पांच जनवरी को गुजरात के मुख्य सूचना आयुक्त ने भावनगर ज़िले के स्वास्थ्य विभाग के जन सूचना अधिकारियों को निर्देश जारी कर कहा था कि वे अगले पांच साल तक तीन लोगों, जो कि एक ही परिवार के हैं, से आरटीआई एक्ट के तहत आवेदन या अपील स्वीकार न करें.
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नई दिल्ली: जानी-मानी आरटीआई कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने बीते बुधवार को कहा कि गुजरात राज्य सूचना आयोग (जीएसआईसी) के उस फैसलों को जरूर चुनौती दी जानी चाहिए, जिसने ये कहते हुए चार लोगों पर आरटीआई दायर करने से रोक लगा दी है कि ‘इस कानून का इस्तेमाल बदला लेने’ के लिए नहीं किया जा सकता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक रॉय ने कहा, ‘हम कानून के तहत इस आदेश को चुनौती दे सकते हैं. इसके अलावा आदेश का विरोध करते हुए करीब 3-4 लाख लोगों के हस्ताक्षर प्राप्त किए जा सकते हैं और एक समूह आयोग के सामने इसे पेश कर सकता है, जिसने ये आदेश पारित किया है. इसके साथ ही हम सार्वजनिक सुनवाई कर सकते हैं, जहां हम इन आदेशों पर चर्चा कर सवाल उठा सकते हैं.’
अरुणा रॉय आरटीआई की दिशा में कार्य करने वाले संगठन एनसीपीआरआई द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रही थीं. इसमें मध्य प्रदेश एवं राजस्थान के सूचना आयुक्त, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त, विभिन्न राज्यों के आरटीआई कार्यकर्ताओं समेत अन्य लोग शामिल हुए.
मालूम हो कि बीते पांच जनवरी को गुजरात के मुख्य सूचना आयुक्त डीपी ठाकेर ने भावनगर जिले के स्वास्थ्य विभाग के जन सूचना अधिकारियों को निर्देश जारी कर कहा था कि वे अगले पांच साल तक तीन लोगों, जो कि एक ही परिवार के हैं, से आरटीआई एक्ट के तहत आवेदन या अपील स्वीकार न करें.
इनकी पहचान चिंतन मकवाना, उनकी पत्नी दिलाहरिबेन और उनकी माता भारतीबेन के रूप में हुई है.
अपने केस के बारे में बताते हुए चिंतन मकवाना और उनकी पत्नी दिलाहरिबेन ने कहा, ‘उन्होंने हमें द्वितीय अपील में ब्लैकलिस्ट कर दिया. उन्होंने हमें सुना नहीं, उल्टा हम पर ढेर सारी आरटीआई दायर करने का आरोप लगाया और पूछा कि आपको ब्लैकलिस्ट क्यों नहीं किया जाना चाहिए.’
माहिति अधिकार गुजरात पहल (एमएजीपी) की पंक्ति जोग ने कहा, ‘आदेश में कहा गया है कि आवेदक ने 22 आरटीआई आवेदनों के साथ-साथ 1000 से अधिक ईमेल भेजे हैं, जिसे आयोग ने उत्पीड़न के रूप में लिया और आदेश में बिना किसी तथ्य के आधार पर विभाग को कार्य करने से रोक दिया.’
इसी तरह पिछले साल 11 दिसंबर गुजरात सूचना आयोग के एक अन्य सूचना आयुक्त रमेश करिआ ने मनोज कुमार सरपददिया के खिलाफ आदेश पारित किया और उन्हें आरटीआई फाइल करने से ब्लैकलिस्ट कर दिया था.
मनोज कुमार गुजरात राज्य सड़क परिवहन निगम (जीएसआरटीसी) में कंडक्टर हैं और अमरेली के रहने वाले हैं.
आरटीआई विशेषज्ञों के पैनल ने कहा कि नागरिकों को ब्लैकलिस्ट करने का आदेश अप्रत्याशित और चौंकाने वाला है. आयोग से उम्मीद की जाती है कि वे रिकॉर्ड रखने, डिजिटलाइजेशन और सूचना के खुलासे की प्रक्रिया को और मजबूत करेगा, ताकि ज्यादा जानकारी सार्वजनिक पटल पर उपलब्ध हों.
मध्य प्रदेश के सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि महिला आवेदकों द्वारा दायर अपील को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और एक हेल्पलाइन शुरू की जाए, जहां आम नागरिक आरटीआई पर सलाह मांग सके.
वहीं राजस्थान के सूचना आयुक्त नारायण बर्थ ने कहा की आयोग को यह नहीं भूलना चाहिए कि पारदर्शिता की रक्षा और इसे बढ़ावा देने के लिए नागरिक उनसे बहुत उम्मीद करते हैं.
वहीं पूर्व सूचना आयुक्त और आरटीआई कार्यकर्ता शैलेष गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के उस ऐसे आदेशों का उल्लेख करते हुए इसकी आलोचना की, जिससे आरटीआई एक्ट प्रभावित हुआ है.