इशरत जहां एनकाउंटर: तीन पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ मुक़दमे की मंज़ूरी से गुजरात सरकार का इनकार

2004 के इशरत जहां फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में सीबीआई ने विशेष अदालत के निर्देश के बाद गुजरात सरकार से तीन आरोपी पुलिस अधिकारियों पर मुक़दमा चलाने की अनुमति मांगी थी, जिससे राज्य सरकार ने मना कर दिया.

इशरत जहां. (फाइल फोटो: पीटीआई)

2004 के इशरत जहां फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में सीबीआई ने विशेष अदालत के निर्देश के बाद गुजरात सरकार से तीन आरोपी पुलिस अधिकारियों पर मुक़दमा चलाने की अनुमति मांगी थी, जिससे राज्य सरकार ने मना कर दिया.

इशरत जहां. (फाइल फोटो: पीटीआई)
इशरत जहां. (फाइल फोटो: पीटीआई)

अहमदाबाद: गुजरात सरकार ने 2004 के इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले में आईपीएस अधिकारी जीएल सिंघल सहित तीन आरोपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार कर दिया है. सीबीआई ने शनिवार को यहां एक अदालत को यह जानकारी दी.

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने राज्य सरकार से विशेष न्यायाधीश वीर रावल के निर्देश पर सिंघल, तरुण बारोट और अनानु चौधरी के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी थी.

विशेष अभियोजक आरसी कोडेकर ने कहा, ‘गुजरात सरकार ने तीनों अभियुक्तों पर मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी से इनकार कर दिया है. हमने आज अदालत को पत्र सौंपा.’

आईजी सिंघल और रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों- बरोट, जेजी परमार और चौधरी ने अदालत में याचिका दायर कर उनके खिलाफ मुकदमा चलाने संबंधित कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी. परमार का बीते साल निधन हो गया था.

अक्टूबर 2020 में सीबीआई अदालत ने इन याचिकाओं को ख़ारिज कर दिया था और एजेंसी से कहा था कि जब यह स्थापित हो गया कि आरोपियों ने आधिकारक दायित्व निभाते समय कथित फर्जी मुठभेड़ को अंजाम दिया तो सीबीआई को उन पर मुकदमा चलाने के लिए आवश्यक अनुमति लेनी चाहिए थी. सीबीआई को स्वीकृति लेने या इस संबंध में घोषणा करने का निर्देश दिया जाना चाहिए.

आरोपियों ने खुद को आरोपमुक्त करने का आग्रह करते हुए कहा था कि जांच एजेंसी ने सरकार से मुकदमे के लिए आवश्यक स्वीकृति नहीं ली है और इसी तरह के आधार पर पिछले साल अन्य आरोपियों को तब आरोपमुक्त कर दिया गया था, जब राज्य सरकार ने सीबीआई को उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था.

बता दें कि इससे पहले 2019 में विशेष सीबीआई अदालत ने पूर्व पुलिस अधिकारियों- डीजी वंजारा और एनके अमीन के खिलाफ कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में कार्यवाही निरस्त कर दी थी, क्योंकि गुजरात सरकार ने उन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं दी थी.

मालूम हो कि भारतीय दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 के अनुसार, आधिकारिक ड्यूटी पर तैनात रहने के दौरान किसी सरकारी कर्मचारी पर अगर उसके कार्यों के लिए मुकदमा चलाना है तो सरकार की मंजूरी लेना आवश्यक होता है.

तब अदालत में इशरत की मां शमीमा कौसर ने कहा था कि याचिकाएं कानून और तथ्य के आधार पर आधारहीन हैं और राज्य सरकार दोनों अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी से इनकार करने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी नहीं थी.

इससे पहले फरवरी 2018 में विशेष सीबीआई अदालत ने इशरत जहां और तीन अन्य के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में गुजरात के पूर्व प्रभारी पुलिस महानिदेशक पीपी पांडे को आरोप मुक्त कर चुकी है.

विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश जेके पांड्या ने पांडे को आरोप मुक्त करने की अर्जी इस आधार पर स्वीकार कर ली थी कि इशरत जहां एवं तीन अन्य के अपहरण एवं उनकी हत्या के संबंध में उनके विरुद्ध कोई सबूत नहीं है.

सीबीआई ने इस मामले की जांच की थी और उसने अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के तत्कालीन प्रमुख पांडे पर कथित फर्जी मुठभेड़ में शामिल होने का आरोप लगाया था.

2013 में अपनी पहली चार्जशीट में एजेंसी ने सात पुलिस अफसरों- पांडेय, वंजारा, अमीन, सिंघल, बरोट, परमार और चौधरी को बतौर आरोपी नामजद किया था.

गौरतलब है कि अहमदाबाद के बाहरी इलाके में 15 जून, 2004 को गुजरात पुलिस के साथ कथित फर्जी मुठभेड़ में इशरत जहां, जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लई, अमजद अली अकबर अली राणा और जीशान जौहर मारे गए थे. इशरत जहां मुंबई के समीप मुंब्रा की 19 वर्षीय कॉलेज छात्रा थीं.

पुलिस ने दावा किया था कि ये चारों लोग गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने की आतंकी साजिश रच रहे थे.

हालांकि, उच्च न्यायालय द्वारा गठित विशेष जांच टीम ने मुठभेड़ को फर्जी करार दिया था. इसके बाद सीबीआई ने कई पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)