विशेष रिपोर्ट: मध्य प्रदेश में बीते कुछ महीनों में नए धर्मांतरण क़ानून, कई शहरों में सांप्रदायिक तनाव, कॉमेडियन मुनव्वर फ़ारूक़ी की गिरफ़्तारी समेत कई घटनाएं शिवराज सरकार का बदला हुआ रूप दिखा रही हैं.
‘ईदगाह हिल्स का नाम हो गुरूनानक टेकरी’
‘विधानसभा अध्यक्ष ने कहा- होशंगाबाद को नर्मदापुरम पुकारें, लुटेरों के नाम से नहीं’
‘हबीबगंज का नाम अटल जंक्शन करने की तैयारी’
‘खजराना क्षेत्र का नाम गणेशनगर करने की मांग’
‘हलाली डैम का बदले नाम’
‘भाजपा विधायक के बेटे ने कॉमेडियन को पीटा, कॉमेडियन पर हिंदू देवी-देवताओं के अपमान का आरोप’
‘कॉमेडियन की गिरफ्तारी पुलिस द्वारा जमानत का विरोध, पुलिस की कार्रवाई संदिग्ध’
‘चांदनखेड़ी में दो समुदायों के बीच सांप्रदायिक तनाव’
‘हिंदूवादी संगठनों की मुस्लिम धर्मस्थल में तोड़फोड़, मुस्लिमों के घरों को बनाया निशाना’
‘राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा इकट्ठा करने मुस्लिम इलाके से निकाली रैली, दो समुदायों में पथराव और हिंसा’
‘मुस्लिम परिवार का प्रशासन ने ढहाया मकान’
‘लव जिहाद के खिलाफ कानून को हरी झंडी’
‘पत्थरबाजों से होगी संपत्ति के नुकसान की वसूली, होगी उनकी संपत्ति कुर्क’
‘आदिवासियों को गैर-हिंदू बताने वालों पर दर्ज हो राजद्रोह का केस’
’30 ईसाई परिवारों की घर वापसी’
‘खुली गांधी के हत्यारे गोडसे की ज्ञानशाला, किया जाएगा गोडसे का महिमामंडन’
‘सैफ अली खान हिंदुओं को तांडव करने के लिए बाध्य न करें’
‘हिंदूवादी संगठनों ने वेब सीरीज तांडव के खिलाफ दर्ज कराई एफआईआर, की रैलियां और प्रदर्शन’
‘नेटफ्लिक्स पर एफआईआर, हिंदू भावनाओं को पहुंचाई चोट’
‘धर्मांतरण करने वालों को कोई सरकारी लाभ न मिले’
‘लव जिहाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाकर पूर्व भाजपा विधायक ने की हुक्का लाउंज में तोडफोड़’
‘मुख्यमंत्री ने कहा, लव जिहाद किया तो तबाह हो जाओगे, बर्बाद हो जाओगे, तोड़ कर रख दूंगा’
यह पिछले दिनों सुर्खियों में रहीं कुछ खबरों के शीर्षक हैं, जिन्हें पढ़कर पहली नज़र में लग सकता है कि हम योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश की बात कर रहे हैं. लेकिन, नहीं! हम शिवराज सिंह चौहान के मध्य प्रदेश की बात कर रहे हैं.
उन शिवराज सिंह चौहान के मध्य प्रदेश की बात जो एक वक्त कहा करते थे, ‘हिंदू और मुस्लिम उनकी दोनों बांहों जैसे हैं, इसलिए भेदभाव का सवाल ही नहीं है.’
उपरोक्त खबरें उन शिवराज सिंह चौहान के बदलते मध्य प्रदेश की तस्वीर हैं जो एक वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समकक्ष माने जाते थे और पार्टी के उदारवादी के चेहरे के रूप में अगले प्रधानमंत्री की छवि उनमें देखी जाती थी.
जहां मोदी मुस्लिम टोपी पहनने से इनकार कर देते थे, वहीं शिवराज हंसते-हंसते टोपी भी पहनते थे और ईद का जश्न भी मनाते थे.
