झारखंड के पाकुड़ वन प्रभाग की सीमा पर काम करने वाले 250 मज़दूरों को बीते नौ महीनों से मज़दूरी नहीं दी गई थी, जिसके बाद वन परिक्षेत्र के एक अधिकारी ने जनहित याचिका दायर कर हाईकोर्ट से मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी. नोटिस में यह बताने के लिए कहा गया है कि उन्हें सेवानिवृत्त क्यों नहीं किया जाना चाहिए?
रांचीः झारखंड के पाकुड़ वन प्रभाग के अधिकारी द्वारा लगभग 250 मजदूरों के बकाया वेतन की मांग के लिए हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करने के दो महीने बाद राज्य सरकार ने अधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी किया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने अधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी कर उनसे पूछा है कि सरकार के खिलाफ जाने के लिए उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति क्यों नहीं दी जानी चाहिए?
अधिकारी को इसका जवाब देने के लिए एक महीने का समय दिया गया है.
बता दें कि यह मामला पिछले साल दिसंबर महीने का है, जब कई मजदूरों ने बकाये वेतन की मांग के लिए पाकुड़ प्रभाग वन कार्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था.
झारखंड के पाकुड़ वन प्रभाग की एक सीमा का रखरखाव करने वाले लगभग 250 मजदूरों को नौ महीने से वेतन भुगतान नहीं किया गया था, जबकि वे कई बार इस मामले को प्रशासन के संज्ञान में ला चुके थे.
इसके बाद पाकुड़ वन प्रभाग के अधिकारी अनिल कुमार सिंह ने झारखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर अदालत से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की थी.
सिंह की याचिका के मुताबिक, ‘वेतन का भुगतान रोक दिया गया था, क्योंकि पाकुड़ वन प्रभाग में प्रभागीय वन अधिकारी का पद खाली पड़ा था.’
याचिका में कहा गया कि सिंह मजदूरों की आर्थिक मदद करने को मजबूर थे, जो उनके और मजदूरों दोनों के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर रहे थे.
हालांकि, बाद में एक प्रभागीय वन अधिकारी का पाकुड़ में स्थानांतरण किया गया, जिसके बाद वेतन का भुगतान किया गया.
मालूम हो कि 29 जनवरी को जारी कारण बताओ नोटिस 17 फरवरी को अनिल कुमार सिंह को मिला था. इस पर अंडर सेक्रेटरी संतोष कुमार चौबे के हस्ताक्षर थे.
सिंह ने कहा कि उनके पास इसका जवाब देने के लिए 17 मार्च तक का समय है.
नोटिस में सिंह के खिलाफ विभागीय जांच के निष्कर्षों, जनहित याचिका और काम पर उनके व्यवहार का हवाला दिया गया.
नोटिस में कहा गया है, ‘एक टीम ने उनके पहले की गतिविधियों की जांच की, जहां सरकारी कर्मचारी होने के नाते उन्होंने सरकार और उसके कामकाज के खिलाफ अदालत में याचिका दायर की थी.’
नोटिस में जांच के निष्कर्षों का हवाले देते हुए कहा गया कि पिछले दो मामलों में दंडित किए जाने के बावजूद सिंह के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया.
नोटिस में जांच टीम के हवाले से कहा गया, ‘इस परिदृश्य में जनहित में नौकरी पर उनके बने रहने पर सवालिया निशान उठता है. इस परिदृश्य में उन्हें अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्ति देने के बारे में सोचा जा सकता है.’
सिंह ने बताया कि मजदूरों के लिए अदालत में जनहित याचिका दायर करना दरअसल जनहित में था.
उन्होंने कहा, ‘नोटिस में कहा गया है कि मुझे जनहित में अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने के बारे में सोचा जा सकता है, लेकिन मैंने जो मजदूरों के लिए किया, वह जनहित में ही था.’
नोटिस में उल्लेखित किए गए पूर्ववर्ती उदाहरणों के बारे में सिंह ने कहा, ‘पहले मामले में मेरे खिलाफ झूठा आरोप लगाया गया क्योंकि मैंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को कमीशन देने से इनकार कर दिया था. आरोप यह था कि मैंने 2.41 लाख रुपये के फर्जी वाउचर भरे थे, जबकि जिस शख्स ने ये फर्जी वाउचर भरे थे, उसे कुछ नहीं कहा गया, लेकिन मुझे दंडित किया गया.’
उन्होंने कहा, ‘दूसरे मामले में फील्ड में होने की वजह से बायोमीट्रिक उपस्थिति का पालन नहीं करने पर मुझे परेशान किया गया. मेरे वरिष्ठ अधिकारी जो इस मामले में पूछताछ कर रहे थे, उनकी भी बायोमीट्रिक उपस्थिति नहीं थी. मुझे दोनों मामलों में सजा दी गई थी, जिस वजह से मैंने अदालत का रुख किया था.’