उत्तराखंड: चमोली आपदा में लापता लोगों को मृत घोषित करेगी सरकार, अधिसूचना जारी

बीते सात फरवरी को चमोली ज़िले की ऋषिगंगा घाटी में पर ग्लेशियर टूटने से अचानक भीषण बाढ़ आ गई थी. इससे चमोली ज़िले के रैणी और तपोवन क्षेत्र में जानमाल का भारी नुकसान हुआ था. आपदा में 204 व्यक्ति लापता हुए थे, जिनमें से अभी तक 70 के शव बरामद हो चुके हैं और 134 लोग अब भी लापता हैं.

उत्तराखंड में इस साल फरवरी में हुए ग्लेशियर हादसे के बाद आई बाढ़ में तबाह जलविद्युत परियोजना. (फाइल फोटो पीटीआई)

बीते सात फरवरी को चमोली ज़िले की ऋषिगंगा घाटी में पर ग्लेशियर टूटने से अचानक भीषण बाढ़ आ गई थी. इससे चमोली ज़िले के रैणी और तपोवन क्षेत्र में जानमाल का भारी नुकसान हुआ था. आपदा में 204 व्यक्ति लापता हुए थे, जिनमें से अभी तक 70 के शव बरामद हो चुके हैं और 134 लोग अब भी लापता हैं.

उत्तराखंड के चमोली जिले में आए आपदा के बाद तपोवन बैराज में बचाव अभियान. (फोटो: पीटीआई)
उत्तराखंड के चमोली जिले में आए आपदा के बाद तपोवन बैराज में बचाव अभियान को देख रहे ग्रामीण. (फोटो: पीटीआई)

देहरादून: उत्तराखंड के चमोली जिले में इस महीने के शुरू में आई प्राकृतिक आपदा में लापता व्यक्तियों को मृत घोषित करने के लिए राज्य सरकार ने प्रक्रिया तय कर दी है.

इस संबंध में स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने प्रदेश के सभी डीएम और जिला जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण अधिकारियों को एक पत्र जारी कर सात फरवरी को भीषण आपदा में लापता व्यक्तियों के लिए मृत्यु प्रमाण-पत्र के संबंध में निर्धारित प्रक्रिया की जानकारी दी गई है. उनसे इसका तत्काल पालन करने को कहा गया है.

21 फरवरी को जारी अधिसूचना में कहा गया है कि साधारणतया मृत्यु का पंजीकरण संबंधित व्यक्तियों की ओर से दी गई सूचना के आधार पर किया जाता है लेकिन उत्तराखंड में हुई असाधारण घटना जैसी अपवाद स्वरूप परिस्थितियों में जांच के बाद किसी लोकसेवक की आख्या पर भी मृत्यु पंजीकरण किया जा सकता है. जिन लोगों के शव प्राप्त हो गए हैं, उनका मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करने में सामान्य प्रक्रिया अपनाई जाएगी, लेकिन जिन लापता लोगों के शव नहीं मिले हैं, उनके मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करने से पहले यह सुनिश्चित किया जाएगा कि उत्तराखंड में आई उक्त दैवीय आपदा में ही उनकी मृत्यु होने की पूरी आशंका है.

मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए आपदा में लापता व्यक्तियों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है. पहली में उन लापता लोगों को रखा गया है जो आपदा प्रभावित स्थानों के स्थायी निवासी थे या उन निकटवर्ती स्थानों के स्थाई निवासी थे जो आपदा के समय आपदा प्रभावित स्थानों में रह रहे थे.

दूसरी श्रेणी में वे लापता लोग हैं जो उत्तराखंड के अन्य जिलों के निवासी थे, लेकिन आपदा के समय आपदा प्रभावित स्थानों में मौजूद थे और तीसरी श्रेणी में अन्य राज्यों के लापता पर्यटक या व्यक्ति हैं जो आपदा के समय आपदा प्रभावित स्थान पर उपस्थित थे.

मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए परगना अधिकारी या उप-जिलाधिकारी को अभिहित अधिकारी (डेजेगनेटेड) और अतिरिक्त जिलाधिकारी या जिलाधिकारी को अपीलीय अधिकारी नियुक्त किया गया है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने कहा कि मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के बाद भी लापता लोगों के लिए खोज अभियान जारी रहेगा.

अधिकारियों का कहना है कि लापता लोगों को मृत घोषित करने के कदम से प्रभावित परिवारों को मुआवजे के वितरण की प्रक्रिया में तेजी आएगी.

डीजीपी अशोक कुमार ने कहा, ‘अब तक 70 शव और 29 मानव अंग बरामद किए गए हैं. पहचान की पुष्टि करने के लिए डीएनए टेस्ट मिलान के लिए नमूने संरक्षित किए जा रहे हैं. अभी बचाव और खोज अभियान तपोवन सुरंग तथा उसके आसपास के गांवों में जारी है.’

बता दें कि बीते सात फरवरी को चमोली जिले की ऋषिगंगा घाटी में पर ग्लेशियर टूटने से अचानक भीषण बाढ़ आ गई थी. बाढ़ से रैणी गांव में स्थित उत्पादनरत 13.2 मेगावाट ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना पूरी तरह तबाह हो गई थी, जबकि धौलीगंगा के साथ लगती एनटीपीसी की निर्माणाधीन तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को व्यापक नुकसान पहुंचा था.

ग्लेशियर टूटने से अलकनंदा और इसकी सहायक नदियों में अचानक आई विकराल बाढ़ के कारण हिमालय की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भारी तबाही मच गई थी. चमोली जिले के रैणी और तपोवन क्षेत्र में जानमाल का भारी नुकसान हुआ था. आपदा में 204 व्यक्ति लापता हुए थे जिनमें से अभी तक 70 के शव बरामद हो चुके हैं और 134 लोग अभी भी लापता हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)