निजीकरण के लिए बैंक ऑफ इंडिया समेत चार बैंकों का चयन: रिपोर्ट

सरकार ने निजीकरण के लिए जिन चार बैंकों का चयन किया गया है वे बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया हैं. सरकार का यह कदम उसकी उस बड़ी योजना का हिस्सा है जिसके तहत वह सरकारी संपत्तियों को बेचकर राजस्व बढ़ाने की तैयारी कर रही है.

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(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

सरकार ने निजीकरण के लिए जिन चार बैंकों का चयन किया गया है वे बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया हैं. सरकार का यह कदम उसकी उस बड़ी योजना का हिस्सा है जिसके तहत वह सरकारी संपत्तियों को बेचकर राजस्व बढ़ाने की तैयारी कर रही है.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली/मुंबई: केंद्र सरकार ने मध्यम आकार के सरकार संचालित चार बैंकों का निजीकरण करने के लिए चयन किया है. तीन सरकारी सूत्रों ने इसकी जानकारी दी.

सरकार का यह कदम उसकी उस बड़ी योजना का हिस्सा है जिसके तहत वह सरकारी संपत्तियों को बेचकर राजस्व बढ़ाने की तैयारी कर रही है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, सरकार की भारी-भरकम हिस्सेदारी वाले इन बैंकों में सैंकड़ों-हजारों कर्मचारी काम करते हैं और बैंकिंग सेक्टर का निजीकरण राजनीतिक तौर पर जोखिम भरा है क्योंकि इससे नौकरियों पर खतरा मंडरा सकता है.

हालांकि, इसके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रशासन दूसरे दर्जे के बैंकों के साथ अपने लक्ष्य को शुरू करना चाहता है.

इस मामले के फिलहाल सार्वजनिक न होने के कारण अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर दो अधिकारियों ने रॉयटर्स को बताया कि जिन चार बैंकों का चयन किया गया है वे बैंक ऑफ महाराष्ट्र, बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया हैं.

अधिकारियों ने कहा कि इनमें से दो बैंकों की बिक्री के लिए चयन अप्रैल से शुरू होने वाले वित्त वर्ष 2021-22 में होगा. इससे पहले बैंकों के चयन की जानकारी सामने नहीं आई थी.

दरअसल, बीते 1 फरवरी को पेश केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विनिवेश योजना के तहत दो बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी.

इसके बाद 7 फरवरी को पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने इस बारे में बताने से इनकार किया था कि किस या किन बैंकों को बिक्री के लिए चुना जा रहा है.

उन्होंने इस बारे में पूछे जाने पर कहा था, ‘हम आपको बताएंगे, जब सरकार बताने के लिए तैयार होगी.’

उन्होंने कहा था कि सरकार बजट में घोषित बैंक निजीकरण योजना के कार्यान्वयन के लिए रिजर्व बैंक के साथ मिलकर काम करेगी.

अधिकारियों ने कहा कि अपने फैसले का सही-सही आकलन करने के लिए पहले चरण सरकार मध्यम आकार और छोटे बैंकों के निजीकरण पर विचार कर रही है. आने वाले सालों में वह देश के कुछ बड़े बैंकों पर भी ऐसा ही फैसला कर सकती है.

हालांकि, सरकार देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में अपनी अधिकतर हिस्सेदारी बरकरार रखेगी जो कि ग्रामीण ऋण देने जैसी पहलों को लागू करने के लिए एक रणनीतिक बैंक है.

वित्त मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि महामारी के कारण भारत की अर्थव्यवस्था में दर्ज किया जा रहा है भारी संकुचन बड़े सुधारों की मांग कर रहा है.

ऐसे में केंद्र सरकार बैंकिंग सेक्टर में आमूलचूल बदलाव लाना चाहती है जो गैर-निष्पादित संपत्तियों (एनपीए) के कारण भारी दबाव में चल रहे हैं और जब बैंकों को ऋणों को वर्गीकृत करने की अनुमति दी जाएगी तब महामारी में खस्ताहाल हुई स्थिति के कारण इनके और बढ़ने की ही संभावना है.

मोदी प्रशासन ने शुरुआत में चार बैंकों को आगामी वित्तीय वर्ष में बिक्री के लिए रखा है, लेकिन अधिकारियों ने कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले यूनियनों के प्रतिरोध से सतर्क रहने की सलाह दी है.

बता दें कि बैंक यूनियनों के अनुमान के मुताबिक, बैंक ऑफ इंडिया में लगभग 50,000 कर्मचारी हैं और सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में 33,000 कर्मचारी हैं, जबकि इंडियन ओवरसीज बैंक में 26,000 कर्मचारी हैं और बैंक ऑफ महाराष्ट्र में लगभग 13,000 कर्मचारी हैं.

सूत्रों ने कहा कि बैंक ऑफ महाराष्ट्र में कर्मचारियों की संख्या कम होने के कारण उसका निजीकरण करना आसान हो सकता है और इसलिए संभावित रूप से सबसे पहले बेचा जा सकता है.

एक सरकारी सूत्र ने बताया कि वास्तविक निजीकरण की प्रक्रिया शुरू होने में 5-6 महीने लग सकते हैं.

इस बीच सोमवार को श्रमिकों ने बैंकों के निजीकरण और बीमा और अन्य कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने के सरकार के कदम के विरोध में दो दिवसीय हड़ताल शुरू की.

सूत्रों ने कहा, ‘कर्मचारियों की संख्या, ट्रेड यूनियनों का दबाव और राजनीतिक नतीजे जैसे फैसले अंतिम निर्णय को प्रभावित कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि इन कारणों की वजह से अंतिम समय पर किसी खास बैंक का निजीकरण का फैसला बदल सकता है.’

सरकार को उम्मीद है कि देश का बैंकिंग नियामक भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) जल्द ही भारतीय ओवरसीज बैंक पर ऋण देने के प्रतिबंधों को आसान बना देगा, क्योंकि ऋणदाता के वित्त में सुधार के बाद इसकी बिक्री में मदद मिल सकती है.

कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि छोटे और कमजोर बैंकों की खस्ता हालत को देखते हुए खरीददारी के लिए बहुत कम लोग सामने आ सकते हैं इसलिए मोदी को पंजाब नेशनल बैंक या बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे बड़े बैंकों की बिक्री पर विचार करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि बजट खर्च करने में मदद के लिए सरकार को छोटे बैंकों की बिक्री से खास मदद मिलने की संभावना नहीं है.

फिच रेटिंग एजेंसी की भारतीय इकाई, इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा, ‘सरकार को यह विचार करना चाहिए कि बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था के वित्तपोषण के अपने दीर्घकालिक लक्ष्य से समझौता किए बिना इसे बेहतर मूल्य निर्धारण क्या देता है.’