महाराष्ट्र: कवि और कार्यकर्ता वरवरा राव को अस्पताल से छुट्टी मिली

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीते 22 फरवरी को मेडिकल आधार पर 82 वर्षीय वरवरा राव को छह महीने की अंतरिम ज़मानत दी थी. अदालत ने कहा था कि अस्पताल से छुट्टी मिलते ही राव को तुरंत जेल से रिहा कर दिया जाए.

कवि वरवर राव (फोटो: पीटीआई)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीते 22 फरवरी को मेडिकल आधार पर 82 वर्षीय वरवरा राव को छह महीने की अंतरिम ज़मानत दी थी. अदालत ने कहा था कि अस्पताल से छुट्टी मिलते ही राव को तुरंत जेल से रिहा कर दिया जाए.

कवि वरवर राव (फोटो: पीटीआई)
कवि वरवर राव (फोटो: पीटीआई)

मुंबई: एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी कवि व कार्यकर्ता वरवरा राव को शनिवार की रात नानावती अस्पताल से छुट्टी मिल गई. राव तबियत खराब होने के कारण निजी अस्पताल में भर्ती थे.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने 22 फरवरी को मेडिकल आधार पर 82 वर्षीय राव को छह महीने की अंतरिम जमानत दी थी.

इसके साथ ही अदालत ने कहा था कि राव को छह महीने की जमानत अवधि के बाद या तो आत्मसमर्पण करना होगा या विस्तार के लिए आवेदन करना होगा.

बाद में राव ने अदालत से अनुरोध किया था कि जब तक उन्हें कोई जमानतदार नहीं मिल जाता है, उन्हें नकद मुचलका भरने की अनुमति दी जाए. अदालत ने उनकी यह अर्जी सोमवार को स्वीकार कर ली थी.

अदालत ने इससे पहले कहा था कि अस्पताल से छुट्टी मिलते ही राव को तुरंत जेल से रिहा कर दिया जाए.

राव को इस शर्त पर जमानत दी गई है कि उन्हें मुंबई में ही रहना है और जांच के लिए उपलब्ध रहना होगा. उन्हें छह महीने की अवधि के लिए एनआईए कोर्ट मुंबई के अधिकार क्षेत्र में रहना होगा.

बता दें कि हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर वह राव को चिकित्सा के आधार पर जमानत नहीं देता तो यह मानवाधिकार के सिद्धांत की रक्षा करने के उसके कर्तव्य एवं नागरिकों के जीवन एवं स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार से विमुख होने जैसे होगा.

साल 2018 में एल्गार परिषद मामले में पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए कई सामजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों में वरवरा राव भी शामिल हैं.

बाद में इस मामले को एनआईए को स्थानांतरित कर दिया गया है, जिसने अन्य कई कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को गिरफ्तार किया.

यह मामला 1 जनवरी, 2018 को पुणे के निकट भीमा-कोरेगांव की जंग की 200वीं वर्षगांठ के जश्न के बाद हिंसा भड़कने से संबंधित है, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे.

उसके एक दिन पहले 31 दिसंबर 2017 को पुणे के ऐतिहासिक शनिवारवाड़ा में एल्गार परिषद का सम्मेलन आयोजित किया गया था. आरोप है कि सम्मेलन में एल्गार परिषद समूह के सदस्यों ने भड़काऊ भाषण दिए थे, जिसके अगले दिन हिंसा भड़क गई थी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)