हम उन शिवराज के की बात कर रहे हैं जिनके बारे में अक्सर कहा जाता था कि वे हार्डकोर हिंदुत्व वाली भाजपा के अंदर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की उदारवादी विरासत को आगे बढ़ाने वाले एकमात्र चेहरा हैं.
लेकिन अब शिवराज और उनके राज्य का मिजाज बदला-बदला सा है. ऐसा कहा जा रहा है कि जब से कांग्रेस की सरकार गिराकर वे सत्ता में लौटे हैं, कुछ बदले-बदले से हैं. यह वे शिवराज नहीं हैं जो अपने पिछले तीन कार्यकाल में हुआ करते थे.
इसलिए सवाल उठते हैं कि क्या मध्य प्रदेश भी वास्तव में उत्तर प्रदेश की तर्ज़ पर उग्र हिंदुत्व की राह पर निकल पड़ा है? क्या शिवराज, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ कट्टर हिंदुत्व की प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं?
क्या वास्तव में अब शिवराज वैसे उदारवादी नहीं हैं जैसे अपने पिछले तीनों कार्यकाल में हुआ करते थे?
वरिष्ठ पत्रकार अनुराग द्वारी समूचे प्रदेश में एनडीटीवी के लिए रिपोर्टिंग करते हैं. उपरोक्त घटनाओं और ऐसी ही अधिकांश घटनाओं की कवरेज उन्होंने जमीन से की है.
वे बताते हैं, ‘एमपी, यूपी के मॉडल पर है, यह कहना मुझे वाजिब नहीं लगता लेकिन इतना जरूर है कि शिवराज खुद को कट्टर दिखाने की कोशिश जरूर कर रहे हैं. शिवराज पहले ऐसे नहीं थे. उन्हें टोपी पहनकर इफ्तार करने में भी गुरेज नहीं था. उनकी एक सर्वमान्य नेता की छवि थी, जैसे कि एक मुख्यमंत्री किसी एक तबके का नहीं, सबका होता है. वैसी छवि थी. मैं ये नहीं कहूंगा कि अब वो बाकी लोगों के नहीं हैं, लेकिन जिन क़ानूनों को बनाने में वे प्राथमिकता दे रहे हैं, उससे ऐसा लग रहा है कि वे एक खास वर्ग के बनने की कोशिश कर रहे हैं.’
लज्जा शंकर हरदेनिया नेशनल सेकुलर फोरम के राष्ट्रीय संयोजक हैं. वे मध्य प्रदेश में रहते हैं और समाज में धर्मनिरपेक्षता और सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए लंबे समय से कार्य कर रहे हैं.
उनका कहना है, ‘मध्य प्रदेश का मिजाज पिछले कुछ समय से बदला हुआ है. और वो शायद इसलिए क्योंकि शिवराज का भी मिजाज बदला हुआ है. यह एहसास उनके करीबी लोगों को भी है कि वे अब पहले से काफी बदले हुए व्यक्ति हैं. उनके हाव-भाव, शारीरिक मुद्राएं सब काफी बदल गए हैं. पिछले तीन कार्यकालों में उनकी फिलॉसफी इतनी कठोर नहीं थी. वे प्रगतिशील सोच रखते थे, जैसे कि ईद और क्रिससम का कार्यक्रम करते थे, बुद्धिज्म का कार्यक्रम करते थे, जैन त्यौहारों के अवसर पर कार्यक्रम करते थे.’
लज्जा शंकर खुद से ही जुड़ा एक उदाहरण भी देते हैं. वे बताते हैं, ‘मैं लंबे समय से ‘सोशल सेकुलर वॉर’ नामक एक पत्रिका निकालता हूं. पहले मुझे उसके लिए लगातार सरकारी विज्ञापन मिलते थे. सब जानते हैं कि मैं उस पत्रिका में आरएसएस की भी आलोचना करता था. फिर भी मुझे कभी विज्ञापन मिलने में बाधा नहीं आई, लेकिन अब मेरे विज्ञापन रोक दिए गए हैं.’
हालांकि, राज्य के वरिष्ठ पत्रकार शम्स उर रहमान अलवी का मानना है कि अपने चौथे कार्यकाल में शिवराज की कार्यशैली में जो बदलाव दिखाई दे रहा है, वह नया नहीं है. इसकी झलक उन्होंने अपने तीसरे कार्यकाल के अंत से ही दिखानी शुरू कर दी थी.
