2002 जनसंहार के समय गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने पूछा कि क्या राज्य में घर जलाए गए, क्या बलात्कार, हत्याएं हुईं? नेता जब ऐसा पूछे तो वो ‘न’ सुनना चाहता है और नेता का स्वभाव जानने वाली जनता ने यही कहा. इसी जनता की तरह अब देश की जनता को असत्य में यक़ीन करने के लिए तैयार किया जा रहा है.
नेता अपनी जनता की जांच कर रहा है. वह रोज़-रोज़ उसकी जांच करता है कि वह कहीं उससे स्वतंत्र तो नहीं हो रही. इसके साथ यह भी कि वह उसके साथ कितना नीचे गिरने को तैयार है.
वह कितनी सतही, कितनी फूहड़ और कितनी हिंसक होने को प्रस्तुत है. कितनी ढिठाई और निर्लज्जता वह बर्दाश्त कर सकती है.वह धोखाधड़ी में साथ कितना आगे जा सकती है. कितनी असंवेदनशील और क्रूर हो सकती है.
नेता अपनी जनता का प्रशिक्षण इस दिशा में मुसलसल करता रहता है. एक बार जनता उसके साथ आ गई, इसका मतलब यह नहीं कि वह साथ बनी ही रहेगी. उन भावों में उसका अभ्यास बनाए रखना पड़ता है, जिनके कारण उसका और नेता का साथ बना है.
डोनाल्ड ट्रंप की चतुर्दिक भर्त्सना और व्हाइट हाउस से उनकी बेआबरू रुख़सत के बाद भी क्यों ट्रंप ने अपना उद्धत रवैया नहीं बदला?
इसका उत्तर खोजने हुए इस पर ध्यान देना जरूरी है कि ट्रंप के समर्थन का जनाधार अभी भी कमजोर नहीं हुआ है और बहुत घटा भी नहीं है.
इसका मतलब क्या है? अगर ट्रंप अपनी गलती मान लें या अपनी करनी के लिए माफ़ी मांग लें या अपना राजनीतिक और सामाजिक बर्ताव बदल दें तो उनकी जनता या उनके मतदाता के सामने उनकी प्रामाणिकता संदिग्ध हो जाएगी.
पूरी दुनिया ट्रंप की आलोचना करती रहे, फिर भी ट्रंप अपनी बदतमीज़ी पर अड़े रहे, तो उनकी जनता का उन पर भरोसा बना रहेगा. थोड़ी भी हिचकिचाहट या अपने पिछले स्टैंड के विचलन का दुष्परिणाम यह होगा कि उनकी अनुयायी जनता के सामने उनकी छवि खंडित होगी.
अक्सर लोग आश्चर्य करते हैं कि क्यों ट्रंप जैसा नेता झूठ पर झूठ बोलता जाता है, क्यों वह नफ़रत फैलाता है, क्यों वह जनता को विभाजित करता रहता है. वे यह नहीं समझ पाते कि यह ट्रंप की अपनी जनता को तैयार करते रहने की क़वायद है.
उसी तरह भारत की संसद में प्रधानमंत्री के वक्तव्य से कई लोग हैरान हैं. लोगों ने ठीक ही नोट किया है कि प्रधानमंत्री ने किसान आंदोलन की खिल्ली उड़ाई है.
वे दिखला रहे हैं कि किसान मूर्ख हैं और कुछ पेशेवर लोग उनकी क़ीमत पर आंदोलन खींच रहे हैं. यह आंदोलन विदेशी इशारे पर चलाया जा रहा है.
यह आरोप उस वक्त लग रहे हैं जब किसान आंदोलन विशाल से विशालतर होता जा रहा है. वह हर रोज़ और व्यापक भी हो रहा है.
कल तक जिनके मन में उसके प्रति घृणा या संदेह था, धीरे धीरे वे भी उसे समझने की कोशिश कर रहे हैं. वह मीडिया भी जो सरकार का प्रवक्ता है, छिपा नहीं पा रहा कि यह मात्र पंजाब तक सीमित नहीं रह गया है.
फिर भी आख़िर क्यों कृषि मंत्री, जो प्रधानमंत्री के प्रवक्ता ही हैं, की यह हिम्मत हुई कि वह संसद में सफ़ेद झूठ बोल पाएं कि कृषि संबंधी क़ानूनों को लेकर सिर्फ़ एक राज्य में भ्रम और विरोध है? और लाखों लोगों के सड़क पर निकल आने के बाद भी क्योंकर प्रधानमंत्री ने यह भाव दिखलाया जैसे उन्हें इस जनउभार से कोई फ़र्क़ न पड़ रहा हो!
