ब्रिटिश सांसदों ने किसान आंदोलन- शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार संबंधी चर्चा की, भारत ने नाराज़गी जताई

भारत में तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आंदोलन के बीच ब्रिटिश सांसदों ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के अधिकार और प्रेस की आज़ादी को लेकर एक लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर वाली ‘ई-याचिका’ पर चर्चा की. भारत ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि इस ‘एकतरफा चर्चा में झूठे दावे’ किए गए.

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भारत में किसान आंदोलन पर चर्चा करते ब्रिटिश सांसद. (फोटो: ट्विटर/@TanDhesi)

भारत में तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आंदोलन के बीच ब्रिटिश सांसदों ने शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के अधिकार और प्रेस की आज़ादी को लेकर एक लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर वाली ‘ई-याचिका’ पर चर्चा की. भारत ने इसकी निंदा करते हुए कहा कि इस ‘एकतरफा चर्चा में झूठे दावे’ किए गए.

भारत में किसान आंदोलन पर चर्चा करते ब्रिटिश सांसद. (फोटो: ट्विटर/@TanDhesi)
भारत में किसान आंदोलन पर चर्चा करते ब्रिटिश सांसद. (फोटो: ट्विटर/@TanDhesi)

लंदन: लंदन में भारतीय उच्चायोग ने भारत में तीन कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के आंदोलन के बीच शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन करने के अधिकार और प्रेस की स्वतंत्रता के मुद्दे को लेकर एक ‘ई-याचिका’ पर कुछ सांसदों के बीच हुई चर्चा की निंदा की है.

उच्चायोग ने सोमवार शाम ब्रिटेन के संसद परिसर में हुई चर्चा की निंदा करते हुए कहा कि इस ‘एकतरफा चर्चा में झूठे दावे’ किए गए हैं.

उच्चायोग ने एक बयान में कहा, ‘बेहद अहसोास है कि एक संतुलित बहस के बजाय बिना किसी ठोस आधार के झूठे दावे किए गए… इसने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में से एक और उसके संस्थानों पर सवाल खड़े किए हैं.’

यह चर्चा एक लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर वाली ‘ई-याचिका’ पर की गई. भारतीय उच्चायोग ने इस चर्चा पर अपनी नाराजगी जाहिर की है. हालांकि, ब्रिटेन की सरकार पहले ही भारत के तीन नए कृषि कानूनों के मुद्दे को उसका ‘घरेलू मामला’ बता चुकी है.

ब्रिटिश सरकार ने भारत की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा, ‘भारत और ब्रिटेन, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बेहतरी के लिए एक बल के रूप में काम करते हैं और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग कई वैश्विक समस्याओं को सुलझाने में मदद करता है.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, अपने बयान में भारतीय मिशन ने यह भी बताया कि विदेशी मीडिया, जिसमें ब्रिटिश मीडिया भी शामिल है, खुद भारत में किसान विरोध प्रदर्शनों के घटनाओं को देखा है और पेश किया है इसलिए भारत में मीडिया की स्वतंत्रता की कमी का कोई सवाल ही नहीं उठता था.

उसने अफसोस जताया कि किसानों के विरोध पर एक झूठी कहानी को गढ़ने की कोशिश गई, जबकि भारतीय उच्चायोग समय-समय पर याचिका में उठाए गए मुद्दों के बारे में सभी संबंधित चिंताओं को दूर करता रहा है.

उच्चायोग ने कहा कि उसे उक्त बहस पर प्रतिक्रिया देनी पड़ी क्योंकि उसमें भारत को लेकर आशंकाएं व्यक्त की गई थीं.

बयान में कहा गया, ‘भारतीय उच्चायोग आम तौर पर एक सीमित कोरम में माननीय सांसदों के एक छोटे समूह की एक आंतरिक चर्चा पर टिप्पणी करने से परहेज करता है.’

आगे कहा गया, हालांकि, दोस्ती और प्यार के दावे या घरेलू राजनीतिक मजबूरियों के बावजूद जब किसी के भी द्वारा भारत को लेकर आशंकाएं जताई जाती हैं तो उसे सही किए जाने की आवश्यकता होती है.’

भारत में कृषि सुधारों का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल के कथित इस्तेमाल और विरोध प्रदर्शन को कवर करते हुए पत्रकारों को निशाना बनाए जाने के मुद्दे पर अलग-अलग पार्टियों के करीब दर्जन भर ब्रिटिश सांसदों के एक समूह द्वारा चर्चा किए जाने पर यह बयान जारी किया गया है.

हालांकि बहस का जवाब देने के लिए नियुक्त ब्रिटिश सरकार के विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय (एफसीडीओ) मंत्री निगेल एडम्स ने कहा कि ब्रिटेन-भारत के करीबी रिश्ते भारत के साथ मुश्किल मुद्दों को उठाने में किसी भी तरह से बाधा नहीं हैं. यहां तक कि उन्होंने सरकारी लाइन को दोहराया कि कृषि सुधार भारत के लिए एक घरेलू मामला है.