शम्स बताते हैं, ‘शिवराज को लेकर अल्पसंख्यकों के दिल में भी मध्य प्रदेश में एक सॉफ्ट कॉर्नर रहता था. उनको अल्पसंख्यकों का अच्छा-खासा वोट भी मिलता था. लेकिन सिमी एनकाउंटर के बाद से उन्होंने अपनी इमेज को बदला. तीसरे कार्यकाल के अंत में शायद उन्हें महसूस होने लगा था कि उनको अपनी छवि एक मजबूत दक्षिणपंथी नेता के तौर पर बनाने की जरूरत है. तब वे थोड़े थे, अब बहुत खुलकर सामने आ गए हैं.’
बता दें कि स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के 8 विचाराधीन कैदी जो आतंकवाद के आरोप में भोपाल की केंद्रीय जेल में बंद थे, 30-31 अक्टूबर 2016 की दरम्यानी रात जेल से फरार हो गए थे.
इन्हें बाद में पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था. इस मुठभेड़ पर अनेक सवाल उठाते हुए इसे फर्जी बताया गया था. हालांकि, बाद में सरकार द्वारा गठित जांच आयोग ने मामले में पुलिस को क्लीन चिट दे दी थी.
यह बात सही है कि शिवराज ने अपनी हिंदूवादी नेता की छवि को तीसरे कार्यकाल के अंत से ही गढ़ना शुरू कर दिया था. पहले वे पांच महीने लंबी ‘नर्मदा यात्रा’ पर निकले और फिर हिंदू दर्शन और सनातन धर्म की महानता का संदेश देने के लिए दो महीने लंबी ‘एकात्म यात्रा’ निकाली.
यहां उन्होंने खूब साधु-संतों और हिंदुत्व से जुड़े लोगों को अपने मंच पर जुटाया और स्वयं को एक हिंदू नेता के तौर पर स्थापित करने का प्रयास किया. साथ ही साथ लोगों को जनहित के मुद्दों से हटाकर धर्म के नाम पर अपने और पार्टी के पक्ष में लामबंद करने की कोशिश की थी.
जिस तरह आज राम मंदिर निर्माण हेतु चंदा इकट्ठा करने के लिए वाहन रैलियां निकल रही हैं और मुस्लिम बस्तियों में सांप्रदायिक माहौल बना रही हैं, तब भी वाहन रैलियां निकाली गई थीं लेकिन अंतर बस इतना था कि उनमें ‘आदि शंकराचार्य’ की जय-जयकार के नारे लगाकर शंकराचार्य की अष्टधातु प्रतिमा के निर्माण के लिए धातु संग्रहण किया जा रहा था और वे रैलियां शांतिपूर्ण रही थीं.
वहीं, अब निकाली जा रही धार्मिक रैलियों में अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति स्थापना के लिए चंदा इकट्ठा करने के लिए ‘जय श्री राम’ के नारे लगाकर मुस्लिम बस्तियों में जाया जा रहा है जो हिंसा को बढ़ावा दे रहा है.
जानकार मानते हैं कि शिवराज द्वारा अपनी छवि बदलने के इन प्रयासों का असर सरकार के कामकाज पर भी पड़ रहा है.
इस संबंध में अनुराग द्वारी बताते हैं, ‘सरकार हर महीने हजार-दो हजार करोड़ का कर्ज ले रही है, राज्य में निवेश आ नहीं रहा है, सरकार बस गेंहूं की खरीदी के नाम पर अपना कंधा थपथपा रही है लेकिन सोयाबीन से लेकर हर चीज में किसानों की हालत खराब है. आंगनबाड़ी में बच्चों को खाना नहीं मिल रहा. प्रदेश कुपोषण इंडेक्स में पिछड़ रहा है. फिर भी सरकार की प्राथमिकताएं पत्थरबाजी और लव जिहाद पर क़ानून बनाना हैं. यह वो चीजें हैं जहां शिवराज योगी आदित्यनाथ से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं.’
