बीते एक फरवरी को म्यांमार की सेना ने चुनावों में धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए देश का नियंत्रण अपने हाथ में लेते हुए आंग सान सू ची और अन्य नेताओं को नज़रबंद कर दिया है. 14 मार्च सबसे हिंसक दिनों में से एक रहा. इस दिन प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई में कम से कम 38 लोगों की मौत हुई.
यंगून: म्यांमार में सत्तारूढ़ जुंटा (सैन्य शासन) ने देश के सबसे बड़े शहर यंगून के कई हिस्सों में मार्शल कानून लागू करने की घोषणा की है.
असैन्य सरकार का तख्तापलट करने के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों को काबू करने के लिए की जा रही सख्त कार्रवाई में मारे गए लोगों की बढ़ती संख्या के बीच सैन्य शासन ने यह कदम उठाया है.
हिंसा में मारे गए लोगों की संख्या पर नजर रखने वाले स्वतंत्र समूह ‘एसिस्टेंस एसोसिएशन फॉर पॉलिटिकल प्रीजनर्स’ के मुताबिक, रविवार सबसे हिंसक दिनों में से एक रहा, क्योंकि प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई के दौरान कम से कम 38 लोगों की मौत हुई, जबकि कई अन्य लोग घायल हुए हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने सोमवार को कहा था कि म्यांमार में एक फरवरी को सैन्य तख्तापलट होने के बाद से कम से कम 138 प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है.
संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने कहा कि इनमें रविवार को मारे गए 38 प्रदर्शनकारी भी शामिल हैं. इनमें से अधिकतर लोगों की मौत यंगून के हलियांग थाया इलाके में हुई है.
हलियांग थाया टाउनशिप का एक कथित वीडियो सामने आया है, जिसमें लोग भाग रहे हैं और गोली चलने की आवाजें आ रही हैं.
इंडिपेंडेंट डेमोक्रेटिक वॉयस ऑफ बर्मा द्वारा जारी फुटेज में दिख रहा है कि जो लोग भाग रहे हैं वे एक घायल व्यक्ति को ले जा रहे हैं, जबकि दो अन्य को होश में लाने की कोशिश कर रहे हैं, जिनमें से एक मरणासन्न या मृत लग रहा है.
सहायता समूह के मुताबिक, हलियांग थाया वह इलाका है, जहां रविवार को 22 नागरिकों की मौत हुई, जबकि दर्जनों लोग घायल हुए और बड़ी संख्या में जुंटा बल इलाके में तैनात हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, इस इलाके में बड़े पैमाने पर चीनी वित्तपोषित फैक्टरियां हैं, जिन्हें जला दिया गया था और उसी के बाद प्रदर्शनकारियों पर यह कार्रवाई की गई.
चीनी दूतावास ने कहा कि हलियांग थाया में कपड़ा कारखानों पर अज्ञात हमलावरों द्वारा कई चीनी कर्मचारियों को घायल किया गया और आगजनी के हमलों में कई लोग फंसे हुए थे और इसने चीनी संपत्ति और नागरिकों की रक्षा के लिए म्यांमार को फोन किया था.
दरअसल, चीन को सैन्य शासन का समर्थक माना जाता है, जिसने सत्ता संभाली है.
स्थानीय मीडिया ने कहा कि औद्योगिक इलाके से धुएं की गुबार को देखते हुए देशभर के प्रवासियों वाले उपनगरीय इलाके के प्रदर्शकारियों पर सुरक्षाबलों ने गोलियां चलानी शुरू कर दीं.
एक फोटो पत्रकार ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया, वह भयानक था. मेरी आंखों के सामने लोगों को गोली मार दी गई. यह मेरी यादों से कभी नहीं मिटेगा.
म्यांमार में तख्ता पलट के बाद गत छह हफ्ते से आपातकाल लागू है, लेकिन बीते 14 मार्च की देर शाम सरकारी प्रसारक एमआरटीवी ने पहली बार मार्शल कानून का जिक्र किया, जिससे प्रतीत होता है कि सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय पुलिस के बजाय सेना ने सीधे अपने हाथ में ले ली है.
घोषणा में कहा गया कि सुरक्षा और कानून व्यवस्था को बहाल करने के लिए यंगून शहर के क्षेत्रीय कमांडर को उसके नियंत्रण वाले क्षेत्र में प्रशासनिक, न्यायिक और सैन्य अधिकार दिए गए हैं.
इससे पहले बीते तीन मार्च को प्रदर्शन के दौरान सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 38 लोग मारे गए थे.
