सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया मध्यस्थों और नेटफ्लिक्स व अमेज़न के प्राइम वीडियो जैसे ओटीटी प्लेटफार्मों को उनके माध्यम से साझा की जाने वाली सामग्री के लिए अधिक जवाबदेह बनाने के लिए आईटी अधिनियम में कुछ हिस्सों में बदलाव करना चाहता है.
नई दिल्ली: एक तरफ जहां इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) ने सोशल मीडिया मध्यस्थों के लिए नए नियमों और दिशानिर्देशों को अंतिम रूप देने में लगी है तो दूसरी तरफ इंटरनेट कंपनियों और सार्वजनिक नीति समूहों सहित अन्य हितधारकों ने लाए जाने वाले कुछ बदलावों को लेकर सलाह-मशविरा न होने पर चिंता जाहिर की है. मामले से जुड़े सूत्रों ने यह जानकारी दी है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जवाब देने के लिए फिलहाल निर्धारित 72 घंटे के समय को घटाकर 36 घंटे किए जाने और ट्रेसेबिलिटी (पता लगाना) जैसी चीजों को लागू करने को लेकर किए गए बदलावों पर सलाह-मशविरा न किए जाने को लेकर हितधारकों द्वारा चिंता जताए जाने के बाद सूचना एवं प्रौद्योगिकी (आईटी) मंत्रालय ने सोशल मीडिया की मध्यवर्ती मंचों- जैसे फेसबुक, ट्विटर आदि के लिए लाए जाने वाले नए नियमों और दिशानिर्देशों की घोषणा पिछले हफ्ते की जगह इस हफ्ते तक के लिए टाल दिया है.
दरअसल, आईटी मंत्रालय फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया मंचों और नेटफ्लिक्स व अमेजन प्राइम वीडियो जैसे ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफार्मों द्वारा साझा की जाने वाली सामग्री के लिए अधिक जवाबदेह बनाने के लिए आईटी अधिनियम में कुछ हिस्सों में बदलाव करना चाहता है.
बीते 12 फरवरी को आईटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राज्यसभा को बताया था कि सरकार सोशल मीडिया मध्यस्थों को सरकार के निर्देशों के साथ-साथ अपनी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के प्रति अधिक जवाबदेह बनाने के लिए नए नियम लाने का काम कर रही है.
आईटी मंत्रालय के साथ-साथ अन्य विभागों के अधिकारियों को हितधारकों ने बताया, हालांकि मंत्रालय योजना के साथ तैयार था लेकिन कुछ परिवर्तन जैसे कि एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन की ढाल का दावा करने में सक्षम होने के बिना कंपनियों को कुछ संदेशों की ट्रेसबिलिटी सुनिश्चित करने के लिए मजबूर करना और साथ ही जवाब देने के समय को कम करके 36 घंटे करना थोड़ा अधिक था.
बैठक में शामिल होने वाले एक हितधारक ने बताया, ‘तो ट्विटर का एक ऐसा बड़ा मुद्दा था जिसने सरगर्मी बढ़ा दी और मंत्रालय हर रास्ते को बंद करने में लग गया. लेकिन अंतिम नियमों और दिशानिर्देशों में शामिल किए गए कुछ उपायों को बहुत सख्त माना गया. उदाहरण के लिए, कुछ कंपनियों ने कहा कि उनके पास सामग्री की निगरानी करने और फ्लैग करने (चेतावनी देने) के लिए पहले से ही थर्ड पार्टी सेवाओं का सहारा लेने के बावजूद बहुत बड़ी टीमें हैं जो अनुपयुक्त थीं. 72 घंटे पहले से ही बहुत कम समय है लेकिन उसे भी आधा कर देना बहुत समस्या पैदा करता है.’
एक अन्य महत्वपूर्ण बदलाव आईटी कंपनियों की धारा 79 में संशोधन ऑनलाइन कंपनियों को उनके प्लेटफॉर्म पर साझा किए जाने वाले गैर कानूनी सामग्री का सक्रियता से पता लगाने, पहचान करने और उसे रोकने के लिए किया गया है.
भारत में सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर के कानूनी निदेशक प्रशांत सुगथन ने कहा, ‘ट्रैसेबिलिटी की जरूरत एन्क्रिप्शन को तोड़ देगी और नागरिकों की गोपनीयता के अधिकार और उनके संचार को सुरक्षित करने की उनकी क्षमता को प्रभावित करेगी. यह प्रावधान सूचनात्मक गोपनीयता का उल्लंघन है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है.’
सूत्रों ने कहा कि हालांकि, हितधारकों ने इस संशोधन के बारे में चिंता नहीं जताई है, उन्होंने सरकार से कहा है कि वे यहां कोई दंडात्मक प्रावधान न डालें.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और साइबर सिक्योरिटी लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने कहा, ‘यह कभी न कभी होना तय था. क्योंकि सर्विस प्रोवाइडरों ने काम करने के बजाय मूक दर्शक की भूमिका का चयन किया. उन्हें सक्रियता से कार्रवाई करने से कुछ भी नहीं रोक रहा था. वे सभी भारतीय बाजार का लाभ उठाना चाहते थे और अनुपालन का कम से कम मानना चाह रहे थे.’