अनुराग आगे कहते हैं, ‘शिवराज सरकार का फैसला है कि हर सरकारी आयोजन से पहले कन्या पूजन होगा, लेकिन एनसीआरबी के आंकड़ों में प्रदेश महिला अपराध के मामले में सबसे ऊपर था और आज भी हर दिन छोटी बच्चियों और महिलाओं के साथ बलात्कार और मारपीट की घटनाएं सामने आ रही हैं. मतलब कि सरकार प्रतीकों में ज्यादा विश्वास करने लगी है कि हम ‘कन्या पूजन’ जैसे प्रतीक दिखाएंगे तो लगेगा कि हम बच्चियों को देवी मानते हैं और उनकी सुरक्षा को लेकर गंभीर हैं. लेकिन, मानने भर से सुरक्षा नहीं हो रही है न. वे सिर्फ उनके पैर धोते दिख जाते हैं, पर वे सुरक्षित नहीं हैं ये रोज सामने आ रहे आंकड़े बताते हैं.’
बहरहाल, सवाल उठता है कि शिवराज और उनके कामकाज का तरीका अगर बदला है तो आखिर उसके पीछे कारण क्या हैं?
भोपाल के जावेद अनीस सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार हैं. वे मुस्लिम हैं और उनकी पत्नी हिंदू. ऐसे में जब सरकार लव जिहाद जैसे क़ानून बना रही हो तो जावेद की टिप्पणी महत्वपूर्ण हो जाती है.
जावेद कहते हैं, ‘शिवराज में पहले से बहुत बदलाव है. मतलब कि जो उनका पिछला तेरह साल का कार्यकाल था और अब जो 11 महीने का कार्यकाल है, इनकी तुलना करने पर लगता ही नहीं है कि ये वही शिवराज हैं.’
वे आगे कहते हैं, ‘इसके पीछे कारण हो सकता है कि पिछले कार्यकालों की अपेक्षा इस बार उनके सामने परिस्थितियां भी काफी बदली हुई हैं. पिछले कार्यकालों में शिवराज ज्यादा मजबूत नेता थे लेकिन अब सरकार सिंधिया की बैसाखी पर टिकी है. ऊपर से कांग्रेस की सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाने से गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का पार्टी और सरकार में कद बढ़ा है और वे एक तरह से फ्री हैंड काम कर रहे हैं.’
जावेद आगे कहते हैं, ‘शिवराज ने पहले ऐसी किसी परिस्थिति का सामना नहीं किया था कि उनके बाद कोई नेता दूसरे नंबर पर हो और फ्री हैंड हो. वहीं, नरोत्तम कट्टर हिंदुत्व की पिच पर खेलने के लिए जाने जाते हैं और यही वर्तमान भाजपा की शैली है. इसलिए शिवराज पर दबाव है, जिससे उन्हें भी ऐसा करना पड़ रहा है. पहले उन्हें इसकी जरूरत नहीं थी लेकिन अब खुद को केंद्रीय नेतृत्व की नज़र में बनाए रखना है, तो हार्डकोर हिंदुत्व पर चलना पड़ेगा. अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो कतार में दूसरे खड़े हैं.’
अनुराग भी इन बातों से इत्तेफाक रखते हुए कहते हैं, ‘सत्ता पलट का पूरा सूत्रधार नरोत्तम को माना जाता है. वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती जो फायर ब्रांड नेता मानी जाती हैं, वापस सक्रियता दिखाने लगी हैं. मतलब कि चार बार मुख्यमंत्री रहने के बाद भी वे अपने ही राज्य में पार्टी के अंदर कई मोर्चों पर जूझ रहे हैं. उनके लिए राह आसान नहीं है और हारने के बाद एक धक्का लगता ही है. सत्ता भले ही उन्हें वापस मिल गई है लेकिन वे हारने के कारण डेढ़ साल पीछे रह गए हैं. शायद इसी पिछड़ने की वजह से वो अब लम्बी छलांग मारने की तैयारी कर रहे हों.’
