पिछले सत्तर दिनों से तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ हो रहे किसान आंदोलन का केंद्र बने धरनास्थलों में से एक ग़ाज़ीपर बॉर्डर पर बैरिकेडिंग बढ़ाने के साथ, कंटीले तार और कीलें गाड़ दी गई हैं. प्रदर्शनकारियों का कहना है कि इसका मक़सद दिल्ली और आसपास के इलाकों से आने वाले लोगों को रोकना है.
नई दिल्ली/गाजियाबाद: पिछले 70 दिनों से केंद्र सरकार के तीन नए और विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन का केंद्र बनने वाले तीन बड़े धरना स्थलों में सबसे कम प्रदर्शनकारी दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे थे.
हालांकि, बीते 28 और 29 जनवरी के घटनाक्रम के बाद से गाजीपुर बॉर्डर आंदोलन का केंद्र बनता जा रहा है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ ही हरियाणा और राजस्थान से भी हजारों की संख्या में किसान प्रतिदिन आंदोलन में शामिल होते जा रहे हैं. किसानों का दावा है कि वहां आंदोलनकारियों की संख्या एक लाख पार कर गई है.
यही कारण है कि दिल्ली पुलिस ने सिंघू और टिकरी (किसान आंदोलन के दो अन्य बड़े धरना स्थल) के साथ ही गाजीपुर बॉर्डर पर भी सुरक्षा रेखा बेहद सख्त कर दिया है.
इसके तहत बीच सड़क और हाईवे पर ही कंक्रीट की दीवारें बना दी गई हैं. बैरिकेडिंग के कई लेयर लगा दिए गए और लंबी दूरी व ऊंचाई तक कंटीले ८/तार लगा दिए गए हैं. इसके साथ बैरिकेडिंग के सामने सड़क पर ही लोहे की कीलें गाड़ दी गई हैं.
इस तरह की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रदर्शनकारी और किसान नेता ही नहीं बल्कि विपक्ष, नागरिक समाज के लोग भी उठा रहे हैं. वहीं सोशल मीडिया साइटों पर भी लोग इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं.
वहीं, सरकार ने तीनों ही धरना स्थलों और उनके आस-पास के इलाकों में भी कई बार इंटरनेट को बंद किया जिसे न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने कवर किया बल्कि अमेरिका ने इंटरनेट की उपलब्धता सुनिश्चित कराने पर जोर दिया.
आंदोलन में स्थानीय लोगों को शामिल होने से रोकने के लिए बढ़ाई बैरिकेडिंग
बीते 26 नवंबर से गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन में शामिल हरियाणा के रोहतक के 61 वर्षीय लालाराम कहते हैं, ‘सरकार ने यह सारी कवायद आंदोलन को कमजोर करने के लिए की हुई है. हमारे हौसले कमजोर नहीं हैं. दिल्ली से भी लोग बड़ी संख्या में आ रहे हैं. यहां तक कि पुलिस भी हमारे लोगों को आने में मदद करती है.’
20 बीघा जमीन के मालिक लालाराम ने अपनी साइकिल पर तिरंगा लगाया हुआ है और बीच-बीच में यहां से सिंघू और टिकरी तक का चक्कर भी उसी साइकिल से लगाते रहते हैं.
लालाराम देश की मीडिया से भी खासे नाराज नजर आते हैं. वह कहते हैं, ‘अगर पत्रकारों ने हमारे बारे में सही खबर दिखाई होती तो ऐसा नहीं होता. पत्रकारों पर भी बहुत दबाव होता है.’
वे कहते हैं कि अब तो वकील भी हमारे समर्थन में आ गए हैं और संगरूर बार एसोसिएशन के 20-25 वकीलों के एक समूह ने कहा है कि सरकार कोई भी केस चलाएगी तो वे हमारा मुकदमा लड़ेंगे.
बता दें कि बीते सोमवार को पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा घोषणा की कि पंजाब सरकार ने किसानों को कानूनी सहायता देने के लिए दिल्ली में 70 वकीलों को नियुक्त किया है.
