विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीते साल 11 मार्च को कोरोना वायरस को महामारी घोषित किया था. इससे पहले संगठन ‘महामारी’ शब्द के इस्तेमाल से बचता रहा था. विशेषज्ञों के मुताबिक, जब तब संगठन ने इसे महामारी घोषित किया तब तक बहुत देर हो चुकी थी और वायरस अंटार्कटिका को छोड़ दुनिया के सभी महाद्वीपों में पहुंच चुका था.
जिनेवा: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने आज से ठीक एक साल पहले (11 मार्च) कोरोना वायरस को महामारी घोषित किया था. इससे पहले संगठन हफ्तों तक ‘महामारी’ शब्द के इस्तेमाल से बचता रहा और कहता रहा था कि बेहद संक्रामक वायरस को फैलने से रोका जा सकता है.
मगर साल भर बीतने के बाद भी संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए संघर्ष कर रही है और देशों को अपनी राष्ट्रवादी प्रवृत्ति छोड़ने और उन देशों को टीके की आपूर्ति करने के लिए समझा रही है, जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है.
कोविड-19 को लेकर डब्ल्यूएचओ ने सबसे पहले चेतावनी 30 जनवरी, 2020 को दी थी और कोरोना वायरस को अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य आपात स्थिति बताया था.
हालांकि बहुत से देशों ने इस चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया था.
इसके छह हफ्ते बाद 11 मार्च को डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कोविड-19 को ‘महामारी’ घोषित किया. विशेषज्ञों के मुताबिक, तब तक बहुत देर हो चुकी थी और वायरस अंटार्कटिका को छोड़ दुनिया के सभी महाद्वीपों में पहुंच चुका था.
संगठन ने इस दौरान कई गलत कदम भी उठाए और महीनों तक लोगों को मास्क लगाने के खिलाफ सलाह दी तथा यह भी कहा कि कोविड-19 हवा से नहीं फैलता है.
इस महामारी का उत्पत्ति स्थल चीन का वुहान शहर था. उस वक्त चीन द्वारा समय पर इसकी जानकारी न देने का आरोप लगा था. चीन पर अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक के बाद एक कई सनसनीखेज आरोप लगाए थे.
चीन पर पूरी दुनिया में वायरस फैलाने का भी आरोप लगा था. अप्रैल 2020 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन को आगाह किया था कि अगर यह पाया गया कि वह कोरोना वायरस वैश्विक महामारी को फैलाने का ‘जिम्मेदार’ है और उसे इसके बारे में जानकारी थी तो उसे इसके नतीजे भुगतने होंगे.
इसी दौरान डब्ल्यूएचओ ने वायरस की रोकथाम को लेकर चीन की प्रशंसा करते हुए कहा था कि दुनिया के देशों को वुहान से सीखना चाहिए कि किस तरह से वायरस का केंद्र बिंदु होने के बावजूद वहां पर सामान्य स्थिति बहाल की गई.
इसके बाद डोनाल्ड ट्रंप में डब्ल्यूएचओ पर भी आरोप लगाए थे. ट्रंप ने डब्ल्यूएचओ को चीन की जनसंपर्क (पीआर) एजेंसी करार दिया था. इसके अलावा उन्होंने डब्ल्यूएचओ को दी जाने वाली सालाना करीब 50 करोड़ डॉलर की अमेरिकी राशि पर रोक लगा दी थी.
इतना ही नहीं डब्ल्यूएचओ सार्वजनिक रूप से कोरोना वायरस से संबंधित जानकारी तुरंत उपलब्ध कराने के लिए चीन की लगातार सराहना करता रहा है.
हालांकि जून 2020 में समाचार एजेंसी एपी को प्राप्त आंतरिक दस्तावेज, ई-मेल और दर्जनों बातचीत संबंधी रिकार्ड में इस बात का खुलासा हुआ है कि डब्ल्यूएचओ की बैठकों में चीन की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के भीतर सूचना और प्रतिस्पर्धा पर सख्त नियंत्रण को काफी हद तक दोष दिया गया था.
विभिन्न आंतरिक बैठकों की रिकार्डिंग के अनुसार चीन की कई सरकारी प्रयोगशालाओं में इसे पूरी तरह से डिकोड किए जाने के बावजूद चीनी अधिकारियों ने एक हफ्ते से अधिक समय तक घातक वायरस के आनुवंशिक नक्शे या जीनोम को जारी करने में देरी की थी और परीक्षण, दवाओं तथा टीकों के लिए विवरण साझा नहीं किया था.
अमेरिका की जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के मुताबिक, कोरोना वायरस के दुनियाभर में 11.85 करोड़ से ज़्यादा मामले हो चुके हैं और 26.29 लाख से अधिक लोगों की जान जा चुकी है. अमेरिका सबसे अधिक प्रभावित देश है. जहां संक्रमण के 2.9 करोड़ मामले हैं और 5.30 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)