प्रतिष्ठित राजनीतिक विश्लेषक प्रताप भानु मेहता द्वारा सोनीपत की अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पद छोड़ने के दो दिन बाद पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर पद से इस्तीफ़ा देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय अब अकादमिक स्वतंत्रता नहीं दे सकता.
नई दिल्ली: पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने अशोका यूनिवर्सिटी से इस्तीफ़ा देते हुए कहा है कि दो दिन पहले दिया गया प्रताप भानु मेहता का इस्तीफ़ा दिखाता है कि ‘निजी ओहदे और निजी वित्त’ भी विश्वविद्यालय में अकादमिक अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता सुनिश्चित नहीं कर सकते.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, पिछले साल जुलाई में सुब्रमण्यम ने यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र विभाग में बतौर प्रोफेसर पढ़ाना शुरू किया था. वे यूनिवर्सिटी के अशोका सेंटर फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी के संस्थापक भी हैं, जो विश्वविद्यालय के अनुसार जो भारत और वैश्विक विकास संबंधी नीतिगत मुद्दों पर शोध और विश्लेषण के लिए बनाया गया था.
अख़बार के अनुसार, सुब्रमण्यम का इस्तीफ़ा इस अकादमिक वर्ष के अंत से प्रभावी होगा.
उल्लेखनीय है कि इससे पहले प्रतिष्ठित राजनीतिक विश्लेषक और टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता ने मंगलवार को प्रोफेसर पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. इससे दो साल पहले उन्होंने यूनिवर्सिटी के कुलपति के पद से त्यागपत्र दे दिया था.
बीते कुछ सालों में मेहता केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा की राजनीति के मुखर आलोचक रहे हैं. द वायर को गत वर्ष दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने भाजपा और इसकी सरकार को ‘फासीवादी’ बताया था.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जब विश्वविद्यालय से यह पूछा गया कि क्या मेहता के इस्तीफे के फैसले के पीछे उनकी राजनीतिक राय और लेखन हैं, तब विश्वविद्यालय के प्रवक्ता ने यह सवाल टाल दिया.
यूनिवर्सिटी की ओर से बस इतना कहा गया कि ‘कुलपति और फैकल्टी मेंबर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय में बहुत योगदान दिया है. विश्वविद्यालय उन्हें भविष्य के लिए शुभकामननाएं देता है.’
जहां मेहता ने अपने इस्तीफे के बारे में कुछ कहने से इनकार किया, वहीं इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने आधिकारिक दबाव का संकेत देते हुए यूनिवर्सिटी के ट्रस्टीज़ को ‘रीढ़विहीन’ और ‘झुकने की कहने पर रेंगने’ वालों की संज्ञा दी है.
मेहता में साल 2017 में यूनिवर्सिटी के कुलपति का कार्यभार संभाला था. इससे पहले सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अध्यक्ष और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल में प्रोफेसर जैसे कई प्रतिष्ठित पदों पर रह चुके थे.
जुलाई 2019 में उन्होंने कुलपति का पद छोड़ते हुए कहा था कि वे वहां प्रोफेसर के बतौर काम करते रहेंगे. छात्रों को लिखे एक पत्र में मेहता ने कहा था कि वे फुलटाइम अकादमिक जीवन में लौटना चाहते हैं.
यूनिवर्सिटी के सूत्रों ने द वायर को बताया कि तब मसला यह था कि यूनिवर्सिटी के ट्रस्टीज़ मेहता के अख़बारों में लेखन को लेकर खुश नहीं थे और मेहता को लिखना छोड़ने से बेहतर कुलपति का पद छोड़ना लगा.
जहां मेहता ने अपने इस्तीफे के कारणों के बारे में कुछ कहने से इनकार कर दिया था, सुब्रमण्यम द्वारा वर्तमान कुलपति मालबिका सरकार को लिखे पत्र में ऐसा नजर आता है कि उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया है.
सुब्रमण्यम ने लिखा है, ‘मैं उस विस्तृत संदर्भ से वाकिफ हूं,जिसमें अशोका और इसके ट्रस्टियों को काम करना है और अब तक यूनिवर्सिटी ने इसे जैसे संभाला, मैं उसकी प्रशंसा करता हूं.’
हालांकि उन्होंने आगे कहा कि ‘मेहता जैसे निष्ठावान और प्रखर व्यक्ति, जो अशोका के विज़न को पूरा करते थे, को इस तरह इसे छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.’
जहां मेहता के इस्तीफे को केंद्र की भाजपा सरकार की आलोचना से जोड़ा जा रहा है, वहीं इससे पहले सुब्रमण्यम के देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार का पद छोड़ने को भी पार्टी और संघ परिवार से असहज संबंधों से जोड़ा गया था.
सुब्रमण्यम को 16 अक्टूबर, 2014 को वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया गया था. उनकी नियुक्ति तीन साल के लिए हुई थी. 2017 में उनका कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ाया गया था.
जून 2018 में तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये जानकारी दी थी कि अरविंद अपनी ‘पारिवारिक प्रतिबद्धताओं’ की वजह से अमेरिका लौट रहे हैं.
कुलपति मालबिका सरकार को लिखे गए अरविंद सुब्रमण्यम के पत्र को इस लिंक पर पढ़ सकते हैं.