गुजरात: 20 साल बाद अदालत ने 122 लोगों को सिमी का सदस्य होने के आरोप से बरी किया

गुजरात में सूरत की एक अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन यह साबित करने के लिए ठोस, विश्वसनीय और संतोषजनक साक्ष्य पेश करने में नाकाम रहा कि आरोपी सिमी से जुड़े हुए थे और प्रतिबंधित संगठन की गतिविधियों को बढ़ाने के लिए एकत्र हुए थे.

प्रतीकात्मक तस्वीर. (साभार: Joe Gratz/Flickr CC0 1.0)

गुजरात में सूरत की एक अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन यह साबित करने के लिए ठोस, विश्वसनीय और संतोषजनक साक्ष्य पेश करने में नाकाम रहा कि आरोपी सिमी से जुड़े हुए थे और प्रतिबंधित संगठन की गतिविधियों को बढ़ाने के लिए एकत्र हुए थे.

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नई दिल्ली: गुजरात में सूरत की एक अदालत ने बीते शनिवार को 122 लोगों को प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के सदस्य तौर पर दिसंबर 2001 में हुई एक बैठक में शामिल होने के आरोप से बरी कर दिया.

इन सभी को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार किया गया था.

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एएन दवे की अदालत ने आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया. मामले की सुनवाई के दौरान पांच आरोपियों की मौत हो गई थी.

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन यह साबित करने के लिए ‘ठोस, विश्वसनीय और संतोषजनक’ साक्ष्य पेश करने में नाकाम रहा कि आरोपी सिमी से जुड़े हुए थे और प्रतिबंधित संगठन की गतिविधियों को बढ़ाने के लिए एकत्र हुए थे.

अदालत ने कहा कि आरोपियों को यूएपीए के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता.

सूरत की अठवालाइंस पुलिस ने 28 दिसंबर 2001 को कम से कम 127 लोगों को सिमी का सदस्य होने के आरोप में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया था. इन पर शहर के सगरामपुरा के एक हॉल में प्रतिबंधित संगठन की गतिविधियों को विस्तार देने के लिए बैठक करने का आरोप था.

केंद्र सरकार ने 27 सितंबर 2001 को अधिसूचना जारी कर सिमी पर प्रतिबंध लगा दिया था.

इस मामले के आरोपी गुजरात के विभिन्न भागों के अलावा तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और बिहार के रहने वाले हैं.

अपने बचाव में आरोपियों ने कहा कि उनका सिमी से कोई संबंध नहीं है और वे सभी अखिल भारतीय अल्पसंख्यक शिक्षा बोर्ड के बैनर तले हुए कार्यक्रम में शामिल हुए थे.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक कोर्ट ने कहा, ‘न्यायालय ने पाया है कि आरोपी एक शैक्षणिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए जुटे थे और उनके पास कोई हथियार नहीं था. अभियोजन इस बात को साबित नहीं कर पाया है कि आरोपी सिमी से जुड़ी किसी गतिविधि के लिए जुटे थे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘यहां तक कि छापेमारी के दौरान भी 123 में से एक भी व्यक्ति ने भागने की कोशिश नहीं की. जब्त की गई सामग्री का भी सिमी से कोई संबंध नहीं है.’

पुलिस ने दावा किया था कि उन्होंने सिमी में शामिल होने के लिए आवेदन फॉर्म, प्रतिबंधित और आतंकी ओसामा बिन लादेन की तारीफ करने वाले साहित्य बरामद किए हैं.

उन्होंने आरोप लगाया था कि पुलिस को देखते ही उनमें से कई लोगों ने सबूत को मिटाने के लिए उसी समय अपने मोबाइल के सिम कार्ड चबा गए थे.

पुलिस ने उन्हें इस आधार पर सिमी से जोड़ने की कोशिश की थी कि हॉल को एआर कुरैशी और सिमी के राष्ट्रीय सदस्य साजिद मंसूरी के भाई अलिफ माजिद मंसूरी ने बुक किया था. पुलिस ने आरोप लगाया था कि सिमी के कार्यों को पूरा करने के लिए शैक्षिक संगोष्ठी सिर्फ एक दिखावा था.

इस मामले को लेकर बीते शनिवार को हुई सुनवाई के दौरान 111 आरोपी कोर्ट में मौजूद थे. मौलाना अतउर रहमान वाजदी, जो अब 85 साल के हैं, ने कहा गिरफ्तारी के बाद हर किसी ने उनसे मुंह मोड़ लिया था.

वाजदी ने कहा, ‘किसी ने भी हमसे बात नहीं की और न ही सुना. इतने सालों से मैं देशविरोधी के धब्बे के साथ जी रहा था. अब कम से कम आजाद होकर मरेंगे.’

वहीं जिला प्रशासन के वकील नयन सुखदवाला ने कहा कि आदेश पढ़ने के बाद वे फैसला लेंगे कि वे इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करेंगे या नहीं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)