वेंकैया नायडू ने राज्यसभा सदस्यों से कहा: ऐसा कुछ मत कहिए जिससे भारत की छवि ख़राब हो

राज्यसभा के नए सदस्यों के लिए ओरिएंटेशन कार्यक्रम के उद्घाटन के मौके पर सभापति वेंकैया नायडू ने इस बात पर जोर दिया कि चर्चा, तर्क-वितर्क और निर्णय लेना लोकतंत्र के मंत्र हैं तथा सदस्यों को सदन में व्यवधान का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए.

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वेंकैया नायडू. (फोटो: पीटीआई)

राज्यसभा के नए सदस्यों के लिए ओरिएंटेशन कार्यक्रम के उद्घाटन के मौके पर सभापति वेंकैया नायडू ने इस बात पर जोर दिया कि चर्चा, तर्क-वितर्क और निर्णय लेना लोकतंत्र के मंत्र हैं तथा सदस्यों को सदन में व्यवधान का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए.

वेंकैया नायडू. (फोटो: पीटीआई)
वेंकैया नायडू. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने शनिवार को सदन के सदस्यों से कहा कि वे ऐसा कुछ मत करें या कहें जिससे भारत की छवि को नुकसान पहुंचता हो और जिसका इस्तेमाल देश के दुश्मन कर सकते हों.

ऊपरी सदन के नए सदस्यों के लिए ओरिएंटेशन कार्यक्रम के उद्घाटन के मौके पर उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चर्चा, तर्क-वितर्क और निर्णय लेना लोकतंत्र के मंत्र हैं तथा सदस्यों को सदन में व्यवधान का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए.

नायडू ने कहा कि स्वतंत्र लेखन और अभिव्यक्ति की लोकतंत्र में अनुमति है, लेकिन ये समाज में कड़वाहट का कारण नहीं बनना चाहिए.

उन्होंने राज्यसभा सदस्यों का आह्वान किया कि वे नियमों का हवाला देकर सदन में व्यवधान पैदा न करें.

सभापति ने इस बात का उल्लेख किया कि विपक्षी सदस्य अक्सर नियम 267 का हवाला देते हैं, लेकिन इसका इस्तेमाल आपात परिस्थिति में ‘ब्रह्मास्त्र’ के तौर पर होना चाहिए.

नायडू ने कहा, ‘सदन में अक्सर व्यवधान पैदा हो जाता है और यह कुछ नियमों का हवाला देते हुए होता है. अगर आप बार-बार नियम 267 की मांग करेंगे तो सदन नहीं चला सकते.’

उल्लेखनीय है कि नियम 267 के तहत संबंधित दिन के संसदीय कामकाज को रद्द कर उस मुद्दे पर चर्चा की जाती है जिसकी मांग इस नियम के तहत की गई हो. विपक्षी सदस्य सदन में अक्सर इस नियम का हवाला देते हैं.

मौजूदा बजट सत्र में भी कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों ने इसी नियम के तहत महंगाई और किसानों के मुद्दों पर चर्चा की मांग की.

नायडू ने सदस्यों से कहा कि वे एकजुट और समावेशी भारत के लिए बात करें और काम करें.

उन्होंने कहा, ‘हमारे राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं. हम एक दूसरे का विरोध करते हैं, परंतु जब देश की बात आती है तो उस समय हमें ऐसा कुछ नहीं करना या कहना चाहिए जिससे देश की छवि को नुकसान पहुंचे तथा देश के शत्रु उसका इस्तेमाल करें और कहें कि ऐसा भारत की संसद में कहा गया है.’

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘हमें उन्हें इस तरह की गुंजाइश नहीं देनी चाहिए, क्योंकि राष्ट्र की एकता, अखंडता और सुरक्षा सभी के लिए महत्वपूर्ण है.

नायडू ने कहा कि पारित कानूनों के हर चरण में किसी विधेयक का विरोध या समर्थन करने के अवसर मिलते हैं.

उन्होंने कहा, ‘आपके पास एक कानून को अवरुद्ध करने की शक्ति है बशर्ते आपके पास संख्याएं हों. कोई शारीरिक रूप से बाधा नहीं डाल सकता. उस समय यही लोकतंत्र की उपेक्षा है.’

उन्होंने कहा, ‘सभी पक्षों द्वारा बहुत अधिक ताकत का उपयोग किया गया है. मुझे नहीं लगता कि यह केवल कुछ लोगों द्वारा उपयोग किया गया था और विपक्षी दलों को पता है कि बहुमत लोगों द्वारा दिया जाता है और बहुमत सदन के तल पर तय किया जाता है.’

यह कहते हुए कि लोकतंत्र के लिए मंत्र चर्चा, बहस और निर्णय है. उन्होंने कहा कि सरकार को प्रस्ताव देने दें, विपक्ष विरोध करता है और सदन उसे खारिज करता है क्योंकि कोई दूसरा रास्ता नहीं है.

बता दें कि पिछले साल सितंबर में विपक्षी सदस्यों ने उच्च सदन में शोरगुल के बीच सरकार पर महत्वपूर्ण कानूनों को जबरदस्ती पास करने का आरोप लगाया था.

नायडू ने कहा, ‘लोग कहते हैं कि किसी भी बिल को शोरगुल में पास न करें. सेवानिवृत्ति के बाद कुछ अध्यक्षों ने इसके बारे में लिखा है.’

उन्होंने कहा, ‘आप हंगामा खड़ा करके नहीं कह सकते हैं कि (बिल) पास मत करो. आपका विधायी जनादेश किसी विधेयक का समर्थन या विरोध करना है. आप विरोध कर सकते हैं और सदन को निर्णय लेना होगा क्योंकि सदन सर्वोच्च है.’

राज्यसभा के सभापति ने कहा कि विशेषाधिकारों के बारे में गलत धारणा है जो एक दूसरे की आलोचना करने के लिए इस्तेमाल नहीं की जा सकती.

नायडू ने कहा, ‘यदि कोई आपको अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने से रोकता है, तो यह विशेषाधिकार की ओर जाता है. यदि आप एक दूसरे की आलोचना करते हैं और कहते हैं कि विशेषाधिकार प्रभावित होता है, तो ऐसा नहीं है.’

उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में अभिव्यक्ति और भाषण की स्वतंत्रता की अनुमति है लेकिन उन्हें समाज में असंतोष पैदा नहीं करना चाहिए.

उन्होंने कहा कि हर किसी के पास अधिकार और जिम्मेदारियां हैं और पीठासीन अधिकारी नियमों का संरक्षक है जबकि अध्यक्ष का निर्णय अंतिम है.

विदेश मंत्री एस. जयशंकर सहित राज्यसभा के कई नवनिर्वाचित सदस्य इस कार्यक्रम में शामिल हुए. इस अवसर पर उपसभापति हरिवंश भी उपस्थित थे.

 (समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)