किसान आंदोलन: कीलों और बैरिकेडिंग से बढ़ीं किसानों की मुश्किलें, पानी और शौचालय व्यवस्था मुहाल

26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद से ग़ाज़ीपुर, टिकरी और सिंघू बॉर्डर पर बैरिकेड और सीमेंट की दीवारों की संख्या बढ़ गई है. तीनों सीमाओं को काफ़ी दूर तक तारों से घेर दिया गया है और टिकरी और ग़ाज़ीपुर में पुलिस ने धरनास्थल तक जाने वाली सड़कों पर लोहे की कीलें भी गाड़ दी हैं.

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गाजीपुर बॉर्डर पर कंसर्टिना तार, बैरिकेडिंग और लोहे की कीलों से बनाया गया सुरक्षा घेरा. (फोटो: विशाल जायसवाल/द वायर)

26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद से ग़ाज़ीपुर, टिकरी और सिंघू बॉर्डर पर बैरिकेड और सीमेंट की दीवारों की संख्या बढ़ गई है. तीनों सीमाओं को काफ़ी दूर तक तारों से घेर दिया गया है और टिकरी और ग़ाज़ीपुर में पुलिस ने धरनास्थल तक जाने वाली सड़कों पर लोहे की कीलें भी गाड़ दी हैं.

गाजीपुर बॉर्डर पर कंसर्टिना तार, बैरिकेडिंग और लोहे की कीलों से बनाया गया सुरक्षा घेरा. (फोटो: विशाल जायसवाल/द वायर)
गाजीपुर बॉर्डर पर कंसर्टिना तार, बैरिकेडिंग और लोहे की कीलों से बनाया गया सुरक्षा घेरा. (फोटो: विशाल जायसवाल/द वायर)

नई दिल्ली: पिछले करीब 70 दिनों से किसान आंदोलन का केंद्र बने दिल्ली से सटे तीनों बॉर्डरों पर पिछले कुछ दिनों से पुलिस द्वारा बढ़ाई गई बैरिकेडिंग के कारण किसानों को पानी, शौचालय से लेकर सफाई तक की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

बता दें कि जहां सिंघू और टिकरी धरना स्थल हरियाणा बॉर्डर की तरफ हैं, वहीं गाजीपुर, उत्तर प्रदेश की तरफ है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के बाद से तीनों ही बॉर्डरों पर बैरिकेड और सीमेंट की दीवारों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.

तीनों ही बॉर्डरों को काफी दूर तक कंसर्टिना के तारों से घेर दिया गया है और टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर पुलिस ने धरना स्थल तक जाने वाली सड़कों पर लोहे की कीलें भी गाड़ दी हैं.

पिछले दो महीने से अधिक समय के आंदोलन में सबसे बड़े धरना स्थल के रूप में उभरे सिंघू बॉर्डर पर बढ़ाई गई बैरिकेडिंग के कारण करीब 100 अस्थायी शौचालय किसानों की पहुंच से बाहर हो गए हैं.

शौचालय से कुछ ही दूरी पर पुलिस अब एक अस्थायी रसोई घर के बना रही है.

पिछले एक महीने से आंदोलन में शामिल गुरदासपुर से आए हरभजन सिंह ने कहा कि घेराबंदी के कारण बहुत से लोगों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ रहा है.

उन्होंने कहा, ‘अब इस तरफ बहुत कम शौचालय हैं. एक शौचालय पेट्रोल पंप के पास है और सैकड़ों उस इलाके में हैं जहां हम नहीं पहुंच सकते हैं. इसलिए (पेट्रोल) पंप (के पास स्थित शौचालय) पर लंबी कतार लग रही है.’

सिंघू के किसानों से यह भी आरोप लगाया कि 26 जनवरी के बाद उनको मिलने वाली पानी की आपूर्ति में भी भारी कमी आई है.

सिंघू बॉर्डर पर लगे नए अवरोधक. (फोटो: पीटीआई)
सिंघू बॉर्डर पर लगे नए अवरोधक. (फोटो: पीटीआई)

दिल्ली के जल मंत्री सत्येंद्र जैन ने शुक्रवार को कहा था कि दिल्ली पुलिस ने उन्हें और दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा को सिंघू में टैंकरों से पीने के पानी की आपूर्ति करने से रोका था.

मंगलवार को चड्ढा ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था, ‘वे जल बोर्ड के टैंकरों को नहीं जाने दे रहे हैं. वे केवल कह रहे हैं कि ऊपर से आदेश है. हम अपने टैंकरों को ले जाने की हर दिन कोशिश कर रहे हैं.

