केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा राज्यसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत साल 2017-18 में किसानों के 92,869 दावों को ख़ारिज किया था. इसके अगले ही साल 2018-19 में आंकड़ा दोगुनी से भी ज्यादा हो गया है और इस दौरान 2.04 लाख दावों को ख़ारिज किया गया.
नई दिल्ली: मोदी सरकार की बेहद महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत दो सालों में किसानों के दावों को खारिज करने के मामलों में करीब 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा बीते शुक्रवार को राज्यसभा में पेश किए गए आंकड़ों से ये जानकारी सामने आई है.
पीएमएफबीवाई के तहत साल 2017-18 में किसानों के 92,869 दावों को खारिज किया था. इसके अगले ही साल 2018-19 में आंकड़ा दोगुनी से भी ज्यादा हो गया है और इस दौरान 2.04 लाख दावों को खारिज किया गया.
साल 2019-20 तक किसानों के फसल बीमा दावों को खारिज करने में 900 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और इस बीच कुल 9.28 लाख दावों को खारिज किया गया.
तृणमूल सांसद मानस रंजन भुनिया ने इसे लेकर संसद में सवाल पूछा था.
इसके जवाब में कृषि मंत्री तोमर ने बताया कि यदि सूखा या बाढ़ के चलते व्यापक नुकसान होता है तो ऐसे में पीएमएफबीवाई के तहत नुकसान का दावा करने की जरूरत नहीं पड़ती है, क्योंकि इसका आकलन उत्पादन में हुए नुकसान के आधार पर कर लिया जाता है.
हालांकि यदि छोटे क्षेत्र में नुकसान होता है तो इसके लिए दावा करने की अलग प्रक्रिया है. इस तरह के नुकसान स्थानीय ओलावृष्टि, भूस्खलन, सैलाब, बादल फटना या प्राकृतिक आग के चलते होती है.
ऐसी स्थिति में किसान को संबंधित बीमा कंपनी, राज्य सरकार या वित्तीय संस्थाओं को इसकी जानकारी देनी होती है, जिसके बाद राज्य सरकार और बीमा कंपनी के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त समिति नुकसान का आकलन करती है.
तोमर ने कहा, ‘इसलिए बीमा कंपनियां विभिन्न आधार जैसे कि दावों के बारे में देरी से बताने, नुकसान न होने इत्यादि के आधार पर दावों को खारिज कर सकती हैं.’
मालूम हो कि देश के विभिन्न हिस्सों से ऐसे कई मामले शामिल आए हैं, जहां किसानों ने शिकायत की है कि नुकसान होने के बावजूद बीमा कंपनियां उन्हें मुआवजा नहीं दे रही हैं.
पीएमएफबीवाई की गाइडलाइन के मुताबिक किसी सीजन की अंतिम कटाई पूरी हो जाने के दो महीने के भीतर दावों का निपटारा कर दिया जाना चाहिए.
नियम के मुताबिक, यदि बीमा कंपनियां इस समयसीमा के भीतर किसानों को भुगतान नहीं करती हैं, तो उन्हें 12 फीसदी की दर से ब्याज भरना होगा.
हालांकि पिछले कुछ सालों में ये देखने में आया है कि इस नियम का पालन नहीं हो रहा है और आमतौर पर काफी देरी से ही किसानों को उनके दावों का भुगतान किया गया है.