पंजाब विधानसभा में केंद्रीय कृषि क़ानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर प्रस्ताव पारित

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विधानसभा में प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि किसानों के हितों को दरकिनार कर इन क़ानूनों को लागू होने नहीं दिया जा सकता. उन्होंने सवाल उठाया कि जब कॉरपोरेट्स साथ किए गए समझौते से संबंधित किसी विवाद पर किसानों को दीवानी अदालतों के आने से रोका जाता है तो किसे फायदा होगा?

कैप्टन अमरिंदर सिंह. (फोटो: फेसबुक)

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विधानसभा में प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि किसानों के हितों को दरकिनार कर इन क़ानूनों को लागू होने नहीं दिया जा सकता. उन्होंने सवाल उठाया कि जब कॉरपोरेट्स साथ किए गए समझौते से संबंधित किसी विवाद पर किसानों को दीवानी अदालतों के आने से रोका जाता है तो किसे फायदा होगा?

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पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह. (फोटो: पीटीआई)

चंडीगढ़: पंजाब विधानसभा ने केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर शुक्रवार को एक प्रस्ताव पारित कर दिया. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इन कानूनों का विरोध कर रहे किसानों के बारे में अपमानजनक बयान देने के लिए भाजपा नेताओं पर निशाना भी साधा.

उन्होंने केंद्र सरकार से किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों और नोटिसों को वापस लेने की अपील की, ताकि इस मुद्दे के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए सकारात्मक माहौल तैयार किया जा सके.

सिंह ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि किसानों के हितों को दरकिनार कर इन कानूनों को लागू होने नहीं दिया जा सकता, क्योंकि ये कानून न केवल सहकारी संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ हैं, बल्कि इनके उद्देश्य भी निरर्थक हैं.

सदन में मौजूद सभी सदस्यों ने इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कर दिया. हालांकि सदन में जब प्रस्ताव पारित हुआ तब आप, शिरोमणि अकाली दल और भाजपा के सदस्य मौजूद नहीं थे.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक विधानसभा में प्रस्ताव पेश करते हुए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिह ने कृषि कानूनों को लाने के पीछे केंद्र की मंशा को बेनकाब करने के लिए 10 सवाल पूछे और कहा कि केंद्र इन कानूनों को लाने के पीछे की असली इरादे को उजागार करे, जो किसान और राज्य को किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं हैं.

मुख्यमंत्री ने पूछा, ‘पूरी तरह से अनियमित मंडियों से किसको फायदा होगा? जब कॉरपोरेट्स साथ किए गए समझौते से संबंधित किसी विवाद पर किसानों को दीवानी अदालतों के आने से रोका जाता है तो किसे फायदा होगा?’

राज्यपाल के अभिभाषण का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री ने प्रदर्शनकारी किसानों को देश-विरोधी करार देने के लिए भाजपा नेतृत्व पर भी निशाना साधा.

उन्होंने कहा, ‘पंजाब के किसान और खेत मजदूर देशभक्त और राष्ट्रवादी हैं, जिन्होंने भारत की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा के लिए पिछले साल गालवान घाटी में देश के लिए अपनी जान दे दी.’

उनकी यह टिप्पणी हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल के बयान पर थी, जिन्होंने कहा था कि जो लोग आंदोलन के दौरान दिल्ली की सीमाओं पर मरे हैं, वे वैसे भी घर पर ही मर जाते.

मुख्यमंत्री ने जेपी दलाल से इस असंवेदनशील आचरण के लिए बिना शर्त माफी की मांग की.

अमरिंदर ने कहा कि 11 दौर की चर्चाओं के बावजूद केंद्र ने देश भर के किसानों के विरोध को अनसुना कर दिया. उनकी मांगों को पूरा करने के लिए कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया.

बीते साल अक्टूबर में पंजाब विधानसभा ने केंद्र के कृषि संबंधी नए कानूनों को खारिज करते हुए एक प्रस्ताव और चार विधेयक पारित करते हुए कहा था कि ये संसद द्वारा हाल में पारित तीन कृषि कानूनों को बेअसर करेंगे.

राज्य सरकार के इन विधेयकों में किसी कृषि समझौते के तहत गेहूं या धान की बिक्री या खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम पर करने पर सजा और जुर्माने का प्रावधान है. इसमें कम से तीन वर्ष की कैद का प्रावधान है.

साथ ही इसमें किसानों को 2.5 एकड़ तक की जमीन की जब्ती से छूट दी गई है और कृषि उपज की जमाखोरी और कालाबाजारी की रोकथाम के उपाय किए गए हैं.

इसके बाद बीते साल अक्टूबर में ही कृषि कानूनों के राज्य के किसानों पर पड़ने वाले असर को ‘निष्प्रभावी’ करने के लिए तीन विधेयक राजस्थान विधानसभा में पेश किए गए थे. इन विधेयकों में राज्य के किसानों के हितों की रक्षा के लिए कई प्रावधान किए हैं. इनमें किसानों के उत्पीड़न पर कम से कम तीन साल की कैद और पांच लाख रुपये तक का जुर्माना शामिल है.

बीते साल दिसंबर में केरल विधानसभा केंद्र के तीनों विवादित कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था.

उल्लेखनीय है कि पिछले 100 दिनों से केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए विवादित कृषि कानूनों को पूरी तरह रद्द करने की मांग को लेकर हजारों किसान दिल्ली की तीन सीमाओं- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर के साथ अन्य जगहों पर भी प्रदर्शन कर रहे हैं. इनमें से अधिकतर किसान पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं.

किसान संगठनों ने आरोप लगाया है कि इन कृषि कानूनों से कंपनियों को लाभ होगा और इसलिए वे पंजाब और हरियाणा में बहुत सारी जमीनें खरीद रहे हैं, जिस पर वे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करेंगे और प्राइवेट मंडियां स्थापित करेंगे. इससे सरकारी मंडियां और खरीद व्यवस्था खत्म हो जाएगी.

दूसरी तरफ सरकार ने तीनों कानूनों को कृषि सुधारों की दिशा में बड़ा कदम करार देते हुए कहा है कि इससे किसानों को लाभ होगा और अपनी उपज बेचने के लिए उनके पास कई विकल्प होंगे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)