साक्षात्कार: एनकाउंटर में मारे गए आतंकी संगठन हिज़बुल मुजाहिद्दीन कमांडर के बुरहान वानी के पिता मुज़फ़्फ़र अहमद वानी से बातचीत.
कश्मीर की समस्या भारत के लिए भले ही राजनीतिक मसला हो लेकिन मुज़फ़्फ़र अहमद वानी के लिए यह निजी मसला भी है. दक्षिणी कश्मीर के त्राल के रहने वाले मुज़फ़्फ़र स्कूल प्रिसिंपल हैं.
मुज़फ़्फ़र अहमद वानी के बड़े बेटे ख़ालिद वानी को सेना ने 2010 में एक मुठभेड़ में मार दिया था. उनके दूसरे बेटे बुरहान वानी को 08 जुलाई 2016 को सेना ने मार गिराया. बुरहान को घाटी में आतंकियों की नई पीढ़ी का पोस्टर बॉय माना जाता था. मारे जाने के समय वह आतंकी संगठन हिज़बुल मुजाहिद्दीन का शीर्ष कमांडर था.
उसके मारे जाने के बाद से लंबे समय तक कश्मीरी जीवन की व्याख्या करने के लिए आपको पत्थरबाज़ी, पैलेट गन, मौत, घायल, गिरफ्तारी, कर्फ्यू, प्रदर्शन, इंटरनेट पर प्रतिबंध, स्कूल बंद जैसे शब्दों का सहारा लेना पड़ता. हालांकि उसकी मौत के एक साल से ज़्यादा समय बीत जाने के बाद इसमें बहुत बदलाव नहीं आया है.
त्राल में मुज़फ़्फ़र वानी का घर एक बड़ी-सी मस्जिद के पास है. मुज़फ़्फ़र का घर तीन मंज़िला है और एक बड़े अहाते को ऊंची बाउंड्री वॉल से घेरा गया है. अहाते में ही बैठने के लिए 12-15 कुर्सियां रखी हैं.
हालांकि वहां बैठे स्थानीय लोगों ने बताया कि बुरहान की मौत के बाद से मुज़फ़्फ़र से मिलने वाले लोगों की संख्या में इज़ाफा हो गया है लेकिन वह पत्रकारों ख़ासकर तौर से ‘इंडियन मीडिया’ से मिलना पसंद नहीं करते हैं.
उन्होंने बताया कि कुछ पत्रकारों ने मुज़फ़्फ़र की कही बात को सही तरीके से नहीं लिखा जिसके बाद से वह मीडियाकर्मियों से नहीं मिलते हैं. फिलहाल हम जब मुज़फ़्फ़र से मिलने पहुंचते हैं. वे घर से बाहर आते हैं और बातचीत का सिलसिला शुरू होता है.
बिना कुछ पूछे वो बताना शुरू करते हैं, ‘सब मुझसे पूछते हैं कि बुरहान ने हथियार क्यों उठाया? कश्मीर के लोग आज़ादी क्यों मांग रहे हैं? आख़िर बिहार, बंगाल या असम का मुसलमान आज़ादी क्यों नहीं मांग रहा है? आख़िर उनकी इस मांग के पीछे क्या कारण है. इसे समझने के लिए आपको 1947 से कश्मीर का इतिहास समझना होगा. जब दो राष्ट्रों का बंटवारा हुआ तो कश्मीर को अलग रख दिया गया.’
वे कहते हैं, ‘उस समय यहां के हालात बिगड़े हुए थे उस समय कहा गया अभी यह भारत के साथ रहेगा. लेकिन यह कहा गया कि यहां के लोगों को यह चुनने का अधिकार दिया जाएगा कि वह भारत, पाकिस्तान या आज़ादी में से किसी का चुनाव कर लें, लेकिन यह नहीं किया गया.’
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दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए मुज़फ़्फ़र कहते हैं, ‘कश्मीर के लोग 1987 तक चुनाव में हिस्सा लेते रहे. यहां पर ज़्यादातर नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार बनती रही. लेकिन 1987 में यहां के लोगों ने अपनी सरकार बनाने की सोची. उन्होंने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट बनाया. जैसे भारत के दूसरे हिस्सों में बहुत सारी पार्टियां चुनाव लड़ रही होती हैं तो बहुत सारे कश्मीरियों ने मिलकर मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट बनाया.’
उनके अनुसार, ‘बड़ी संख्या में लोगों ने उसको वोट दिया, लेकिन परिणाम में सिर्फ चार सीटें इस पार्टी को दी गईं. जो जीतने वाले उम्मीदवार थे उन्हें जेल में रखकर पीटा गया. उसकी एक मिसाल है सैयद सलाहुद्दीन जो आज हिज़बुल मुजाहिद्दीन का सरगना है. उसने भी बड़गाम ज़िले की अमिराकदल सीट से चुनाव लड़ा था. लेकिन उसे जान-बूझकर हरा दिया गया. इसके विरोध में प्रदर्शन हुआ. बड़ी संख्या में निहत्थे लोगों को मारा गया.’