प्रधानमंत्री ने गुजरात में यह अभ्यास किया है जब वे वहां मुख्यमंत्री थे. 2002 के जनसंहार के बाद जब पूरी दुनिया उनकी आलोचना कर रही थी कि उनकी सदारत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ सामूहिक हिंसा की गई, उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
अगर आपको गुजरात गौरव यात्रा की याद हो तो आप समझ सकते हैं कि झूठ में यक़ीन करना जनता को कैसे सिखलाया जा सकता है. जब तक़रीबन 3,000 लोग मारे चुके थे, हज़ारों लोग विस्थापित किए गए थे, सामूहिक बलात्कार में साधारण लोगों ने भाग लिया था, और इनमें से हरेक का रिकॉर्ड मौजूद था.
फिर भी 2002 के जनसंहार के समय गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अपनी जनता से पूछा कि क्या उसके राज्य में बच्चों को मारा गया, क्या घर जलाए गए, क्या बलात्कार हुए, क्या हत्याएं हुईं?
आप इन जनसभाओं के वीडियो देखें. जनता को मालूम है कि यह सब कुछ हुआ था. आख़िर बच्चे मारे गए थे, बलात्कार हुए थे, घर जलाए गए थे, इसी जनता के बीच से लोगों ने इस हिंसा में हिस्सा लिया था! फिर उनका नेता उनसे क्यों पूछ रहा था कि हत्या हुई या नहीं , बलात्कार हुआ या नहीं?
इस प्रश्न का एक ही उत्तर नेता चाहता था. जब वह पूछ रहा हो कि क्या हत्या हुई तो वह सुनना चाहता था कि हत्या नहीं हुई. वह उनसे झूठ सुनना चाहता था.
अपने नेता का स्वभाव पहचानने वाली जनता ने हर सवाल के जवाब में कहा, ‘न.’ न तो बलात्कार हुआ, न हत्या हुई थी. यह सब गुजरात और गुजरात के प्रिय मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ बाहरी तत्त्वों का दुष्प्रचार था. यह आरोप मात्र था. जो सच था उसे मुख्यमंत्री के उकसावे पर जनता ने झूठ करार दिया.
गुजरात की जनता की तरह ही भारत की जनता का प्रशिक्षण किया जा रहा है. इस जनता को अनेक प्रकार के असत्य में यक़ीन करना सिखलाया गया.
रामजन्मभूमि मंदिर को ध्वस्त करके बाबरी मस्जिद बनाई गई, यह ऐसा ही एक झूठ था. वैसे ही भारतीय संस्कृति के 12,000 वर्ष की प्राचीनता का झूठ. यह झूठ कि बांग्लादेशी भारत पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं.
यह झूठ क्यों मज़बूत हो रहा है? क्योंकि दूसरे राजनीतिक दल भी इनका विरोध नहीं कर पा रहे. क्योंकि राम मंदिर के झूठ का बाक़ी राजनीतिक दलों ने समर्थन किया. वामपंथी दलों को छोड़कर शायद ही कोई इस झूठ का विरोध कर पाया.
नेता जब झूठ विश्वास के साथ दुहराता है, उसकी जनता में उसकी प्रामाणिकता बढ़ती जाती है. उसकी जनता का उसमें गर्व भी उसी अनुपात में बढ़ता जाता है.
जवाहरलाल नेहरू ने गांधी और भारतीय जनता के रिश्ते पर बात करते हुए कहा था कि वे उसे बहुत उदात्त स्तर पर ले गए थे. इतना ही नहीं, वे बहुत लंबे वक़्त तक उसे इस ऊंची सतह पर टिकाए रखने में कामयाब हुए थे.
इसके ठीक उलट जनता को एक बार तलछट में घसीट लेने पर कहीं लंबे वक़्त तक वहीं रखा जा सकता है. जो उसे तलछट से ऊपर खींचने की कोशिश करे, उसके ख़िलाफ़ हिंसा भड़काई जा सकती है.
अभी प्रधानमंत्री यही कर रहे हैं. उन्होंने अपनी पार्टी की जांच कर ली है. ट्रंप का विरोध फिर भी रिपब्लिकन पार्टी के भीतर से हुआ. लेकिन भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से उनके अंगूठे के नीचे है. मीडिया प्रधानमंत्री का समर्थन ही नहीं, महिमामंडन करने को बेताब है.
इसी कारण प्रधानमंत्री इस विशाल जन आंदोलन को बेपरवाही से परे कर पा रहे हैं.वह अपनी जनता में विश्वास भी भर रहे हैं, उसे और गलाजत में घसीट रहे हैं. एक साथ उपहासात्मक, व्यंग्यात्मक और संरक्षणात्मक होने के पीछे यही राज है.
इम्तिहान भारत की उस जनता का हो रहा है जिसने प्रधानमंत्री को अपना नेता चुना है. जब तक वह यह इम्तिहान देने से इनकार नहीं करेगी, नेता का यह उद्धतपन बरकरार रहेगा.
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.)