हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा में वर्तमान में 88 सदस्य हैं. अविश्वास प्रस्ताव पर छह घंटे चली चर्चा के बाद प्रस्ताव के ख़िलाफ़ 55 और पक्ष में 32 मत पड़े. सदन में राज्य सरकार से समर्थन वापस लेने वाले निर्दलीय विधायक ने कहा कि कृषि क़ानूनों के चलते भाजपा-जेजेपी नेताओं को उनके गांवों में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है.
चंडीगढ़: हरियाणा में भाजपा-जेजेपी सरकार ने विधानसभा में बुधवार को आसानी से विश्वास मत हासिल कर लिया. मतों के विभाजन के बाद यह प्रस्ताव गिर गया.
प्रस्ताव पर छह घंटे तक चली मैराथन चर्चा के अंत में विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता ने सदन में घोषणा की कि अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ 55 और पक्ष में 32 मत पड़े.
पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के नेता बीएस हुड्डा ने अध्यक्ष से अनुरोध किया था कि अविश्वास प्रस्ताव पर गुप्त मतदान की अनुमति दी जाए.
अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ वोट डालने वाले 55 सदस्यों में से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 39, उसकी सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के 10, पांच निर्दलीय और हरियाणा लोकहित पार्टी से गोपाल कांडा शामिल हैं. विधानसभा में अध्यक्ष समेत भाजपा के 40 सदस्य हैं.
कांग्रेस के 30 सदस्यों और दो निर्दलीय विधायकों बलराज कुंडू और सोमबीर सांगवान ने अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया.
हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा में वर्तमान में सदस्यों की कुल संख्या 88 है, जिसमें सत्तारूढ़ भाजपा के 40 सदस्य, जेजेपी के दस और कांग्रेस के 30 सदस्य हैं.
विपक्ष के नेता हुड्डा ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाले हरियाणा मंत्रिमंडल के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पेश करते हुए सदन में कहा था कि राज्य सरकार ने लोगों का विश्वास खो दिया है.
केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं के निकट किसानों के विरोध प्रदर्शन का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री खट्टर ने विपक्ष से कहा कि वे किसानों को भड़काना बंद करें और इसके बजाय उन्हें आगे आकर किसानों को अपना आंदोलन समाप्त करने को कहना चाहिए.
उपमुख्यमंत्री और जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला ने आश्वासन दिया कि सरकार किसानों के हितों की रक्षा करेगी. उन्होंने कहा कि मंडियां और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जारी रहेगा.
प्रश्नकाल समाप्त होने के बाद अध्यक्ष ने मंत्रिमंडल के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार किया और इस पर चर्चा के लिए दो घंटे का समय तय किया.
हालांकि इसके बाद कई सदस्यों ने इस पर अपने विचार रखे और चर्चा छह घंटों तक चली.
इससे पहले केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे किसानों का मुद्दा सबसे पहले उठाते हुए हुड्डा ने कहा कि स्थिति ऐसी है कि सत्ताधारी पार्टी के विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्रों में भी नहीं जा सकते.
प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान हुड्डा ने कहा, ‘इस सरकार ने लोगों का विश्वास खो दिया है. उनके विधायक अपने निर्वाचन क्षेत्रों में भी नहीं जा सकते.’
उन्होंने दावा किया कि भाजपा-जेजेपी सरकार ने नवंबर में किसानों को रोका, उनके विरुद्ध पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया और वे दिल्ली की ओर न जा सकें इसलिए सड़कें तक खोद दी गईं.
हुड्डा ने कहा, ‘सरकार को यह पता होना चाहिए कि वह इन तरीकों का इस्तेमाल कर किसानों के मनोबल को तोड़ नहीं सकती.’
खट्टर सरकार का पहला विश्वास मत
रिपोर्ट के अनुसार, यह पहली बार था जब 27 अक्टूबर, 2019 में सत्ता में आने वाली भाजपा नेतृत्व वाली सरकार को सदन में अपना बहुमत साबित करना पड़ा हो.