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने हेल्पलाइन नंबर 112 शुरू किया है, जिस पर लोगों को ट्रैक्टर परेड के बाद ‘लापता लोगों‘ के बारे में रिपोर्ट करने के लिए कहा गया है.
Punjab Government has already arranged a team of 70 lawyers in Delhi to ensure quick legal recourse to farmers booked by the Delhi police. I will personally take up the issue of missing farmers with MHA & ensure these persons reach home safely. For assistance call 112.
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) February 1, 2021
प्रतापगढ़ के आजाद नगर के रहने वाले 27 वर्षीय जैद खान बीते 1 दिसंबर से आंदोलन में शामिल हैं. वे कहते हैं, ‘जब इन्होंने देखा कि शुक्रवार, शनिवार और रविवार को वीकेंड पर गुड़गांव, नोएडा, दिल्ली से लोकल लोग आ रहे हैं तब मोदी जी ने बैरिकेडिंग लगवा दी. इसके बाद भी लोग खेतों में से आ रहे तो झाड़ियों में जेसीबी से खुदवा दिया है. वहां पुलिस वाले भी बैठे रहते हैं. हालांकि, इसके बाद लोग इधर-उधर से घूम-फिरकर आ रहे हैं.’
वे कहते हैं, ‘नोएडा, गाजियाबाद के लोग दिल्ली नौकरी के लिए जाते हैं और यह उन्हें परेशान करने के लिए है कि आप सुबह 6 बजे घर से निकलो और 11 बजे ऑफिस पहुंचो.’
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के पिंडकाली गांव के रहने वाले 34 वर्षीय सोनू डबास कहते हैं, ‘आंदोलन तोड़ने के लिए सरकार हर हथकंडे अपनाएगी. आप फिर भी देख रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा आदमी आ रहे हैं. इनका मकसद आम जनता को किसान के खिलाफ भड़काना है. वरना दो लाइन तो खुली थी, वह क्यों बंद कर दी. जब हमने एंबुलेंस का रास्ता दिया हुआ था तब क्या जरूरत थी कीलें ठोंकने की, बैरिकेडिंग लगाने की. यह तो सरकार चाहती है कि आम जनता दुखी हो और किसान के खिलाफ खड़ी हो. भाजपा का तो काम है लड़ाना, पर सब किसान के साथ ही हैं. किसान मजदूर बहुत बड़ी जनसंख्या हैं इस देश में.’
वे कहते हैं, ‘उधर (26 जनवरी की हिंसा के बाद) 27 से लेकर तीन दिन तक बिजली-पानी काट दी थी लेकिन फिलहाल यहां पानी आ रहा, लाइट भी पर्याप्त आ रही है और सफाई भी हो रही है.’
हालांकि, वे कहते हैं कि सिंघू बॉर्डर पर पानी की आपूर्ति नहीं हो रही है जिसके कारण उन्होंने अपना सबमर्सिबल लगा लिया है.
सोनू के पास 40 बीघा खेती है जिसमें वे मुख्य रूप से गन्ने की खेती करते हैं. वे कहते हैं, ‘हम गन्ने की खेती करते हैं. हमारा पिछले साल का ही गन्ने का पेमेंट नहीं आया अभी तक तब बताइए क्या करें. जो पूरी तरह से खेती पर निर्भर हैं उनसे पूछकर देखिए आप कि उनका खर्च कैसे चल रहा है. इस साल भी तीन महीने का सीजन चला गया है लेकिन अब तक भाव भी नहीं घोषित किया गया. सरकार तो हमें चौतरफा मारना चाह रही है.’
सरकार को एक अक्टूबर तक का समय दिए जाने के किसान नेता राकेश टिकैट के बयान पर वे कहते हैं, ‘अक्टूबर में एक साल का समय पूरा हो जाएगा. एक साल में गन्ने की फसल कटती है. अक्टूबर में आंदोलन शुरू हुआ था और अक्टूबर तक ले जाएंगे. इसके बाद जैसा संयुक्त मोर्चा कहेगा, वैसा करेंगे लेकिन लड़ेंगे नहीं, न दंगा करेंगे… यहीं बैठे रहेंगे.’
