ग्रेटा थनबर्ग और अन्य के ‘टूलकिट’ साझा करने के मामले में अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ केस दर्ज

दिल्ली पुलिस ने राजद्रोह, आपराधिक साजिश और घृणा फैलाने से संबंधित धाराओं में यह एफआईआर दर्ज की है. पुलिस ने बताया कि मामले में किसी को भी नामज़द नहीं किया गया है. यह सिर्फ़ टूलकिट के निर्माताओं के ख़िलाफ़ है. कृषि क़ानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन का पर्यावरण और जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने समर्थन किया था.

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ग्रेटा थनबर्ग. (फोटो: रॉयटर्स)

दिल्ली पुलिस ने राजद्रोह, आपराधिक साजिश और घृणा फैलाने से संबंधित धाराओं में यह एफआईआर दर्ज की है. पुलिस ने बताया कि मामले में किसी को भी नामज़द नहीं किया गया है. यह सिर्फ़ टूलकिट के निर्माताओं के ख़िलाफ़ है. कृषि क़ानूनों के विरोध में चल रहे किसान आंदोलन का पर्यावरण और जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने समर्थन किया था.

ग्रेटा थनबर्ग. (फोटो: रॉयटर्स)
ग्रेटा थनबर्ग. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस ने किसानों के प्रदर्शन के मामले में ‘खालिस्तानी समर्थक’ समूह द्वारा तैयार और पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग तथा अन्य द्वारा ट्विटर पर साझा किए गए ‘टूलकिट’ के संबंध में बृहस्पतिवार को एक प्राथमिकी दर्ज की.

पुलिस ने राजद्रोह, आपराधिक साजिश और घृणा फैलाने से संबंधित धाराओं में यह एफआईआर दर्ज की है. पुलिस ने आरोप लगाया कि इसका मकसद भारत सरकार के खिलाफ सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जंग छेड़ना था.

पुलिस का कहना है कि 26 जनवरी को हुई हिंसा समेत किसान आंदोलन का पूरा घटनाक्रम ट्विटर पर साझा किए गए टूलकिट में बताई गई कथित योजना से मिलता-जुलता है.

क्या थनबर्ग के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, यह पूछे जाने पर दिल्ली पुलिस के विशेष पुलिस आयुक्त (अपराध) प्रवीर रंजन ने कहा कि मामले में किसी को भी नामजद नहीं किया गया है. यह सिर्फ टूलकिट के निर्माताओं के खिलाफ है, जो फिलहाल जांच का विषय है.

उन्होंने कहा कि आपराधिक साजिश, राजद्रोह और भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है.

प्रवीर रंजन ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दिल्ली पुलिस को एक अकाउंट के जरिये दस्तावेज मिला है, जो एक ‘टूलकिट’ है. इसमें देश में सामाजिक सौहार्द्र बिगाड़ने की बात कही गई थी.

दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आरंभिक छानबीन में इस दस्तावेज का जुड़ाव ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ नामक खालिस्तानी समर्थक समूह से होने का पता चला है.

उन्होंने कहा कि 26 जनवरी को हिंसा समेत पिछले कुछ दिनों में हुए घटनाक्रम को लेकर इस दस्तावेज में कई तरह के कदम उठाने की बात कही गई थी.

प्रवीर रंजन ने कहा, ‘अगर आप 26 जनवरी की हिंसा सहित अन्य घटनाओं पर ध्यान दें तो पता चलता है कि पूरी कार्ययोजना हूबहू है. अब यह चिंता का विषय है. निश्चित रूप से इस टूलकिट के रचनाकारों का उद्देश्य सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक समूहों के बीच मतभेद पैदा करना और सरकार के खिलाफ असहमति और अशिष्टता को प्रोत्साहित करना है. इसका मकसद भारत सरकार के खिलाफ सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जंग छेड़ना था.’

गायिका रिहाना और थनबर्ग समेत विश्व की जानी-मानी हस्तियों द्वारा प्रदर्शनकारी किसानों का समर्थन करने की पृष्ठभूमि में दिल्ली पुलिस का यह बयान आया है.

केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों को अपना समर्थन देते हुए पर्यावरण कार्यकर्ता थनबर्ग ने उन लोगों के लिए एक ‘टूलकिट साझा किया था, जो मदद करना चाहते हैं.’

यह टूलकिट एक दस्तावेज है, जो ट्विटर पर किसानों के लिए समर्थन जुटाने के लिए और भारतीय दूतावासों के बाहर विरोध प्रदर्शन करने जैसे कार्यों का सुझाव देता है.

