कश्मीरः संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने डोमिसाइल क़ानून पर चिंता जताई, भारत ने कहा- डर निराधार

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त दो विशेषज्ञों ने एक संयुक्त बयान जारी कर जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता छीने जाने पर चिंता जताई थी, जिसके बाद भारत सरकार ने इन स्वतंत्र विशेषज्ञों की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त दो विशेषज्ञों ने एक संयुक्त बयान जारी कर जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता छीने जाने पर चिंता जताई थी, जिसके बाद भारत सरकार ने इन स्वतंत्र विशेषज्ञों की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं.

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(फोटोः रॉयटर्स)

नई दिल्लीः संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों द्वारा जम्मू कश्मीर के नए डोमिसाइल नियमों की वजह से प्रदेश में जनसांख्यिकी बदलाव पर चिंता जताने के बाद भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त किए गए इन स्वतंत्र विशेषज्ञों की निष्पक्षता पर सवाल उठाया.

रिपोर्ट के अनुसार, अल्पसंख्यक मामलों पर विशेष राजदूत (एसआर) फर्नांड डे वर्नेस और धर्म की स्वतंत्रता और विश्वास पर विशेष राजदूत अहमद शहीद ने गुरुवार को संयुक्त बयान जारी कर जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता छीने जाने पर चिंता जताई.

विशेषज्ञों का कहना है कि जम्मू एवं कश्मीर की संवैधानिक स्थिति बिना किसी विचार-विमर्श के एकतरफा तरीके से अगस्त 2019 से खत्म कर दी गई. इसके लगभग एक साल बाद प्रदेश में नए डोमिसाइल नियमों को लागू किया गया, जिसे लेकर संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों का कहना है कि इसके तहत क्षेत्र में रहने वाले लोगों से सुरक्षा हटा दी गई.

जिनेवा में जारी बयान में विशेषज्ञों ने कहा, ‘डोमिसाइल प्रमाणपत्रों के लिए जम्मू कश्मीर के बाहर से आने वाले आवेदकों की संख्या को लेकर चिंता जताई गई कि भाषाई, धार्मिक और जातीय आधार पर जनसांख्यिकी बदलाव पहले से ही चल रहा है.’

यह भी कहा गया कि नए कानून की वजह से पिछले कानून हो गया, जो कश्मीरी मुस्लिमों, डोगरी, गोजरी, पहाड़ी, सिख, लद्दाखी और अन्य अल्पसंख्यकों को संपत्ति, जमीन खरीदने और राज्य की कुछ नौकरियों तक पहुंच बनाने का अधिकार देता है.

संयुक्त राष्ट्र के दो विशेषज्ञों ने कहा कि इन विधायी बदलावों में जम्मू कश्मीर के बाहर के लोगों के यहां बसने के लिए मार्ग प्रशस्त करने की क्षमता है.

इन विशेषज्ञों ने भारत सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि जम्मू कश्मीर के लोगों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार संरक्षित हो और वे अपनी राजनीतिक राय को व्यक्त कर सकें और उन्हें प्रभावित करने वाले मामलों में सार्थक रूप से भाग ले सकें.

गुरुवार देर रात जारी प्रतिक्रिया पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ‘यह निराशानजक है कि एसआर ने 10 फरवरी को प्रश्नावली साझा करने के बाद भारत सरकार की प्रतिक्रिया का इंतजार तक नहीं किया. इन्होंने इसके बजाय मीडिया में अपनी गलत धारणाओं को जारी करने का चुनाव किया. प्रेस विज्ञप्ति को भी जानबूझकर ऐसे समय में जारी किया गया, जब राजदूतों का एक समूह जम्मू कश्मीर के दौरे पर है.’

बता दें कि लगभग दो दर्जन विदेशी राजदूत जम्मू कश्मीर के दौरे पर हैं. जम्मू कश्मीर के विभाजन के बाद भारत सरकार की ओर से आयोजित यह राजनयिकों का तीसरा दौरा है.

जनसांख्यिकी बदलाव की आशंका को लेकर श्रीवास्तव ने कहा कि ये डर निराधार हैं और जम्मू कश्मीर में जारी डोमिसाइल सर्टिफिकेट प्राप्त करने वालों में अधिकतम स्थाई निवास प्रमाणपत्र धारक हैं.

श्रीवास्तव ने कहा, ‘यह प्रेस विज्ञप्ति इन विशेष राजदूतों की निष्पक्षता के उन व्यापक सिद्धांतों पर सवाल उठाती है, जिनका पालन करना अनिवार्य है. हमें उम्मीद है कि विशेष राजदूत सीधे किसी निष्कर्ष पर पहुंचकर प्रेस बयान जारी करने से पहले इन मामलों की बेहतर समझ विकसित कर सकें.’

उन्हें उम्मीद है कि उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और अगस्त 2019 में जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने का फैसला संसद ने लिया था.

भारतीय अधिकारी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने इस बात की अनदेखी की कि विशेष दर्जे में बदलाव और नए कानूनों से जम्मू कश्मीर के लोगों को उन्हीं अधिकारों की मंजूरी दी जो भारत के अन्य हिस्सों के लोगों को दी गई हैं.

उन्होंने कहा, ‘यह प्रेस विज्ञप्ति दशकों के भेदभाव को समाप्त करने, जिला विकास परिषदों के लिए स्थानीय चुनाव के सफल संचालन के जरिये जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को सुनिश्चित करने और गांव के कार्यक्रम के जरिये सुशासन को सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों पर गौर करने में असफल रहा है.’