उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने पुलिस को सोशल मीडिया पर ‘एंटी-नेशनल’ टिप्पणी करने वाले लोगों का रिकॉर्ड तैयार करने को कहा है. इससे पहले बिहार सरकार ने मंत्रियों व अधिकारियों के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया पर ‘अपमानजनक’ टिप्पणी करने को साइबर अपराध बताते हुए कड़ी कार्रवाई की बात कही थी.
नई दिल्ली: बिहार प्रशासन के फरमान की राह पर अब उत्तराखंड पुलिस ने भी ऐसे लोगों पर कड़ी नजर बनाने की योजना बनाई है जो सोशल मीडिया पर प्रतिरोध जताते हुए टिप्पणी करते हैं.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बीते मंगलवार को पुलिसकर्मियों की एक कॉन्फ्रेंस में उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने पुलिस से कहा कि वे ऐसे लोगों का रिकॉर्ड तैयार करें जो सोशल मीडिया पर ‘एंटी-नेशनल’ और ‘एंटी-सोशल’ टिप्पणी करते हैं.
उन्होंने कहा, ‘पहले सिर्फ एफआईआर चेक की जाती थी, लेकिन अब सोशल मीडिया पर संबंधित व्यक्ति की प्रतिक्रियाओं को भी देखा जाएगा.’
जब कुमार से ये पूछा गया कि किस तरह की टिप्पणियों को ‘एंटी-नेशनल’ माना जाएगा तो उन्होंने कहा, ‘जो भी देश की एकता एवं अखंडता के खिलाफ लिख रहा है, वह एंटी-नेशनल है.’
I have directed uttarakhand police to watch online behaviour of people and stop police verification of those people who post anti-national content on social media…let me clarify that whatever is said against unity and integrity of India can be termed as anti national.. pic.twitter.com/nIycIfunod
— Ashok Kumar IPS (@AshokKumar_IPS) February 3, 2021
उन्होंने कहा, ‘ऐसी टिप्पणियां करने पर पहले संबंधित व्यक्ति की काउंसलिंग की जाएगी और उसे एक मौका दिया जाएगा. लेकिन यदि तब भी वो नहीं मानता है तो उनके पोस्ट्स का पूरा रिकॉर्ड तैयार किया जाएगा. पुलिस की जांच में ‘एंटी-नेशनल’ पोस्ट का उल्लेख करने के लिए किसी कानून या नियम में संशोधन की जरूरत नहीं है.’
मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि हमने पहले से बने नियम का अनुपालन करवाना सुनिश्चित किया है। इस नियम का उल्लेख पहले से प्रदत्त जाँच फॉर्म में है।पासपोर्ट बनने सम्बन्धी जाँच प्रक्रिया के दौरान कोई गतिविधि राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता के ख़िलाफ़ पायी जाती है. 1/2 pic.twitter.com/77BcPelt3z
— Ashok Kumar IPS (@AshokKumar_IPS) February 4, 2021
गुरुवार शाम डीजीपी ने कहा, ‘मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि हमने पहले से बने नियम का अनुपालन करवाना सुनिश्चित किया है. इस नियम का उल्लेख पहले से प्रदत्त जांच फॉर्म में है. पासपोर्ट बनने संबंधी जांच प्रक्रिया के दौरान कोई गतिविधि राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता के ख़िलाफ़ पाई जाती है तो उस व्यक्ति का सत्यापन नहीं किया जाएगा.’
हालांकि उत्तराखंड डीजीपी के इस कदम को लेकर आलोचना की जा रही है क्योंकि ‘एंटी-नेशनल’ शब्द की कोई कानूनी व्याख्या या परिभाषा अभी तक मौजूद नहीं है.
इसके चलते पुलिस को खुली छूट मिलने की संभावना है कि वे सरकार के खिलाफ बोलने वालों पर ‘एंटी-नेशनल’ का टैग लगाकर उन्हें प्रताड़ित करेंगे. इस तरह की कार्रवाई के बाद ऐसे लोगों को सरकारी नौकरी या सुविधाएं भी मिलने में बाधा आ सकती है.
पिछले कुछ सालों में ये भी देखने में आया है कि कई राज्य मनमानी तरीके से राजद्रोह कानून का इस्तेमाल कर रही है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में कहा है कि राजद्रोह का आरोप लगाते समय उच्च स्तर की सावधानी बरती जानी चाहिए.
इससे बिहार पुलिस ने भी इस सप्ताह एक विवादित आदेश जारी कर कहा है कि अगर किसी ने भी विरोध प्रदर्शन किया या सड़क जाम किया तो उसे सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी.
सरकार की तरफ से जारी आदेश में कहा गया, ‘यदि कोई व्यक्ति विधि-व्यवस्था की स्थिति, विरोध प्रदर्शन, सड़क जाम इत्यादि मामलों में संलिप्त होकर किसी आपराधिक कृत्य में शामिल होता है और उसे इस कार्य के लिए पुलिस के द्वारा आरोपित किया जाता है तो उनके संबंध में चरित्र सत्यापन प्रतिवेदन में विशिष्ट एवं स्पष्ट रूप से प्रविष्टि की जाए. ऐसे व्यक्तियों को गंभीर परिणामों के लिए तैयार रहना होगा क्योंकि उनमें सरकारी नौकरी/सरकारी ठेके आदि नहीं मिल पाएंगे.’
आदेश में कहा गया कि यदि कोई विरोध प्रदर्शन के दौरान सड़क जाम करने, हिंसा फैलाने या किसी भी तरह विधि व्यवस्था में समस्या उत्पन्न करने जैसे आपराधिक कृत्य में शामिल होता है और अगर उसके खिलाफ पुलिस चार्जशीट दाखिल कर देती है, तो उनके पुलिस वेरिफिकेशन रिपोर्ट में इसका स्पष्ट उल्लेख होगा. ऐसे में न सरकारी नौकरी मिलेगी और न ही सरकारी ठेका ले सकेंगे.
इससे पहले बिहार की नीतीश सरकार ने एक और आदेश पारित किया था, जिसमें कहा गया है कि जो भी उनकी सरकार, मंत्रियों एवं अधिकारियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर तथाकथित ‘अपमानजनक टिप्पणी’ करेगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी और इसे साइबर अपराध की श्रेणी में माना जाएगा.