भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के सिकंदरपुर में हुई किसान-मज़दूर महापंचायत को संबोधित करते हुए कहा कि 2021 आंदोलन का वर्ष होगा. किसान पूरी ताक़त से लंबी लड़ाई लड़ने को तैयार है.
‘भारत की सरकार ने किसान को छेड़ने की जुर्रत की है, किसान को ललकारा है. किसान इसका जवाब देगा. किसान पूरी ताकत से लंबी लड़ाई लड़ने को तैयार है. वर्ष 2021 आंदोलन का वर्ष होगा. हम गरीब की रोटी को तिजोरी में बंद नहीं होने देंगे. भूख का कारोबार और अन्न का व्यापार नहीं होने देंगे. किसानों-मजदूरों को लूटने वालों को सत्ता से हटाना होगा.’
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत बलिया जिले के सिकंदरपुर के चेतन किशोर मैदान में किसान-मजदूर महापंचायत को संबोधित कर रहे थे.
महापंचायत का आयोजन भाकपा माले से संबद्ध अखिल भारतीय किसान सभा और राष्ट्रीय किसान महासभा ने किया था, जहां भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ता भी शामिल थे. पूरा मैदान लाल, हरे-सफेद झंडों से पटा था.
अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन की अगुवाई में बड़ी संख्या में महिलाएं भी किसान महापंचायत में आई थीं. पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह तीसरी किसान पंचायत थी.
इससे पहले बाराबंकी और बस्ती जिले के मुंडेरवा में भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) ने फरवरी के आखिरी सप्ताह में किसान महापंचायत का आयोजन किया था जिसमें भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत शामिल हुए थे.
किसान आंदोलन में बड़े किसान नेता के रूप में उभरे राकेश टिकैत पहली बार पूर्वी उत्तर प्रदेश के दौरे पर आए थे, जिन्हें सुनने के लिए भारी भीड़ जुटी.
उन्होंने कहा कि सरकार किसानों को जाति-पांति और क्षेत्रवाद में बांटने की कोशिश कर रही है लेकिन किसान इस षड्यंत्र को नाकाम कर देंगे. किसान की एक ही पहचान है. वह किसी क्षेत्र और झंडे में नहीं बंटा है. हर दूसरे दिन सरकार किसान आंदोलन पर छींटाकशी करती है. किसान आंदोलन को खालिस्तान और चीन से भी जोड़ दिया गया.
भाकियू नेता ने कहा, ‘किसानों को हर जगह लूटा जा रहा है. बिहार के मक्का किसानों को सिर्फ 800 रुपये क्विंटल दाम मिला. बिहार और यूपी के किसानों को 700 से 800 रुपये क्विंटल में धान बेचना पड़ा. मसूर का भाव 1,600 रुपये क्विंटल से ज्यादा नहीं मिला. डेढ़ महीने पहले सरसो का भाव छह हजार रुपये क्विंटल था जो अब घटकर साढ़े चार हजार हो गया है. इसका दाम और गिर रहा है. आलू, गेहूं, चना का भी यही हाल है. उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का 15 हजार करोड़ रुपये बकाया है. किसान की फसल आती है तो भाव मंदा हो जाता है और बाद में उसका दाम बढ़ जाता है. हमें इस सिस्टम को तोड़ना पड़ेगा.’
राकेश टिकैत ने आगे यह भी कहा कि जिस तरह से आदिवासी जल, जंगल, जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, उसी तरह आज किसान अपनी जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रहा है. तीन कृषि कानून किसान से जमीन छीनने का कानून है. सरकार से 12 दौर की बातचीत हुई लेकिन सरकार ने हमारी बात नहीं मानी.
टिकैत ने कहा, ‘सरकार को लगता है किसान फसलों की कटाई करने गांव लौट जाएगा और आंदोलन खत्म हो जाएगा लेकिन किसान अब गांव नहीं जाने वाला है. हमारे आंदोलन के रास्ते में फसल नहीं आएगी. किसान खेत में भी रहेगा और आंदोलन में भी रहेगा. आज किसान आंदोलन की चर्चा पूरे देश में हो रही है. फ्रांस और स्पेन में किसानों के पक्ष में कानून बना है. अपने देश में भी यह होकर रहेगा. हमें आंदोलन तेज करना है. किसान अपना ट्रैक्टर तैयार रखे. हर गांव से एक ट्रैक्टर और 15 लोग दस दिन की व्यवस्था बना लें. जब संयुक्त किसान मोर्चा का आह्वान होगा, दिल्ली चल देना. यदि हमें अपनी जमीन बचानी है, रोजी-रोजगार बचाना है तो लुटेरी सत्ता को हटाना होगा.’
उन्होंने कहा कि हमें पूरी ताकत के साथ संगठित होकर लड़ाई लड़नी है क्योंकि हमारी लड़ाई बड़ी कंपनियों के खिलाफ है जिनकी पहुंच पीएमओ और संसद में है. उन पूंजीपतियों से जिनके गोदाम कानून बनने से पहले बन जाते हैं.
टिकैत ने कहा कि हम पश्चिम बंगाल भी जाएंगे. हम वहां वोट मांगने नहीं जा रहे हैं. हम किसानों से बातचीत करने जा रहे हैं. वहां भी एमएसपी की लड़ाई है.
इसी महापंचायत को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरूषोत्तम शर्मा ने कहा, ‘तीन कृषि कानून देश में नई गुलामी और कंपनी राज लाने का कानून है. यह कानून खेती, जमीन, अन्ना भंडारण, खाद्य सुरक्षा को बड़े पूंजीपतियों के हवाले करने का कानून है. उन्होंने किसान आंदोलन को पूरी दुनिया को रास्ता दिखाने वाला आंदोलन बताया.’
भारतीय किसान यूनियन के महासचिव चौधरी यु़द्धवीर सिंह ने विस्तार से तीनों कृषि कानूनों के बारे में बताते हुए कहा, ‘ये कानून किसान की जमीन और फसल पर कब्जा करने का कानून है. इस कानून से उत्पादक भी मरेगा और उपभोक्ता भी मरेगा. उन्होंने सवाल किया कि कानून बनने के पहले कैसे अडानी को 60 लाख मीट्रिक टन भंडारण वाले गोदामों को बनाने की अनुमति मिली और उससे कैसे एमओयू किया गया.’
सिंह ने सरकार पर झूठ बोलने, गुमराह करने और किसान आंदोलन को बदनाम करने का षड्यंत्र रचने का आरोप लगाते हुए कहा कि दिल्ली की सल्तनत ने किसानों को ललकारा है जो उन्हें भारी पड़ेगा. हम इस बार आर-पार की लड़ाई लड़ेंगे चाहे यह आंदोलन एक वर्ष, दो वर्ष या चार वर्ष तक क्यों न चलाना पड़े.
राष्ट्रीय किसान सभा के रामाशीष राय ने कहा कि असली सत्ता पूंजीपतियों के पास है, मोदी सरकार तो केवल मुखौटा है.
महापंचायत का संचालन कर रहे अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मजदूर महासभा के अध्यक्ष श्रीराम चौधरी ने कहा कि किसान आंदोलन से मजदूर और नौजवान जुड़ते जा रहे हैं जिसका सूबत आज की यह महापंचायत है.
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)