बता दें कि किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि दिल्ली की सीमाओं पर यह आंदोलन इस साल अक्टूबर तक चलेगा और ग्रामीण इसका समर्थन करेंगे.
वहीं, संयुक्त किसान मोर्चा ने छह फरवरी को दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड छोड़कर 3 घंटे के लिए राष्ट्रव्यापी चक्काजाम की घोषणा की है और कहा है कि जो लोग जाम में फंसेंगे उन्हें खाना-पानी सारी चीजें मुहैया कराई जाएंगी और इस दौरान हम उन्हें बताएंगे कि सरकार हमारे साथ क्या कर रही है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के इस गुस्से का उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को नुकसान हो सकने के सवाल पर वे कहते हैं, ‘भाजपा को इसका खामियाजा तो भुगतना पड़ेगा. आपने देखे होंगे कि बैनर लग चुके हैं कि भाजपा के नेताओं का आना मना है. किसान विरोधी भाजपा, कांग्रेस, सपा कोई भी हो, हम उसे वोट नहीं देंगे.’
बिजनौर के स्योहारा गांव के रहने वाले 16 वर्षीय वंश चौधरी कहते हैं कि उनके गांव में उन्होंने खुद ऐसा बैनर लगाया है.
20 जनवरी से आंदोलन में शामिल वंश 11वीं कक्षा के छात्र हैं. उनके बड़े भाई गाजियाबाद में नौकरी करते हैं, एक दुर्घटना के बाद से उनके पिता बेड पर ही रहते हैं.
इतनी कम उम्र में आंदोलन में शामिल होने के सवाल पर वह कहते हैं, ‘भगत सिंह 23 साल की उम्र में शहीद हुए थे और 17 साल की उम्र में एक खुदीराम बोस थे शायद, जो शहीद हुए थे. इसलिए मेरे पास अभी एक साल का समय शहीद हो जाऊं, कोई बड़ी बात नहीं. अपने मां-बाप का नाम करके जाएंगे, यही चाहिए.’
पढ़ाई का नुकसान होने के सवाल पर वह कहते हैं, ‘जब खाने को नहीं मिलेगा तो पढ़ाई का क्या होगा? अभी थोड़ी देर पहले ही एक भाई अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर आया है. यह कोई बड़ी बात नहीं है. अपनी नस्ल के लिए जीना है, बस. आज मुझे जीएसटी का मतलब समझ में आ गया है. जीएसटी मतलब गाजीपुर, सिंघू और टिकरी जिंदाबाद.
25 वर्षीय प्रशांत चौधरी बुलंदशहर के अनूपशहर विधानसभा क्षेत्र से हैं. वह बीते 27 नवंबर से ही आंदोलन में शामिल हैं. वह दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में पोस्ट ग्रेजुएशन के छात्र हैं.
वे बताते हैं, ‘क्लास ऑनलाइन चल रही है. मैं रोज क्लास अटेंड करता हूं. यहां से डेढ़-दो किलोमीटर दूर जाने पर नेटवर्क आ जाता है.’
वे कहते हैं कि आंदोलन के दौरान अपने सिख भाइयों से हमने सेवाभाव बहुत सीखा है. अब हम भी इनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर बहुत सेवा देते हैं.
वे आगे कहते हैं, ‘इतने दिनों के आंदोलन में हमारा देश के लिए प्रेम बढ़ा ही है… हमारा गुस्सा केवल सरकार के खिलाफ है. राष्ट्र तो लोगों से ही बनता है और हम सब मिलकर एक राष्ट्र बनाते हैं. हम भी इसका हिस्सा हैं, हम तो अच्छे हैं. सरकार ही तानाशाही करती है और हमें कभी धर्म के नाम और कभी जाति के नाम पर बांटने का प्रयास करती है. यहां सिख, हिंदू, मुस्लिम, गुज्जर, जाट, यादव, त्यागी सब हैं. यहां मुस्लिम लंगर भी चलाते हैं. भले ही सभी किसान न हों लेकिन अन्न तो सभी खाते हैं. लड़ाई तो अन्न की ही है. जब बोने वाला नहीं रहेगा तो खाने वाला अपने आप खतरे में पड़ जाएगा.’
