे जिस देश की जनता पिछले सत्तर सालों में भरपेट खाना खाए बिना काम कर रही हो, अपना हाड़-मांस गला रही हो ताकि दूसरों की तरक्की हो सके उससे ज्यादा निष्कामी कौन होगा?

तो कल्याणकारी राज ने जो किया – लोगों को मोक्ष दिलाकर – उससे ज़्यादा कल्याणकारी क्या हो सकता है भला. पश्चिम में कल्याणकारी राज का अर्थ ही गलत निकाला गया. वहां तो ये कल्याणकारी राज लोगों को सांसारिक सुख-सुविधाओं में भटकाकर धर्म मार्ग से विमुख करते रहे हैं. मार्ग्रेट थैचर और रोनाल्ड रीगन ने इसी भटकाव के ख़िलाफ़ भारी अभियान चलाया.

कल्याणकारी राज के बाद जब नब्बे के दशक में उदारवादी राज आया तो उसमें भी जनता के कल्याण का पूरा ख्याल रखा गया. तो जो माया पहले ही कम लोगों के हाथ में थी उसे और भी कम लोगों के हाथ में समेटने काम शुरू हुआ.

शिक्षा महंगी हो गई. इलाज करना भी महंगा हो गया. इससे हुआ क्या. वामपंथियों की उल्टी-सीधी बातों में न आइए. अरे इससे हुआ यह कि पैसा रूपी माया आम जनता की जेबों से निकलकर कुछ सेठों की जेबों में चली गई.

लोगों को तेज़ी से माया से दूर कर दिया गया. यानी उदारीकरण के दौर में लोगों का कल्याण कई गुना रफ़्तार से हुआ है. संभव है कि इस दौर में मोक्ष पाने वालों की संख्या में भी उछाल आया हो.

रही-सही कसर मोदी जी ने नोटबंदी करके पूरी कर दी. सारी माया एक झटके में बैंकों में चली गई. सरकार को पाप न लगे इसलिए अंबानी-अडानी आदि सज्जन देशभक्त इसे अपने पास रख लेंगे.

इस तरह देश पाप के रास्ते पर कभी जाएगा ही नहीं. मुझे तो लगता है कि असल में हम पिछले सत्तर सालों से रामराज में ही जी रहे हैं. अंतर बस इतना है कि पहले वाले राजा बिना बोले रामराज बना रहे थे और नए वाले राजा यह काम लाठी की ज़ोर पर कर रहे हैं.

इससे क्या है कि हंगामा थोड़ा ज़्यादा बरप गया है. बस इतनी सी बात है. योगी जी पर नाहक लांछन लगाया जा रहा है. इंसेफलाइटिस असल में बीमारी है ही नहीं है बल्कि ये ताकत बढ़ाने वाली दवा की तरह है जो हमें धर्म से भटकने नहीं देती.

अगर इंसेफलाइटिस ख़त्म हो गया तो धर्म ख़तरे में पड़ जाएगा. अरे बच्चे बीमारी से मरें, बदइंतज़ामी से मरें, गंदगी से मरें, भूख से मरें, दंगों से मरें, या कैसे भी मरें. वे मरें क्योंकि एक-न-एक दिन तो मरना ही है.

यह मृत्युलोक है भाई. सब मरेंगे एक दिन. मैं भी मरूंगा. आप भी मरेंगे. योगी भी मरेंगे और भोगी भी मरेंगे. देश भी मरेगा और धरती भी मरेगी.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं.)