अनुराग आगे जोड़ते हैं, ‘इसलिए जन एजेंडा को छोड़कर ऐसे एजेंडा पर चल पड़े हैं जिनके लिए भाजपा जानी जाती है, जैसे कि लव जिहाद और पत्थरबाजी पर क़ानून. जबकि हकीकत यह है कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में ऐसे सभी अपराधों के लिए पहले से ही प्रावधान मौजूद हैं. उनमें थोड़ा-बहुत हेर-फेर करके लागू किया जा सकता था, जैसे कि पत्थरबाजी में पहले वसूली या संपत्ति कुर्क नहीं हो सकती थी, तो इसे मौजूदा क़ानूनों में जोड़ा जा सकता था. लेकिन, नया क़ानून लाना भाजपा के देश भर में चल रहे एजेंडा को लागू करके केंद्र की नजरों में अपने नंबर बढ़ाने की कवायद है.’
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी भी इससे इत्तेफाक रखते हैं. उनके मुताबिक, ‘शिवराज को शायद लगता है कि मोदी के बाद योगी आदित्यनाथ देश के सबसे बड़े और सबसे महान नेता हैं. इसलिए उन्होंने योगी के ही सारे फॉर्मूले अपना लिए हैं. वे ऐसी कोई चीज छोड़ना नहीं चाहते हैं जिससे भाजपा आलाकमान और संघ खुश न हों. उनकी सारी कोशिशें अब इसी पर आकर टिक गई हैं कि कुछ भी करके आलाकमान और संघ को खुश करना है. यही उनका एजेंडा है.’
यह जगजाहिर है कि भाजपा का वर्तमान केंद्रीय नेतृत्व शिवराज को बहुत पहले से ही अपने लिए चुनौती मानता आया था. वे नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर देखे जाते थे, लेकिन हिंदुत्व के एजेंडा के साथ आगे बढ़ रहे प्रधानमंत्री मोदी का कद धीरे-धीरे शिवराज से ऊपर होता गया.
2018 के विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण को लेकर शिवराज की संघ से भी ठन गई थी. फिर शिवराज के नेतृत्व में राज्य में पार्टी की हार ने शिवराज की साख पर और बट्टा लगा दिया.
मोदी के विकल्प होने के चलते पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की आंखों की किरकिरी तो वे पहले से ही थे, अब संघ से भी उनके संबंधों में खटास आ गई थी.
हालांकि वे कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद फिर से मुख्यमंत्री तो बना दिए गए क्योंकि एक तो तब कोरोना महामारी पर काबू पाने के लिए एक कुशल एवं अनुभवी प्रशासक की जरूरत थी और दूसरा कारण जो जानकार बताते हैं वो यह है कि शिवराज पार्टी फंड के लिए पैसा जुटाने में भाजपा के सबसे माहिर मुख्यमंत्री माने जाते हैं. इसलिए पार्टी मध्य प्रदेश में उन पर दांव लगाए हुए है.
इसलिए जानकारों का मानना है कि शिवराज इस कड़वी हकीकत को समझते हुए फिर से खुद को मजबूत बनाने के लिए संघ और भाजपा के हार्डकोर हिंदुत्व के एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं ताकि उनकी नजरों में अपने अंक बढ़ा सकें.
इस संबंध में प्रकाश हिंदुस्तानी एक उदाहरण भी देते हैं. वे बताते हैं, ‘उज्जैन के पास एक पहाड़ी है. शिवराज ने उसे पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत अनिल माधव दवे के नाम पर एक एनजीओ को दे दिया है जो पूरी पहाड़ी पर हरियाली लगाना चाहती है. इस तरह उन्होंने अनिल माधव दवे के नाम पर भाजपा और संघ, दोनों में अपने नंबर बढ़ा लिए. बीते कुछ समय में जितने भी एनजीओ की मदद की जा रही है, वे सब संघ से जुड़े हैं.’
हालांकि, संघ की विचारधारा से इत्तेफाक रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक लोकेंद्र सिंह इस बात को नहीं मानते कि वर्तमान 11 महीने की शिवराज सरकार पिछली 13 सालों की शिवराज सरकार से अलग है.
