सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने चार अगस्त 2020 के आदेश में परिवर्तन करते हुए यह बात कही हैं. उस आदेश में शीर्ष न्यायालय ने कोरोना वायरस के जोख़िम को देखते हुए बुज़ुर्ग लोगों को भर्ती एवं इलाज में प्राथमिकता देने का निर्देश केवल सरकारी अस्पतालों को दिया था.
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान सरकारी चिकित्सा संस्थानों के साथ-साथ निजी अस्पतालों में भी बुजुर्ग लोगों को भर्ती करने और उपचार में प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस आरएस रेड्डी की पीठ ने अपने चार अगस्त 2020 के आदेश में परिवर्तन करते हुए यह कहा. उस आदेश में शीर्ष न्यायालय ने कोरोना वायरस के जोखिम को देखते हुए बुजुर्ग लोगों को भर्ती एवं उपचार में प्राथमिकता देने का निर्देश केवल सरकारी अस्पतालों को दिया था.
पीठ ने याचिकाकर्ता एवं वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार की इस दलील पर गौर किया कि ओडिशा और पंजाब के अलावा किसी भी अन्य राज्य ने शीर्ष अदालत के पहले जारी निर्देशों के अनुपालन के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी नहीं दी है.
न्यायालय ने बुजुर्ग लोगों को राहत प्रदान करने से संबंधित कुमार के नए सुझावों पर जवाब देने के लिए सभी राज्यों को तीन हफ्ते का समय दिया है.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि शीर्ष न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन के लिए राज्यों को नई मानक संचालन प्रक्रिया जारी करने की जरूरत है.
कुमार ने याचिका दायर कर न्यायालय से अनुरोध किया था कि महामारी काल में बुजुर्ग लोगों को अधिक देखभाल एवं सुरक्षा की जरूरत है अत: इस संबंध में निर्देश जारी किए जाने चाहिए.
शीर्ष अदालत ने पिछले साल निर्देश दिया था कि सभी पात्र वृद्धों को नियमित रूप से पेंशन का भुगतान किया जाना चाहिए और राज्यों को उन्हें कोविड -19 महामारी के मद्देनजर आवश्यक दवाएं, मास्क, सैनिटाइजर और अन्य आवश्यक सामान उपलब्ध कराना चाहिए.
अश्विनी कुमार ने कहा था कि वृद्ध लोग, जो अकेले रह रहे हैं, सबसे ज्यादा पीड़ित हैं और उन्हें दवा, मास्क, सैनिटाइटर और अन्य आवश्यक सामान नहीं मिल पा रहे हैं.
अदालत ने कहा था कि वरिष्ठ लोगों के कोरोना से ग्रस्त होने की अधिक संभावना को देखते हुए सरकारी अस्पतालों में इन्हें प्राथमिकता के आधार पर इलाज मिलना चाहिए.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)