स्विट्जरलैंड में संयुक्त राष्ट्र की एक अधिकारी ने बताया था कि तीन मार्च को हुए प्रदर्शन के दौरान 38 लोग मारे गए. यह आंकड़ा इस संबंध में मिलीं अन्य रिपोर्टों से मेल खाता है, लेकिन देश के भीतर इन आंकड़ों की पुष्टि करना मुश्किल है.
हिंसा पर लगा विराम लेकिन तनाव बरकरार
म्यांमार में पिछले महीने हुए सैन्य तख्तापलट के खिलाफ मंगलवार को दिन निकलने से पहले विभिन्न हिस्सों में लोगों ने छोटे-छोटे समूहों में शांतिपूर्ण मार्च निकाले. इस दौरान प्रदर्शनकारी सुरक्षा बलों से टकराने से बचते नजर आए, जिनकी कार्रवाई में बीते कुछ दिन में देश में कई लोगों की मौत हुई है.
म्यांमार के सबसे बड़े शहर यंगून में हालात अब भी तनावपूर्ण हैं. इस शहर में सबसे अधिक लोगों की मौत हुई है. खबरें मिली हैं कि पुलिस ने दोबारा शहर में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई है. हालांकि इनकी पुष्टि नहीं की गई है.
म्यांमार में जुंटा की बढ़ती हिंसा से दुखी हैं संयुक्त राष्ट्र महासचिव
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने म्यांमार में बढ़ती हिंसा पर दुख जताया है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से वहां सैन्य दमन समाप्त करने में मदद करने के लिए सामूहिक एवं द्विपक्षीय रूप से काम करने की अपील की है.
गुतारेस ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि म्यांमार की सेना के हाथों की जा रही प्रदर्शनकारियों की हत्याएं और मनमाने ढंग से गिरफ्तारियां संयम, वार्ता और देश को लोकतांत्रिक पथ पर वापस लाने की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अपील की अवहेलना है.
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख के प्रवक्ता की तरफ से सोमवार को जारी किए गए एक बयान के अनुसार, गुतारेस ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से म्यांमार में सैन्य दमन समाप्त करने में मदद करने के लिए सामूहिक एवं द्विपक्षीय रूप से काम करने की अपील की.
बयान के अनुसार, ‘उन्होंने सेना से अपने विशेष दूत को वहां जाने की अनुमति देने की अपील की, जो स्थिति नियंत्रित करने, वार्ता के लिए मंच तैयार करने तथा लोकतंत्र बहाल करने के लिए बेहद आवश्यक है.’
बयान में कहा गया कि गुतारेस म्यांमार में बढ़ती सैन्य हिंसा से काफी दुखी हैं.
बयान के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘प्रदर्शनकारियों की हत्या, मनमाने ढंग से की जा रहीं गिरफ्तारियां और कैदियों पर कथित अत्याचार की खबरें, मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन है.’
गुतारेस ने कहा कि वह म्यांमार के लोगों और लोकतंत्र हासिल करने की उनकी आकांक्षाओं का साथ देते रहेंगे.
म्यांमार के संबंध में ‘संतुलित निष्कर्ष’ निकालने के लिए काम कर रहा भारत: श्रृंगला
विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने सोमवार को कहा कि म्यांमार में हालात ‘जटिल’ हैं तथा भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सकारात्मक तरीके से काम कर रहा है, ताकि ऐसे संतुलित निष्कर्ष निकाले जा सकें जो परिस्थितियों को सुलझाने में मददगार हों.
उन्होंने कहा, ‘म्यांमार में सभी संबंधित व्यक्तियों से हमारे अच्छे संपर्क हैं तथा हम हालात को बेहतर बनाने के लिए सभी के साथ बात कर रहे हैं.’
गौरतलब है कि म्यांमार में सेना ने बीते एक फरवरी को तख्तापलट कर देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी. म्यांमार की सेना ने एक साल के लिए देश का नियंत्रण अपने हाथ में लेते हुए कहा था कि उसने देश में नवंबर में हुए चुनावों में धोखाधड़ी की वजह से सत्ता कमांडर इन चीफ मिन आंग ह्लाइंग को सौंप दी है.
सेना का कहना है कि सू ची की निर्वाचित असैन्य सरकार को हटाने का एक कारण यह है कि वह व्यापक चुनावी अनियमितताओं के आरोपों की ठीक से जांच करने में विफल रहीं.
पिछले साल नवंबर में हुए चुनावों में सू ची की पार्टी ने संसद के निचले और ऊपरी सदन की कुल 476 सीटों में से 396 पर जीत दर्ज की थी, जो बहुमत के आंकड़े 322 से कहीं अधिक था, लेकिन 2008 में सेना द्वारा तैयार किए गए संविधान के तहत कुल सीटों में 25 प्रतिशत सीटें सेना को दी गई थीं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)