हरियाणा के पानीपत का मामला. आशा कार्यकर्ता को तीन फरवरी को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज दी गई थी. परिवार का आरोप है कि वैक्सीन की वजह से उनकी मौत हुई है, जबकि प्रशासन का कहना है कि उन्हें ट्यूमर था और यह उनकी मौत का कारण हो सकता है.
नई दिल्लीः हरियाणा के पानीपत में कोरोना वैक्सीन की पहली डोज लगने के नौ दिन बाद शुक्रवार को एक आशा कार्यकर्ता की मौत होने का मामला सामने आया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 35 वर्षीय आशा कार्यकर्ता कविता को तीन फरवरी को कोरोना वैक्सीन की पहली डोज दी गई थी. हालांकि, प्रशासन का कहना है कि अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की वजह से उनकी मौत हुई है.
जानकारी के मुताबिक, कविता को पानीपात के अटवाला गांव के सीएचसी में टीका लगाया गया था. टीका लगने के बाद उनमें खुराक के साइड इफेक्ट दिखने लगे थे और उन्हें बुखार भी था.
इसके बाद उनका परिवार उन्हें एक निजी अस्पताल में ले गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. परिवार का आरोप है कि जिला प्रशासन ने उनके लिए पर्याप्त चिकित्सा सुनिश्चित नहीं की थी.
हालांकि, मुख्य मेडिकल अधिकारी डॉ. संतलाल वर्मा ने कहा कि कविता की कोरोना वैक्सीन की वजह से मौत नहीं हुई. उन्होंने कहा कि उन्हें ट्यूमर था और यह उनकी मौत का कारण हो सकता है.
राज्य स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि पोस्टमार्टम के बाद ही उनकी मौत के कारणों का पता चल सकता है.
कविता बीते 12 सालों से बतौर आशा कार्यकर्ता काम कर रही थीं.
उनके पति सुरेश का कहना है, ‘तीन फरवरी को कविता को कोरोना का टीका लगने के बाद उन्हें बेचैनी होने लगी और तेज बुखार आया. उन्होंने दो दिनों तक दवाइयां लीं, लेकिन बुखार कम नहीं हुआ. हम उन्हें डॉक्टर के पास ले गए, जिन्होंने हमें उन्हें अस्पताल ले जाने को कहा. मैं उन्हें एक निजी अस्पताल में ले गया लेकिन हम उन्हें वहां भर्ती नहीं करा सके. आठ फरवरी को हमने उन्हें अग्रसेन अस्पताल में भर्ती कराया, जहां उनकी मौत हो गई.’
सुरेश ने कहा कि कविता को भूख लगनी बंद हो गई थी. उनका कहना है कि कई आग्रहों के बावजूद डॉक्टरों ने उन्हें दो दिन तक उनसे (कविता) मिलने नहीं दिया.
कविता की मां कृष्णा का आरोप है कि उनकी बेटी ने अपने वरिष्ठों के दबाव के कारण कोरोना वैक्सीन ली थी.
सुरेश ने कहा, ‘कोरोना के दौरान कविता लगन से अपना काम किया था. उसे कोरोना नहीं हुआ, लेकिन कोरोना वैक्सीन से उसकी मौत हो गई.’
कविता के परिवार में उनके पति के अलावा दो नाबालिग बच्चे हैं.
मालूम हो कि कोरोना वायरस की रोकथाम से संबंधित टीके लगाने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों से मौत के मामले सामने आए हैं.
बीते 26 जनवरी को ओडिशा के नौपाड़ा जिला मुख्यालय अस्पताल में 27 वर्षीय सिक्योरिटी गार्ड नानिकाराम कींट की मौत कोविड-19 वैक्सीन लगाने के तीन दिन बाद हो गई थी. स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि उनकी मौत का टीकाकरण से कोई संबंध नहीं है.
इसी तरह हरियाणा के गुड़गांव में बीते 22 जनवरी को कोविड-19 का टीका लगवाने वाली एक 55 वर्षीय महिला स्वास्थ्यकर्मी की बीते 22 जनवरी को मृत्यु हो गई थी. हालांकि अधिकारियों का कहना था कि इसका संबंध टीके से नहीं है.
दूसरी ओर मृतक के परिजनों का कहना था कि उन्हें संदेह है कि उनकी मौत टीका लगने की वजह से हुई है. महिला स्वास्थ्यकर्मी को 16 जनवरी को कोविशील्ड का टीका लगा था. वह गुड़गांव जिले के भांगरोला के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कार्यरत थीं.
इससे पहले तेलंगाना के निर्मल जिले में कोविड-19 का टीका लगवाने वाले एक 42 वर्षीय स्वास्थ्यकर्मी की मौत का मामला सामने आया था. इस मामले में भी अधिकारियों ने मौत के लिए टीके को जिम्मेदार नहीं ठहराया था.
इसी तरह मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 45 वर्षीय मजदूर दीपक मरावी की संदिग्ध परिस्थितियों में बीते साल 21 दिसंबर को मौत हो गई थी. उन्हें 12 दिसंबर 2020 को पीपुल्स मेडिकल कॉलेज (भोपाल) में भारत बायोटेक और आईसीएमआर द्वारा बनाई गई स्वदेशी कोवैक्सीन की खुराक दी गई थी. मृतक के परिवार का आरोप लगाया था कि वैक्सीन से उनकी जान गई है.