अपनी रिपोर्ट्स के ज़रिये वित्तीय जवाबदेही तय करने और सरकारी अनियमितताओं को सामने लाने वाली कैग ने 2जी, कोयला आवंटन, 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स समेत कई घोटालों को उजागर किया था. आरटीआई के तहत मिली जानकारी के अनुसार 2015 में कैग ने 55 रिपोर्ट्स पेश की थीं, जिनकी संख्या 2020 घटकर 14 हो गई.
नई दिल्ली: कांग्रेस की अगुवाई वाली पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के दौरान कई कथित घोटालों का उजागर करने वाले भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट्स में पिछले पांच सालों में काफी गिरावट आई है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के द्वारा आरटीआई के तहत प्राप्त की गई जानकारी के मुताबिक साल 2015 से 2020 के बीच कैग की की रिपोर्ट में 75 फीसदी की गिरावट आई है. साल 2015 में कैग ने 55 रिपोर्ट्स पेश की थी, लेकिन 2020 तक इसकी संख्या घटकर महज 14 रह गई है.
अपनी रिपोर्ट्स के जरिये वित्तीय जवाबदेही तय करने और सरकारी अनियमितताओं का खुलासा करने वाली देश की प्रतिष्ठित संस्था कैग ने 2जी आवंटन, कोयला आवंटन, आदर्श हाउसिंग सोसायटी और 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर कई घोटालों को उजागर किया था.
इसके चलते तत्कालीन यूपीए सरकार की छवि को काफी नुकसान हुआ और साल 2014 में मोदी सरकार को सत्ता में लाने में भाजपा को मदद भी मिली.
हालांकि एनडीए सरकार में कैग अपनी रिपोर्टस जारी करने को लेकर उतनी तत्परता नहीं दिखा रहा है. जाहिर है इसके चलते मोदी सरकार को आलोचनाओं से बचने का फायदा भी मिल रहा है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘एनडीए सरकार के शुरुआती वर्षों के दौरान संसद में कैग की रिपोर्ट की संख्या 10 वर्षों में सबसे अधिक थी. लेकिन उसके बाद संख्या में लगातार गिरावट आई है.’
आरटीआई के जवाब से पता चलता है कि रक्षा ऑडिट रिपोर्ट के संख्या में काफी गिरावट आई है. साल 2017 में इस तरह की आठ ऑडिट रिपोर्ट संसद में पेश की गई थी, लेकिन पिछले साल इसी संख्या शून्य रही. रेलवे ऑडिट रिपोर्ट्स के मामले में भी यही हाल है.
कैग के इस लचर प्रदर्शन पर टिप्पणी करते हुए पूर्व आईएएस अधिकारी जवाहर सरकार ने कहा कि कैग अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है, जो फंड के खर्च की ऑडिटिंग करना है.
उन्होंने कहा, ‘पिछले दो-तीन कैग विनोद राय जैसे बहुत आक्रामक नहीं रहे हैं. बल्कि वे आमतौर पर हल्के और नरम रवैये वाले रहे हैं.’
उन्होंने कहा कि यहां तक कि नोटबंदी जैसे विवादित मामलों की भी कैग ने ऑडिटिंग नहीं की, जो बेहद अप्रत्याशित है. जवाहर सरकार ने कहा, ‘1,000 रुपये के नोट को बैन करने से क्या प्रभाव पड़ा? ये सब ऐसे समय पर हुआ जब संस्था को अभी जिम्मेदारी निभानी चाहिए थी.’
इसी तरह लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा, ‘कैग को यह पता लगाना होता है कि क्या पैसा सही तरीके से और नियमों/कानूनों के अनुसार खर्च किया गया है. कैग को सरकार के इन सभी लेनदेन की जांच करनी होती है. इसका मतलब है कि कैग ने ऑडिट के लिए कम मामलों को उठाया या फिर उन्हें खर्च में कुछ भी गलत नहीं लगा.’
कैग ने इस मामले पर जवाब देने से इनकार कर दिया.