आंदोलन में शामिल किसान सुरक्षा घेरा सख्त किए जाने से बेचैन होते नहीं दिख रहे हैं बल्कि कह रहे हैं इससे उनका हौसला बढ़ा ही है.
अलीगढ़ के बसेरा गांव के रहने वाले 58 वर्षीय प्रकाश कहते हैं, ‘यह आंदोलन न तो कमजोर हुआ है और न ही होगा. कोई भी जंजीर हमें रोक नहीं पाएगी.’
बसेरा के ही रहने वाले 63 वर्षीय कलुआ शुरू से ही आंदोलन में शामिल हैं और वे अपने घर से पैदल ही गाजीपुर बॉर्डर तक आए थे. वे कहते हैं, ‘बैरिकेडिंग बढ़ाने के कारण लोगों को आने-जाने में दिक्कत हो रही है लेकिन वे इधर-उधर से घूमकर आ-जा रहे हैं. ऐसी कोशिशों से सरकार हमारा हौसला नहीं तोड़ पाएगी.’
कीलों से घायल हो रहे प्रदर्शनकारी
गाजीपुर बॉर्डर पर लगाई गई लोहे की कीलों से प्रदर्शनकारी घायल भी हो रहे हैं. वहां मेडिकल कैंप लगाने वाले डॉक्टरों ने द वायर को बताया कि कीलों से अब तक कम से कम 20 प्रदर्शनकारी घायल हो चुके हैं.
गाजियाबाद निवासी 35 वर्षीय मनीषा चौधरी बीते दो फरवरी को हरियाणा स्थित सिरसा के करीब 40 साल के एक प्रदर्शनकारी के कील से घायल होने की प्रत्यक्षदर्शी हैं.
उन्होंने बताया, ‘एक प्रदर्शनकारी यहां की गई बैरिकेडिंग और फेंसिंग देखने आए हुए थे और उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि सरकार ने इतनी नुकीली कीलें लगाई हुई हैं. कील उनके जूते को पार करते हुए पैर में घुस गई. यह कम से कम चार इंच की कील है. मैं उस दौरान यहां मौजूद थी. अभी उनको मलहम-पट्टी के लिए लेकर गए हैं. ’
वे आगे बताती हैं, ‘इस तरह की तैयारी कर रही है हमारी सरकार जैसे वो आतंकवादी हों, या ये दिल्ली में जबरदस्ती पहुंच जाएंगे. जो घेराबंदी, तारबंदी चीन की सीमा पर करनी चाहिए… वहां तो हो नहीं रही इनसे… चीन तो अंदर घुस आया पूरा गांव बसा लिया चीन ने और जो हमारा किसान पिछले दो-ढाई महीने से बिल्कुल शांतिपूर्वक बैठा हुआ है बॉर्डर पर, उससे इसको इतना डर लग गया कि इस तरह नुकीली कीलें लगा दीं, ये कंटीले तार और इस तरह की घेराबंदी की गई है.’
वहां मौजूद बुलंदशहर से आए हुए 27 वर्षीय प्रदर्शनकारी दुष्यंत कुमार कहते हैं, ‘मैं सीधी बात यह पूछना चाहता हूं कि हमारे प्रधानमंत्री चीन पर रोक नहीं लगाते, पाकिस्तान पर रोक नहीं लगाते. जो आतंकवादियों के साथ करना चाहिए वह उनके साथ नहीं कर पाते हैं लेकिन अपने देश के…जो हमारे अपने मतदाता हैं, जिन्होंने उनको बनाया उनकी यह दुर्दशा करना चाहते हैं. आतंकवादियों से बुरा हाल अपने देशवाशियों का करना चाहते हैं. शर्म आनी चाहिए देश के ऐसे प्रधानमंत्री को… शासन-प्रशासन को जिनकी रक्षा करनी चाहिए उनके साथ ऐसा किया जा रहा है.’