16 महीने पहले हुए चुनाव के बाद 40 विधायकों वाली भाजपा ने 10 सदस्यों वाली दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जेजेपी के साथ हाथ मिला लिया था. चौटाला भाजपा सरकार में उपमुख्यमंत्री हैं.
हालांकि, इसके अलावा गठबंधन को सात निर्दलीयों का भी समर्थन मिला जिसके बाद 90 सदस्यों वाले सदन में भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन की कुल क्षमता 57 हो गई.
अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान से पहले भाजपा, कांग्रेस और जेजेपी तीनों ही दलों ने अपने-अपने सदस्यों को सदन में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहने के लिए व्हिप जारी किया था.
कृषि कानूनों की वापसी की उठी मांग
विधानसभा में बहस के दौरान भाजपा-जेजेपी सरकार से अपना समर्थन वापस लेने वाले चरखी-दादरी से निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान जोर देकर कहा कि भाजपा और जेजेपी के नेताओं को उनके गांवों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही है, क्योंकि ये तीन कानून किसानों के लिए बिल्कुल अच्छे नहीं हैं.
उन्होंने मांग की कि सदन विधायकों की भावनाओं को व्यक्त करते हुए एमएसपी का पूर्ण अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रस्ताव पारित करे और केंद्र को भेजे.
उन्होंने कहा कि विधायक विभिन्न कारणों से तीन कानूनों के खिलाफ खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं, हालांकि उनका मानना है कि ये किसान विरोधी हैं.
असंतुष्ट जेजेपी विधायकों का गठबंधन का समर्थन
तीन कृषि कानूनों को पास करने के तरीके के खिलाफ खुलकर बोलने वाले जेजेपी के दो विधायकों राम कुमार गौतम और देवेंद्र बबली ने भी प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया. हालांकि, बहस के दौरान बोलने का मौका न मिलने पर उन्होंने नाखुशी जताई.
इसके साथ ही जहां हरियाणा लोकहित पार्टी के विधायक गोपाल कांडा ने भी प्रस्ताव के खिलाफ और सरकार के समर्थन में वोट किया. वहीं, एक मेहम से एक निर्दलीय विधायक बलराज कुंडु ने प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया.
खुद को कांग्रेस के साथ न बताते हुए कुंडु ने कहा, ‘मैं प्रस्ताव पेश करने वाली कांग्रेस पार्टी के साथ नहीं हूं लेकिन मैं किसानों के साथ हूं.’
वहीं, चार निर्दलीयों ने प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया.
जनता की नजर में गिर गई खट्टर सरकार: हुड्डा
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने बुधवार को कहा कि राज्य सरकार ने विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को भले ही हरा दिया हो लेकिन वह ‘लोगों की नजर में गिर गई है.’
हुड्डा ने पत्रकारों से कहा, ‘जेजेपी और (सात में से पांच) निर्दलीय विधायक, जो सरकार के सहयोगी हैं, उनके पास किसानों के लिए वोट करने और जन प्रतिनिधि होने की जिम्मेदारियों को पूर्ण करने का मौका था.’
उन्होंने कहा कि सदन में कांग्रेस की भले ही सीमित संख्या हो, लेकिन ‘हम सदन में किसानों के साथ मजबूती से खड़े रहे और अपनी जिम्मेदारी निभाई.’
विधानसभा में विपक्ष के नेता ने कहा, ‘हमने उस सरकार के खिलाफ वोट दिया है, जिसने किसानों पर लाठीचार्ज कराया, आंसू गैस छुड़वाई, कड़ाके की सर्दी में उनपर पानी की बौछारे करवाईं और उन्हें झूठे मामलों में फंसाया.’
उन्होंने कहा, ‘सरकार ने भले ही अविश्वास प्रस्ताव को हरा दिया हो लेकिन वह लोगों की नजरों में गिर गई है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)