लोकेंद्र कहते हैं, ‘इन 11 महीनों के दौरान हुईं जिन भी घटनाओं की बात हो रही है तो ऐसा नहीं है कि पहले मध्य प्रदेश ऐसा नहीं देखा गया था. जहां तक जगहों के नाम बदलने की बात है तो भोपाल का नाम बदलकर ‘भोजपुर’ और होशंगाबाद का ‘नर्मदापुरम’ किए जाने की मांग पहले भी होती थी. धार के सरस्वती विद्या अध्ययन केंद्र ‘भोजशाला’ का भी नाम बदलने की बातें होती थीं. वहीं, पहले भी सांप्रदायिक घटनाएं होती थीं, जैसे कि ग्वालियर में सालों पहले बजरंग दल की रैली पर पथराव हुआ था. जिस उज्जैन की घटना का जिक्र कर रहे हैं, उस बस्ती में पहले भी ऐसी घटनाएं हुईं हैं.’
वे आगे कहते हैं, ‘इंदौर के खजराना क्षेत्र में कितनी बार सांप्रदायिक तनाव के हालात पहले भी बने हैं, ये हम सबको पता है. भाजपा की पिछली सरकारों में भी बने और कांग्रेस की दिग्विजय सरकार में भी कई बार. धार की ‘भोजशाला’ को लेकर भी कई बार विवाद हो चुके हैं. संयोग से इस बार बसंत पंचमी शुक्रवार को नहीं पड़ी, वरना शिवराज के पिछले कार्यकाल में ही शुक्रवार को बसंत पंचमी पड़ने पर कितना बवाल हुआ था. वहीं, हमीदिया अस्पताल में निर्माण के दौरान फैली अफवाह से भी तनाव के हालात बन गए थे. मतलब कि ऐसी छिटपुट घटनाएं समय के साथ चलती रहती हैं.’
लोकेंद्र शिवराज के पिछले कार्यकालों के दौरान हुई ऐसी ही और भी घटनाओं के उदाहरण देते हैं और आगे कहते हैं, ‘इसलिए ऐसा नहीं कह सकते कि यह सब अभी के 11 महीनों में दिख रहा है. यह पहले भी होता था. उन पर सरकार पहले भी सख्ती से नियंत्रण करती थी और आज भी कर रही है. पहले भी ऐसी घटनाएं शिवराज के कारण बड़ी नहीं हो पाईं और न अब हो पाई हैं. इंदौर, उज्जैन और मंदसौर में जो तनाव हुआ, वह कार्रवाई करके वहीं शांत कर दिया गया.’
बहरहाल सवाल सरकार की कार्रवाई पर ही तो उठ रहे हैं. जैसे कि पिछले दिनों उज्जैन, मंदसौर या इंदौर में जो पत्थरबाजी और सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं सामने आईं, उनमें मुस्लिम पक्ष के तो मकान ढहा दिए गए लेकिन दूसरे पक्ष के खिलाफ ऐसी कोई कार्रवाई नही हुई.
इसी तरह पुराने भोपाल में एक विवादित जमीन पर संघ से जुड़ी संस्था को कब्जा दिलाने को लेकर रात ही रात अचानक तीन थाना क्षेत्रों में 17 जनवरी को कर्फ्यू लगा दिया गया था. सुबह जब लोग जागे तब उन्हें इसका पता लगा.
मामले में दूसरे पक्ष का कहना था कि मामला हाईकोर्ट में लंबित है लेकिन संघ और भाजपा से जुड़े लोगों के दबाव में अचानक आधी रात को ऐसी कार्रवाई की गई है.
इसी तरह लव जिहाद को रोकने के उद्देश्य से जो ‘मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक 2020’ लाया गया है, उसका एक मूल उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में संघ द्वारा चलाई जा रही ‘धर्म परिवर्तन विरोधी मुहिम’ को मजबूती देना भी है.
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में आदिवासियों के हिंदू होने पर लंबे समय से विवाद चलता आ रहा है. संघ और भाजपा दावे करते रहे हैं कि आदिवासी मूल रूप से हिंदू ही होते हैं. संघ इन क्षेत्रों में ‘धर्म परिवर्तन रोकथाम’ और ‘घर वापसी’ अभियान चलाता रहा है.
यहां इस विधेयक के जिक्र करने का उद्देश्य यह है कि पिछले दिनों से कई खबरें ऐसी आ रही हैं जहां जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने के आरोपों में लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है.