एडम्स ने कहा, ‘यह भारत के साथ ब्रिटेन के संबंधों के लिए बहुत महत्वाकांक्षा का समय है. दोनों सरकारें व्यापार और निवेश, स्वास्थ्य, स्थिरता और जलवायु परिवर्तन और रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में साझा प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रही हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हम भारत के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अच्छे के लिए संगठित रूप में और प्रधानमंत्री के (बोरिस जॉनसन) के अतिथि देशों में से एक के रूप में इस साल जून में जी-7 शिखर सम्मेलन में काम कर रहे हैं. यह सहयोग हमें वैश्विक समस्याओं को ठीक करने में मदद करेगा और यह भारत और ब्रिटेन की समृद्धि और भलाई को मजबूत करेगा.’

मंत्री ने कहा, ‘हालांकि, जबकि यह भारत-ब्रिटेन संबंधों के लिए एक रोमांचक समय है, यह हमें कठिन मुद्दों को उठाने से नहीं रोकता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कई मुद्दों पर स्पष्ट चर्चा आने वाले महीनों में बोरिस जॉनसन की भारत की योजना का हिस्सा बनेगी.’

यद्यपि मंत्री ने स्वीकार किया कि भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन और अनिश्चितता के कारण ब्रिटिश समुदाय भारत में पारिवारिक संबंधों के कारण परेशान था, उन्होंने आशा व्यक्त की कि भारत सरकार और किसानों की यूनियनों के बीच चल रही बातचीत के सकारात्मक परिणाम होंगे.

एक बड़े पंजाबी प्रवासी वाले पश्चिम लंदन में ईलिंग साउथहॉल के लिए विपक्षी लेबर सांसद विरेंद्र शर्मा ने भारत सरकार और आंदोलनकारी किसानों को इस मुद्दे पर समझौता करने के लिए परामर्श देने की मांग की.

उन्होंने कहा, ‘दोनों पक्षों को एक समझौते पर आने की जरूरत है. मुझे उम्मीद है कि (ब्रिटिश) सरकार इस संबंध में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध होगी और बातचीत में ब्रिटिश कौशल की पेशकश करेगी और इस मुद्दे को करीब लाने के लिए दोनों पक्षों की मदद करेगी.’

लंदन में पोर्टकॉलिस हाउस के एक कमरे में वीडियो लिंक के माध्यम से भाग लेने वाले कुछ सांसदों के साथ हाइब्रिड रूप में आयोजित बहस ई-याचिका से संबंधित है, जिसमें भारत सरकार से अनुरोध किया गया है कि वह प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा और प्रेस की आजादी सुनिश्चित करे.

लिबरल डेमोक्रेट सांसद और विदेशी मामलों की प्रवक्ता लैला मोरन ने कहा, ‘यह लोकतंत्र की ताकत ही है कि हम आज (सोमवार को) सरकार को जवाबदेह ठहरा सकते हैं. लिबरल डेमोक्रेट काउंसिलर गुरच सिंह द्वारा शुरू की गई और 100,000 से अधिक लोगों द्वारा हस्ताक्षरित एक याचिका ने सरकार को इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर छिपने से रोक दिया है.’

सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी की सांसद थेरेसा विलियर्स ने उल्लेख किया कि कृषि सुधार एक ऐसा मुद्दा है जो वर्षों में दुनिया भर में मुश्किल साबित हुआ है और बताया कि भारत में नए कृषि कानूनों को अधिक परामर्श और चर्चा की अनुमति देने के लिए स्थगित कर दिया गया था.

उन्होंने कहा, ‘मैं समझती हूं कि विरोध करने वाले किसान अपने भविष्य के बारे में असुरक्षित महसूस करते हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने बार-बार कहा है कि सुधारों का एक मुख्य उद्देश्य खेती को अधिक लाभदायक बनाना, खेती में काम करने वाले लोगों की आय में वृद्धि करना, कृषि में निवेश को बढ़ावा देना और पैदावार बढ़ाने के लिए है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं विरोध प्रदर्शनों पर की गई प्रतिक्रियाओं के बारे में व्यक्त की गई चिंताओं को सुनती हूं लेकिन जब हजारों और हजारों लोग कई महीनों तक प्रदर्शन और धरने में शामिल होते हैं, तो किसी भी तरह की पुलिसया कार्रवाई विवाद को खत्म नहीं कर सकती है.’

बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन नए विवादित कृषि कानूनों को पूरी तरह रद्द करने की मांग को लेकर हजारों किसान सौ दिन से अधिक समय से दिल्ली की तीन सीमाओं- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर के साथ अन्य जगहों पर भी प्रदर्शन कर रहे हैं. इनमें से अधिकतर किसान पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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