हालांकि, सिंघू पर तैनात बाहरी जिले के दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि वे जरूरी सामानों की आवाजाही सुनिश्चित कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘हां, हमने गणतंत्र दिवस ट्रैक्टर मार्च के बाद मुख्य सड़कों को एक बचाव उपाय के रूप में अवरुद्ध कर दिया है, लेकिन किसानों के पास अभी भी कुछ सड़कों तक पहुंच है. हम पानी के टैंकरों को एक निश्चित जगह से किसानों तक पहुंचने की अनुमति दे रहे हैं. जो शौचालय पहले विरोध स्थल के बाहर थे, अब उन्हें बैरिकेड्स के किनारे उनकी तरफ ही स्थानांतरित किया जा रहा है.’

मीडियाकर्मियों को अब बैरिकेड्स को पार करके मुख्य सड़क पर जाने की अनुमति नहीं है और अब विरोध स्थल तक पहुंचने के लिए खेतों या आंतरिक मार्गों से गुजरना पड़ता है.

सिंघू पर आंदोलन में शामिल आनंदपुर साहिब के रविंदर सिंह कहते हैं कि कुछ स्थानीय लोग उन्हें पास की फैक्ट्रियों में शौचालय इस्तेमाल करने की छूट दे रहे हैं और कुछ मामलों में इसके लिए उन्हें कुछ किलोमीटर दूर तक भी जाना पड़ रहा है.

वहीं, टिकरी बॉर्डर स्थित धरना स्थल पर मंगलवार को कूड़े का ढेर जमा हो गया था और किसानों का कहना था कि सोमवार से ही सफाई कर्मचारी वहां नहीं आए हैं.

पंजाब के भटिंडा से एक 52 वर्षीय किसान रंजीत सिंह ने कहा, ‘गणतंत्र दिवस के विरोध से पहले सफाई कर्मचारी आते थे और सफाई करते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है. हम केवल कूड़ा इकट्ठा करते हैं और एक तरफ छोड़ देते हैं. अगर कुछ नहीं किया गया तो हमें बीमारियां फैलने का खतरा है.’

सिंघू की ही तरह टिकरी पर भी किसानों का कहना है कि उन्हें शौचालय इस्तेमाल करने की मंजूरी नहीं दी जा रही है.

उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन ने कुछ शौचालयों पर ताला भी लगा दिया है. किसानों ने कहा कि उन्होंने कुछ शौचालयों के ताले तोड़ने पड़े. यहां भी किसान पास के पेट्रोल पंप और पूजा स्थलों के प्रसाधनों का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं.

जल बोर्ड की पानी की टंकियों के न पहुंचने के कारण कुछ किसानों ने कहा कि उन्होंने अपने गांव से पानी की टंकियां मंगाई हैं और उन्हें वे पास के बोरवेल या ट्यूबवेल से दोबारा भर रहे हैं.

बढ़ाई गई बैरिकेडिंग के साथ पानी और शौचालय तक किसानों की पहुंच न होने को लेकर झज्जर के जिलाधिकारी जितेंद्र कुमार से इंडियन एक्सप्रेस से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला.

गाजीपुर बॉर्डर के किसानों का कहना है कि बढ़ाई गई बैरिकेडिंग का मतलब है कि आंदोलन में शामिल होने के लिए दिल्ली से कम लोग ही आ पाएंगे.

गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन में शामिल 63 वर्षीय जगमोहन चौधरी ने कहा, ‘हमारे परिवार के कई सदस्य दिल्ली से आते, कुछ राशन ले आते और कुछ सेवा करते. वह अब बंद हो गया है. लेकिन उससे भी ज्यादा हम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि स्थानीय लोग यह सोचकर हमसे नफरत करने लगेंगे कि बैरिकेडिंग के जिम्मेदार हम हैं.’

प्रदर्शन स्थल पर बढ़ाई गई बैरिकेडिंग के बारे में पूछे जाने पर मंगलवार को दिल्ली पुलिस कमिश्नर एसएन श्रीवास्तव ने पत्रकारों से कहा था, ‘मुझे ताज्जुब है कि जब 26 जनवरी को पुलिसकर्मियों पर हमला करने और बैरिकेड तोड़ने के लिए ट्रैक्टरों का इस्तेमाल किया तब किसी ने सवाल नहीं उठाया. हमने अब क्या किया है? हमने बस बैरिकेड्स को मजबूत किया है ताकि वे इसे फिर से न तोड़ पाएं.’