घायल प्रदर्शनकारी को मेडिकल के लिए ले जाने वाले वेटरन एसोसिएशन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हरविंदर सिंह राणा ने बताया, ‘यह सूचना मिलने के बाद बैरिकेडिंग की गई है, तार लगाए गए हैं, आगे कीलें लगाई गई हैं, हम लोग आज (2 फरवरी) घूमते हुए उधर गए थे. हम वहां पहुंचे तो एक साथी, जो खुद को सिरसा से आया हुआ बता रहे थे, के पैर में एक कील लग गई थी जो सुरक्षा के उद्देश्य से लगाई गई है.’
उनका कहना है, ‘ठीक है, आपने लगाई है, सुरक्षा का उद्देश्य है, मैं उसपे सवाल नहीं खड़े कर रहा हूं. लेकिन जहां भी इस तरह की चीजें लगाई जाती हैं…कहीं पर सिक्योरिटी की जाती है तो जिस फोर्स ने भी यह किया है, मैं उनसे यह कहना चाहूंगा कि वहां से कुछ दूर पर (लोगों को) सावधान करने वाला या चेतावनी देने वाला एक बोर्ड लगाया जाता है कि आजे तार है, बैरिकेडिंग है, कील है… आगे न जाएं. या तो जिनका काम था उन्होंने नहीं किया. उसके बाद दिल्ली पुलिस की भी विफलता है कि उन्होंने इसे क्यों नहीं चेक किया. अभी तो केवल एक व्यक्ति को चोट लगी है, कोई और भी जा सकता है वहां… यहां भोले-भाले किसान आए हुए हैं.’
वहीं, इस तरह का सुरक्षा घेरा किए जाने पर भी सवाल उठाते हुए वह कहते हैं, ‘ऐसी सिक्योरिटी क्यों? ऐसी सिक्योरिटी आप बॉर्डर पर कीजिए… जहां जरूरत है हमें, जहां हमारे सैनिक लगातार शहीद हो रहे हैं. वहां पर अगर आप ऐसी सिक्योरिटी दें तो शायद बहुत अच्छे रिजल्ट आएंगे.’
गाजीपुर बॉर्डर पर मेडिकल कैंप लगाने वाली और घायल शख्स की ड्रेसिंग करने वाली रेखा शर्मा ने द वायर को बताया, ‘आज कल (1 और दो फरवरी) को कुल मिलाकर हमने कील से घायल होने वाले 20 से 25 लोगों की ड्रेसिंग करवाई और टिटनेस के टीके लगाए. इससे हमारे किसान भाइयों को बहुत परेशानी हो रही है और इतने अंधेरे में लगा रखी है कि पता ही नहीं चल रहा है कि क्या है? लोहे की जो कीलें लगा रखी हैं वह आर-पार हो जा रही हैं. आगे पता नहीं कितने लोगों को चुभेगी क्योंकि वह हटाने का काम नहीं कर रहे हैं बल्कि और सख्त कर रहे हैं.’
दूसरे राज्यों से आ रहे प्रदर्शनकारियों का कोविड उल्लंघन पर चालान काट रही दिल्ली पुलिस
बीते 29 जनवरी को उत्तर प्रदेश के किसान नेता राकेश टिकैत के भावुक होने के बाद से पश्चिमी उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि हरियाणा और राजस्थान के लोग भी किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंच रहे हैं.
हालांकि, ऐसे में दिल्ली पुलिस आंदोलन में शामिल होने के लिए पहुंच रहे लोगों का कोविड महामारी संबंधी उल्लंघन के लिए चालान भी काट रही है.
राजस्थान के करौली की रहने वाली 35 वर्षीय अनीता जाधव ने बताया, ‘हम किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए आए हैं. हम दिल्ली हाइवे पर थे और नंबर प्लेट देखते ही पुलिसवालों ने गाड़ी रोकी. उन्होंने कहा कि आपका चालान कटेगा क्योंकि आप लोगों ने मास्क नहीं पहना है. गाड़ी में सिर्फ चार लोग बैठे थे और आगे बैठे दोनों लोगों ने मास्क पहना था और पीछे बैठे दोनों लोगों ने दुपट्टा लगा रखा था. उन्होंने कहा कि यहां दो हजार रुपये का जुर्माना है और पीछे बैठे दोनों लोगों ने मास्क नहीं लगा रखा है इसलिए आपका चार हजार रुपये का चालान कटेगा. हमारे सामने उन्होंने किसी अन्य का चालान नहीं काटा.’