ऐसी ही एक घटना सिवनी जिले में भी हुई जहां ईसाई धर्म से जुड़े दो पादरियों को पुलिस ने जबरन धर्म परिवर्तन कराए जाने के आरोप में गिरफ्तार किया है.
इस संबंध में स्थानीय लोगों ने द वायर को बताया कि उस दिन धर्म परिवर्तन संबंधी कोई आयोजन नहीं हो रहा था. जिस परिवार का धर्म परिवर्तन कराए जाने की बात की जा रही है, उनके परिवार में कुछ दिन पहले किसी की मृत्यु हुई थी जिसके अंतिम रीति-रिवाजों को पूरा कराने के लिए पादरी वहां आए थे. लेकिन, संघ और भाजपा से जुड़े लोगों के दबाव में उन्हें धर्मांतरण कराने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया.
एक स्थानीय निवासी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘क्षेत्र में लोग स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करते हैं और संविधान ने यह अधिकार भी दिया है. जबकि संघ का दावा है कि लोगों को पैसे का लालच देकर धर्म परिवर्तन कराया जाता है.’
सरकारी कार्रवाईयों पर सवाल उठाते हुए अनुराग बताते हैं, ‘किसी भी अपराध के खिलाफ क़ानून बनाया जाता है तो अपराध से संबंधित आंकड़े चौंकाने वाले होते हैं, लेकिन लव जिहाद के संबंध में पूछे जाने पर गृहमंत्री कोई आंकड़ा तक सामने नहीं रख पाए. इसी तरह पत्थरबाजी पर क़ानून ला रहे हैं, बिल्कुल लाना चाहिए. लेकिन, सवाल उठता है कि मुस्लिम इलाकों में ऐसी धार्मिक रैलियों को अनुमति ही क्यों दे रहे हैं?
अनुराग आगे कहते हैं, ‘मैं खुद इंदौर के चांदनखेड़ी गया था. देपालपुर से चांदनखेड़ी जाते हैं तो पांच-छह किलोमीटर तक कोई गांव नहीं है. ऐसी जगह चंदा मांगने कौन जाता है जहां सौ रुपये का पेट्रोल फुंक जाए और 50 रुपये चंदा भी न मिले? वो भी मुस्लिम इलाकों में. लेकिन, इस संबंध में सख्ती नहीं दिखाई गई. चोट किसी भी पक्ष के व्यक्ति को लगी हो, जिम्मेदार अधिकारियों के प्रति सख्ती दिखाई जानी चाहिए थी.’
कुछ ऐसी ही कार्रवाईयां शिवराज सरकार को कटघरे में खड़ा करती हैं. उल्लेखनीय है कि इस बीच सरकार का दावा है कि धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक अर्थात नये कानूनों के तहत अब तक प्रदेश में 23 कथित लव जिहाद के मामले दर्ज किए जा चुके हैं.
वहीं, ‘मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक 2020’ में एक और गौर करने लायक बिंदु यह है, ‘पैतृक धर्म में धर्म वापसी को धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा. पैतृक धर्म वह माना गया है जो व्यक्ति के जन्म के समय उसके पिता का धर्म था.’
इसका अर्थ हुआ कि संघ व भाजपा के ‘घर वापसी’ अभियान को भी मजबूती दी गई है. इसलिए जब झाबुआ में तीस ईसाई परिवारों ने हिंदू धर्म अपनाया तो इसे धर्मांतरण नहीं, ‘घर वापसी’ कहा गया और नया कानून उन पर लागू नहीं हुआ.
सीधे तौर पर नया कानून केवल ‘लव जिहाद’ के खिलाफ नहीं है, यह एक धर्म विशेष को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से बनाया हुआ जान पड़ता है.