बुरहान वानी की मौत के बाद से कश्मीर में पत्थरबाज़ी की घटनाएं आम हो गई हैं. इस बार घाटी में बड़ी संख्या में लड़कियां भी पत्थर उठाए नज़र आईं.
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पत्थरबाजी के बारे में पूछे जाने पर मुज़फ़्फ़र वानी कहते हैं, ‘मेरे बेटे के हाथ में बंदूक थी किसी ने नहीं पूछा कि सेना ने उसे क्यों मारा. आज आतंकियों के हाथ में बंदूक है और सेना के हाथ में भी बंदूक है. अब इनके बीच मुठभेड़ होती है तो कौन मरता है यह कोई नहीं पूछता है.’
मुज़फ़्फ़र कहते हैं, ‘समस्या तब आती है जब जिस आदमी के हाथ में बंदूक नहीं होती उसे परेशान किया जाता है. तो ऐसे में वह पत्थर उठाता है. तो कश्मीर में सेना का क्या जवाब होता है वह देखिए. पिछले साल हरियाणा में उग्र प्रदर्शन हुआ था, पत्थर चले थे. कितने लोगों को गोलियों से मार दिया गया. अगर सरकार कहती है कि कश्मीरी उनके अपने लोग हैं तो फिर कश्मीरियों के पत्थर मारने पर गोलियां क्यों बरसाई जाती हैं या पैलेट गन से फायरिंग क्यों होती है. ये ज़ुल्म है. ये अपने लोगों से मोहब्बत नहीं है.’
2016 में बुरहान की मौत के बाद से घाटी में मुठभेड़ की घटनाओं में तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है. तेज़ी से लोगों में असंतोष फैल रहा है.
मुज़फ़्फ़र वानी कहते हैं, ‘मैं पूरे कश्मीर की नहीं सिर्फ त्राल की बात करूंगा. पुलिस के अनुसार, 2010 में यहां करीब 10 की संख्या में आतंकी थे. बीच में स्थिति यह हुई कि सिर्फ इनकी संख्या दो हो गई. लेकिन फिर 16 हो गई. बुरहान वानी के समय में यह संख्या बढ़ गई. सरकार कहती हैं कि बुरहान इनका आइकॉन बन गया. उसके समय 50 लड़के आतंकी बन गए लेकिन हमें यह समझना होगा कि बच्चे आतंकी क्यों बन रहे हैं. सुरक्षा बलों ने बुरहान को मार दिया लेकिन आज की तारीख़ में 200 से ज़्यादा आतंकी हैं और हज़ारों की संख्या में बच्चे मिलिटेंट बनना चाहते हैं.’
वे आगे कहते है, ‘मैं इस बात से परेशान हूं कि छोटे-छोटे बच्चे आते हैं और कहते हैं कि मुझे भी मुजाहिद बनना है जबकि उन्हें समझ ही नहीं है कि मुजाहिद क्या बला है. इसका कारण यह है कि इधर भी गोली और पैलेट गन का सामना करना है और उधर भी आपको गोली खानी है. उन्हें पता है कि मरना तो है फिर हम अकारण क्यों मर जाएं.’
कश्मीर में बड़ी संख्या में युवा आतंकवाद की तरफ मुड़ रहे हैं. क्या शिक्षा और बेरोज़गारी कारण है कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने का?
मुज़फ़्फ़र वानी कहते हैं, ‘आप यहां मिलिटेंट बनने वाले लड़कों का बैकग्राउंड और डिग्री देखिए. कोई इंजीनियरिंग किया हुआ है, कोई रिसर्च स्कॉलर हैं, कुछ पीएचडी कर चुके हैं, जेआरएफ, नेट क्वालिफाई हैं, आईएएस की कोचिंग कर चुके हैं. आतंकी पेट से नहीं पैदा होते हैं. आपने हालात ही यही पैदा कर रखे हैं.
वे कहते हैं, ‘मेरे बेटे ने तो सिर्फ मैट्रिक तक की पढ़ाई की थी लेकिन बहुत सारे लड़कों की पढ़ाई बहुत अच्छी है. वैसे भी हम कश्मीरी पागल लोग नहीं हैं कि मौत को सीधे गले लगा लें. कोई बाप नहीं चाहता है कि उसका बेटा 10 साल, 12 साल, 15 साल की उम्र में मर जाए. हर बाप चाहता है कि उसका बेटा बड़ा अधिकारी बने. लेकिन हालात ऐसे हैं कि बेटा मिलिटेंट बन जाता है और फिर बाप की भी नहीं चलती है.’
त्राल में रहने वाले मुज़फ़्फ़र स्कूल प्रिसिंपल हैं. बुरहान की मौत के बाद से पूरे कश्मीर में हिंसा हुई. बड़ी संख्या में युवाओं को गिरफ्तार किया गया. क्या मुज़फ़्फ़र को भी सुरक्षा बलों ने परेशान किया और उनकी स्कूल की ज़िंदगी पर बुरहान के आतंकी बनने से क्या फर्क पड़ा.
