राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा कि पिछले पांच सालों में नालों और टैंकों की सफाई के दौरान 340 लोगों की जान गई है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बुधवार को बताया कि देश में हाथ से मैला ढोने वाले (मैनुअल स्कैवेंजर) 66,692 लोगों की पहचान कर ली गई है. इनमें से 37,379 लोग उत्तर प्रदेश के हैं.
राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा कि पिछले पांच सालों में नालों और टैंकों की सफाई के दौरान 340 लोगों की जान गई है.
उन्होंने बताया कि जिन 340 लोगों की मौत हुई है, उनमें से 217 को पूरा मुआवजा दिया जा चुका है, जबकि 47 को आंशिक रूप से मुआवजा दिया गया है.
अठावले द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक हाथ से मैला ढोने वालों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है. इस मामले में महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है. यहां हाथ से मैला ढोने वाले 7,378 लोगों की पहचान की गई है जबकि उत्तराखंड में ऐसे 4,295 लोग हैं. असम में 4,295 लोगों की पहचान की गई है.
मालूम हो कि देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.
कानून में प्रावधान है कि अगर कोई मैला ढोने का काम कराता है तो उसे सजा दी जाएगी, लेकिन केंद्र सरकार खुद ये स्वीकार करती है कि उन्हें इस संबंध में किसी को भी सजा दिए जाने की कोई जानकारी नहीं है.
इस दिशा में कार्य कर रहे लोगों का आरोप है कि कई राज्य सरकारें जानबूझकर ये स्वीकार नहीं कर रही है कि उनके यहां अभी तक मैला ढोने की प्रथा चल रही है.
साल 2018 के सर्वे के दौरान 18 राज्यों में 170 जिलों के 87,913 लोगों खुद को मैनुअल स्कैवेंजर बताते हुए रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने इन्हें मैला ढोने वाला मानने से इनकार कर दिया. नतीजतन सरकार ने सिर्फ 42,303 लोगों की ही मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में पहचान की.
गौरतलब है कि मैला ढोने वालों का पुनर्वास सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की ‘मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए स्व-रोजगार योजना’ (एसआरएमएस) के तहत किया जाता है.
इसे लागू करने का काम मंत्रालय की संस्था नेशनल सफाई कर्मचारी फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएसकेएफडीसी) को दिया गया है.
मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए चलाई जा रही योजना के बजट में इस बार करीब 73 फीसदी की कटौती की गई है.
पिछले साल वित्त वर्ष 2020-21 के लिए इस योजना के तहत 110 करोड़ रुपये का आवंटन किया था, लेकिन अब इसमें कटौती (संशोधित) करते हुए इसे 30 करोड़ रुपये कर दिया गया है. यह आवंटित राशि की तुलना में 72.72 फीसदी कम है.
इसके अलावा आगामी वित्त वर्ष 2021-22 के लिए इस योजना का बजट 100 करोड़ रुपये रखा गया है, जो पिछले साल की तुलना में कम है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)