अधिकारी के मुताबिक, इस दस्तावेज में किसानों के समर्थन में ट्विटर पर ट्वीट की झड़ी लगाने और भारतीय दूतावासों के बाहर प्रदर्शन करने की भी योजना तैयार की गई थी.

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर अपलोड दस्तावेज में 26 जनवरी को और उससे पहले डिजिटल जगत में कई ट्वीट करने की बात कही गई थी.

विशेष पुलिस आयुक्त ने कहा, ‘दिल्ली पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह), 153ए (सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक आधार पर विभिन्न समुदायों के बीच घृणा को बढ़ावा देना), 153 (दंगा करने के इरादे से भड़काना) और 120बी (इस तरह की योजना को आकार देने के लिए आपराधिक साजिश) के तहत एक मामला दर्ज किया है. साइबर सेल मामले की जांच करेगी.’

उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन के दौरान पुलिस सोशल मीडिया पर भी नजर रख रही है. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि 300 से ज्यादा ऐसे अकाउंट हैं, जिनसे आंदोलन के नाम पर सरकार के खिलाफ ट्वीट किए जा रहे थे.

केस दर्ज किए जाने के तुरंत बाद ग्रेटा ने एक और ट्वीट कर कहा, ‘मैं अभी भी किसानों के साथ हूं और उनके शांतिपूर्ण आंदोलन का समर्थन करती हूं. घृणा, धमकी या मानवाधिकारों का उल्लंघन इसे कभी बदल नहीं पाएगा.’

मालूम हो कि बीते तीन फरवरी को पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन की दिशा में काम करने वाली ग्रेटा थनबर्ग ने भी सीएनएन का लेख शेयर करते हुए किसानों के आंदोलन के प्रति अपना समर्थन जताया था.

थनबर्ग ने ट्वीट कर कहा था, ‘हम भारत में किसानों के आंदोलन के प्रति एकजुट हैं.’

उनसे एक दिन पहले अंतरराष्ट्रीय पॉप स्टार रिहाना ने भी ‘इंडिया कट्स इंटरनेट अराउंड न्यू डेल्ही ऐज प्रोटेस्टिंग फार्मर्स क्लैश विद पुलिस’ शीर्षक से प्रकाशित सीएनएन के इस लेख को शेयर कर किसान आंदोलन के प्रति समर्थन जताया था.

रिहाना और थनबर्ग के बाद जहां दुनियाभर की कई अन्य हस्तियों ने भी किसानों के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की, वहीं दोनों को भारत में ट्रोलिंग का शिकार भी होना पड़ा था.

किसान आंदोलन को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिल रहे समर्थन के बीच विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर इसे गैर जिम्मेदाराना बताया था.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने बयान जारी कर कहा था, ‘सनसनीखेज सोशल मीडिया हैशटैग और कमेंट्स से लुभाने का तरीका, खासकर जब मशहूर हस्तियों और अन्य लोगों द्वारा किया गया हो तो यह न तो सटीक है और न ही जिम्मेदाराना है.’

इस संबंध में विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘इस तरह के मामलों पर टिप्पणी करने से पहले हम आग्रह करते हैं कि तथ्यों का पता लगाया जाए और मुद्दों की उचित समझ की जाए. भारत की संसद ने पूर्ण बहस और चर्चा के बाद कृषि क्षेत्र से संबंधित सुधारवादी कानून पारित किए.’

विदेश मंत्रालय के इस बयान के बहुत से भारतीय कलाकारों और खिलाड़ियों ने समर्थन किया था.

मालूम हो कि किसान आंदोलन ने उस समय अंतरराष्ट्रीय ध्यान खींचा है, जब दिल्ली की सीमाओं को किले में तब्दील कर दिया गया है. पुलिस ने वाहनों की आवाजाही को रोकने के लिए कई स्तरीय बैरिकेडिंग की है. इंटरनेट सेवाओं को बंद कर दिया गया है.

केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए कृषि से संबंधित तीन विधेयकों– किसान उपज व्‍यापार एवं वाणिज्‍य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्‍य आश्‍वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्‍यक वस्‍तु (संशोधन) विधेयक, 2020- के विरोध में पिछले दो महीने से किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं.

इसे लेकर सरकार और किसानों के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है.

किसान तीनों नए कृषि कानूनों को पूरी तरह वापस लिए जाने तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दिए जाने की अपनी मांग पर पहले की तरह डटे हुए हैं.