जाधव गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन में शामिल होने के लिए दो अन्य लोगों और एक ड्राइवर के साथ राजस्थान से आ रही थीं.
45 वर्षीय मैमवती ने बताया, ‘हमारे सामने उन्होंने न तो कोई और गाड़ी रोकी और न ही किसी अन्य का चालान काटा. जब वह फोटो खीच रहे थे तब हमने यह देखने के लिए दुपट्टा हटाया था कि शायद किसी गाड़ी की चेकिंग कर रहे होंगे. हमने उनसे बोला था कि भाई हमने दुपट्टा बांध रखा है कि नहीं. गाड़ी में सिर्फ चार लोग थे जिसमें एक ड्राइवर और तीन हम लोग थे. पहले तो उन्होंने दो लोगों का चालान काटने पर जोर दिया लेकिन बहुत कहने पर कहा कि एक का तो चालान कटेगा ही कटेगा.’
एक निजी स्कूल में 32 वर्षीय टीचर रवि ने कहा, ‘प्रधानमंत्री जी गमछा लगाकर आते हैं. उन्होंने कभी नहीं कहा कि आपके लिए मास्क जरूरी है. उन्होंने कहा कि आप कपड़ा भी बांध सकते हैं. उसके हिसाब से हमारे पास मफलर था और वह हमने लगा रखा था. पहले तो उन्होंने गाड़ी का नंबर देखा और तब हमने लगा कि वह गाड़ी की चेकिंग करेंगे और कागज वगैरह देखेंगे. लेकिन इसके बजाया उन्होंने हमसे सीधा-सीधा कहा कि आपका चालान कटेगा.
उन्होंने आगे कहा, ‘मैडम (अनीता) ने पूछा कि किसी चीज का चालान कटेगा तो उन्होंने कहा कि आप लोगों ने मास्क नहीं लगा रखे हैं. हमने कहा कि हमारे पास मफलर है और हम एसओपी (मानक संचालन प्रक्रियाओं) का पालन कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि आपको दिल्ली के कानूनों का नहीं पता. अगर मास्क नहीं लगाते हैं तो दो हजार रुपये के चालान का प्रावधान है. उन्होंने मफलर का माना ही नहीं और कहा कि हमें मास्क चाहिए मास्क.’
उन्होंने आगे बताया, ‘हमने उनसे ज्यादा बहस नहीं की क्योंकि हम जिस काम के लिए जा रहे थे वह हमारे लिए ज्यादा जरूरी था. हमें (राकेश) टिकैत साहब से मिलना था इसलिए लड़ाई-झगड़े के बजाय हमने उन्हें पैसे दे दिए. उन्होंने स्लिप दी. दो हजार रुपये देकर हम यहां आए.’
चालान काटने पर सवाल उठाते हुए वे कहते हैं, ‘दिल्ली में हमने देखा था कितने ही लोग बिना मास्क के निकले थे लेकिन उनका चालान नहीं काटा था, हमारा ही काटा था, गाड़ी का नंबर प्लेट देखने के बाद. हमें दूसरे राज्य से आंदोलन में शामिल होने के लिए आते देख ही चालान काटा गया है. इतने सारे लोग रैलियां करते हैं, भाजपा सरकार के मंत्री भी करते हैं… उनका किसी का चालान नहीं कटता है. लोगों का चालान कट रहा है तो कहीं न कहीं यह अंधेर है.’
आंदोलन में शामिल होने का कारण पूछने पर वे बताते हैं, ‘पूरे साल से स्कूल बंद हैं. लगभग सभी प्राइवेट टीचर बेरोजगार हो चुके हैं. उनके पास ऐसी कोई आर्थिक मदद भी नहीं है कि वह अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकें. हमने सरकार से मांग की थी कि जहां कोरोना नहीं है वहां स्कूलों को ओपन करवा दो लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं और न ही हमें कोई आर्थिक मदद मिली. बेरोजगार होने के कारण इस आंदोलन में हम आए.’