एक सुनवाई के दौरान कुछ दवाओं के क्लीनिकल परीक्षणों की मंज़ूरी संबंधी प्रक्रियाओं की रिपोर्ट के कुछ हिस्सों के गायब होने पर हाईकोर्ट ने भारत के औषध महानियंत्रक से कहा कि यह हंसी का विषय नहीं है. यह कैसे कह सकते हैं कि संसद के समक्ष रखी गई एक समिति की रिपोर्ट का विवरण आपके पास उपलब्ध नहीं है.
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा कुछ दवाओं के क्लीनिकल परीक्षणों को मंजूरी देते समय प्रक्रियाओं और व्यवस्थाओं के संबंध में एक रिपोर्ट के कुछ हिस्सों के गायब होने पर बुधवार को भारत के औषध महानियंत्रक (डीसीजीआई) की खिंचाई की और कहा कि यह वास्तव में चौंकाने वाली बात है और यह हंसी का विषय नहीं है.
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने डीसीजीआई से कहा, ‘यह हंसी का विषय नहीं है. यह बहुत गंभीर मामला है. मैं इसे इतनी आसानी से नहीं जाने दे सकती. आप यह कैसे कह सकते हैं कि संसद के समक्ष रखी गई एक समिति की रिपोर्ट का विवरण आपके पास उपलब्ध नहीं है.’
अदालत एक आरटीआई आवेदक प्रशांत रेड्डी टी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने डॉ. टीएन महापात्रा समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट की एक प्रति प्राप्त करने के लिए कई प्रयास किए थे.
सीडीएससीओ द्वारा कुछ दवाओं के क्लीनिकल परीक्षणों को मंजूरी देते समय प्रक्रियाओं और व्यवस्थाओं की समीक्षा की गई थी. आवेदक को जब प्रति नहीं दी गई तो उन्होंने उच्च न्यायालय का रुख किया.
रेड्डी ने डीसीजीआई के सभी अभिलेखों का डिजिटलीकरण करने का अनुरोध किया है जो क्लीनिकल परीक्षणों से संबंधित हैं.
रिपोर्ट के कुछ हिस्सों के गायब होने के अलावा, अदालत ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि डीसीजीआई ने पिछले साल सितंबर में मामले में नोटिस जारी करने के बावजूद रेड्डी की याचिका पर अब तक कोई जवाब दाखिल नहीं किया है.
डीसीजीआई की ओर से पेश हुए केंद्र सरकार के वरिष्ठ पैनल वकील राहुल शर्मा ने अदालत को बताया कि जवाब 12 फरवरी को दाखिल किया गया था, लेकिन जस्टिस सिंह ने कहा कि यह अभी रिकॉर्ड में नहीं है.
यहां तक कि याचिकाकर्ता के वकीलों ने कहा कि उन्हें जवाब की प्रति नहीं मिली है. इसके बाद अदालत ने निर्देश दिया कि 10,000 रुपये का जुर्माना जमा करने पर ही रिकॉर्ड पर जवाब लिया जाएगा.
अदालत ने कहा कि यह राशि पिछले साल दिसंबर में डीसीजीआई पर लगाए गए 15,000 रुपये के जुर्माने की राशि के अतिरिक्त होगी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अदालत ने 21 दिसंबर, 2020 को कहा था कि अगर डीसीजीआई चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल नहीं करता है, तो 15,000 रुपये की जुर्माना भरना होगा.
जस्टिस सिंह ने कहा कि सुनवाई की अगली तारीख 15 मार्च से पहले अगर 25,000 रुपये की जुर्माना राशि और जवाब जमा नहीं होती है तो डीसीजीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी को अदालत में उपस्थित होना होगा.
साथ ही अदालत ने डीसीजीआई को अपने रिकॉर्ड को डिजिटाइज़ करने के लिए उसके द्वारा उठाए गए कदमों के संबंध में एक स्थिति रिपोर्ट दायर करने का निर्देश दिया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)