इस सवाल पर वे कहते हैं, ‘बुरहान के मारे जाने के बाद सुरक्षा बलों ने हमें कभी परेशान नहीं किया. सिर्फ बुरहान की बरसी के समय सुरक्षा बलों ने थोड़ा परेशान किया. हालांकि उस दौरान मामला बातचीत से सुलट गया. लेकिन जब बुरहान ज़िंदा था तब ज़्यादा दिक्कत होती थी. पुलिस कभी भी आ जाती थी. उस समय मेरा तबादला भी दूर के स्कूल में कर दिया गया था लेकिन बुरहान की मौत के बाद से ऐसा कुछ नहीं है.’
मुज़फ़्फ़र आगे कहते हैं, ‘वैसे भी मैं एक स्कूल में प्रिंसिपल हूं और मैंने ये तय कर रखा है कि स्कूल में किसी तरह की सियासी गुफ्तगू नहीं होगी. स्कूल पढ़ने की जगह है और वहां सिर्फ पढ़ाई की बात होगी. बच्चों को हम डॉक्टर, इंजीनियर बनने समेत बेहतर ज़िंदगी जीने के लिए प्रेरित करते हैं.’
कश्मीर में हाल के दिनों में आतंकियों के ख़िलाफ़ सेना के ऑपरेशन के दौरान स्थानीय लोगों ने पत्थरबाजी की है. कई बार आतंकी इसकी आड़ में भागने में सफल हो जाते हैं.
मुजफ़्फ़र वानी कहते हैं, ‘आज से 20-30 साल पहले जब सेना की मुठभेड़ होती थी तब लोग उस गांव को छोड़कर पांच-पांच किमी दूर तक भाग जाते थे. आज के हालात ये है कि जब मुठभेड़ होती है तो लोग पांच किमी दूर से इकट्ठा हो जाते हैं. तब जान बचाने के लिए भागते थे आज जान देने के लिए मुठभेड़ की जगह आते हैं.’
वे बताते हैं, ‘अब किसी भी मुठभेड़ में दो आतंकी और दो नागरिक मारे जाते हैं. आम नागरिक मुठभेड़ की जगह आते हैं सेना पर पत्थर मारते हैं. उन्हें पता होता है कि जब हम सेना वाले को पत्थर मारेंगे तो वह गोली मार देगा, लेकिन उन्हें मरने का डर नहीं है. पहले सिर्फ जान हथेली पर कहावत थी लेकिन हमारे कश्मीरी युवा अब जान हथेली पर रखकर घूमते हैं.’
कश्मीर साठ सालों से भारत और पाकिस्तान दोनों के बीच विवाद की वजह बना है. पिछले 60 सालों में देश में तमाम सरकारें आईं और गईं, लेकिन मसले का हल नहीं हुआ. आख़िर कश्मीर की समस्या का हल क्या है.
इस सवाल पर वानी कहते हैं, ‘कश्मीर की समस्या का हल बातचीत के ज़रिये ही संभव है, लेकिन भारत की सरकार ने बातचीत के दरवाज़े बंद कर रखे हैं. अगर वह बातचीत करती भी है तो सिर्फ अपने लोगों से. नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी के लोगों से. उनसे बातचीत से कोई फायदा नहीं है.’
मुज़फ़्फ़र कहते हैं, ‘उन्हें यह तय करना है कि बातचीत किससे करनी है. अरे जो रूठा हुआ है जो हमारी बात से सहमत नहीं है यानी हुर्रियत वालों से और दूसरे उग्रवादी समूहों से, उनसे बात करो. सरकार कहती है कि बंदूक छोड़ दो तब बात होगी, लेकिन सिर्फ इतना कहने से बंदूक उठाने वाले मानने के लिए तैयार नहीं होंगे.’
वे आगे कहते हैं, ‘बंदूक छोड़ने की बात कहने से पहले यह भी सोचना होगा कि लोग बंदूक क्यों उठाए घूम रहे हैं. सरकार को चाहिए कि वह पाकिस्तान, हुर्रियत, दूसरे उग्रवादी धड़ों के साथ बातचीत करके मसला सुलझाए.’
मुज़फ़्फ़र कहते हैं, ‘ऐसा कोई मसला नहीं है जिसे बातचीत के ज़रिये सुलझाया न जा सके. लेकिन सरकार हथियारों के दम पर, सेना के सहारे कश्मीरियों को दबाना चाहती है पर कश्मीरियों की आवाज़ को दबाया नहीं जा सकता है वह कमज़ोर हो सकती है लेकिन ख़त्म नहीं हो सकती है. ये हिंदुस्तान को कमज़ोर करती है. ये पाकिस्तान को कमज़ोर करती है. हम कश्मीरी कम खाएंगे, कम पहनेंगे लेकिन अपनी आवाज़ को कमज़ोर नहीं पड़ने देंगे.’