वहीं, लोकेंद्र की बात कि पहले भी ऐसी घटनाएं होती थीं से जावेद अनीस भी सहमत हैं पर साथ ही वे कहते हैं, ‘सही बात है कि पहले भी ऐसी घटनाएं होती थीं लेकिन पहले जो होता था, वह पर्दे के पीछे से ज्यादा होता था. इस तरह उग्र रूप से नहीं होता था कि शिवराज संघ या भाजपा के एजेंडा पर चल रहे हों, जैसे कि कॉमेडिन को उठाकर जेल में डाल दिया या लव जिहाद और पत्थरबाजी पर क़ानून ले आए. तब शिवराज भाजपा से एक अलग चेहरा बनाकर चल रहे थे कि साफ-स्वच्छ वाली हिंदुत्व की राजनीति कर रहे हैं और पार्टी की वर्तमान राजनीति से हटकर वाजपेयी वाली लाइन पर चल रहे हैं.’
जहां तक संघ या भाजपा के एजेंडा पर चलने की बात है तो एक गौर करने वाली चीज यह है कि जुलाई से नवंबर के बीच साढ़े तीन महीने में संघ प्रमुख मोहन भागवत चार बार मध्य प्रदेश का दौरा कर चुके हैं.
ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया था. जो कहीं न कहीं दर्शाता है कि मध्य प्रदेश में कुछ तो पक रहा है और यह राज्य संघ की प्राथमिकता सूची में है. अगर घटनाओं के क्रम पर भी नजर डालें तो पाएंगे कि जुलाई के बाद से ही शिवराज में बदलाव देखे गए हैं.
वहीं, शिवराज के बदले व्यवहार में एक गौर करने वाली बात उनकी भाषा का गिरता स्तर भी है जिस पर सभी सहमति रखते हैं. शिवराज के हालिया बयान देखेंगे तो कभी वे अधिकारियों से कहते नजर आते हैं कि ‘टांग दूंगा’, कभी माफियाओं से कहते नजर आते हैं कि ‘उखाड़ दूंगा’, तो कभी किसी मौके पर दोषियों को जमीन में गाड़ने की बात कहते नजर आते हैं.
जानकारों का मानना है कि पहले शिवराज शांत रहा करते थे, लेकिन अब वे भी अपनी छवि योगी आदित्यनाथ की तरह कठोर प्रशासक की बनाना चाह रहे हैं. लेकिन, ऐसी छवि वे क्यों बना रहे हैं?
इसका जवाब लज्जा शंकर देते हैं, ‘अगले चुनावों में मोदी 75 साल के हो जाएंगे और भाजपा के नियमानुसार वे कोई भी पद रखने के अयोग्य होंगे. इसलिए होड़ मोदी का उत्तराधिकारी बनने की भी है. आज योगी आदित्यनाथ को मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता है क्योंकि योगी की कट्टर हिंदू नेता की शैली भी मोदी से मिलती-जुलती है. शायद शिवराज भी पार्टी के मिजाज मुताबिक खुद को बदला हुआ दिखाकर मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर पेश करना चाहते हों क्योंकि पहले वे ही तो मोदी के विकल्प थे.’
इस बात को लोकेंद्र भी स्वीकारते हैं कि शिवराज पहले से अधिक कठोर नजर आ रहे हैं, लेकिन वे इसके पीछे का कारण बताते हैं कि पिछले तीन कार्यकाल में शिवराज का उदार और लचीला रुख होने के कारण सिस्टम लापरवाह हो गया था, इसलिए अब वो थोड़ा कड़ा रुख अपनाकर व्यवस्था को ढर्रे से उतरने देना नहीं चाहते हैं.
अनुराग का कहना हैं, ‘मेरा निजी राय है कि शिवराज शायद दिल से अभी भी उतने कट्टर नहीं है जितना वो दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. बस दिल्ली की नजरों में अंक बढ़ाने लिए वे अपनी मूल छवि से इतर दिख रहे हैं, कानून भी बना रहे हैं और वैसे ही काम भी कर रहे हैं. ताकि वे भाजपा में चल रही कट्टरता की दौड़ में पीछे न छूट जाएं.’
शम्स अंत में एक गहरी बात कहते हैं. उनके मुताबिक, ‘कई बार समाज भी इतना कट्टर हो जाता है कि नेता को भी उस हिसाब से चलना पड़ता है और वह सोचने लगता है कि यदि मैं ऐसे नहीं चलूंगा तो दूसरे मुझसे आगे निकल जाएंगे. शिवराज की कहानी भी ऐसी ही जान पड़ती है.’
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)