भाजपा के गठबंधन से निकलते ही राजनीतिक दल ‘अपवित्र’ क्यों हो जाते हैं

असम विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ के साथ हुए कांग्रेस के गठबंधन को भाजपा 'सांप्रदायिक' कह रही है, हालांकि पिछले ही साल राज्य के तीन ज़िला परिषद चुनावों में भाजपा के प्रत्याशी एआईयूडीएफ की मदद से ही अध्यक्ष पद पर काबिज़ हुए हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल. (फाइल फोटो: पीटीआई)

असम विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ के साथ हुए कांग्रेस के गठबंधन को भाजपा ‘सांप्रदायिक’ कह रही है, हालांकि पिछले ही साल राज्य के तीन ज़िला परिषद चुनावों में भाजपा के प्रत्याशी एआईयूडीएफ की मदद से ही अध्यक्ष पद पर काबिज़ हुए हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल. (फाइल फोटो: पीटीआई)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल. (फाइल फोटो: पीटीआई)

लोकसभा का चुनाव हो या फिर विधानसभा का, हर राजनीतिक पार्टी अपनी विचारधारा के हिसाब से दूसरी पार्टियों से समझौता करती है.
मुख्य उद्देश्य होता है कि किसी भी तरह से चुनाव जीता जाए.

आजकल की देश की राजनीति में एक नए प्रचलन की शुरुआत हुई है. इस नए प्रचलन के बारे में विस्तार से बात करेंगे लेकिन पहले यह जान लीजिए कि असम में अजमल बदरूद्दीन की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) का समझौता पहले भाजपा के साथ रहा है.

जम्मू कश्मीर में भाजपा ने महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी के साथ सरकार बनाई थी और 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले शिवसेना भी एनडीए का हिस्सा था.

इस बार असम के चुनाव में कांग्रेस ने आठ दलों के साथ गठबंधन करके ‘महाजोट’ बनाया है. इसमें असम की एआईयूडीएफ भी एक सदस्य है. अब भाजपा को कांग्रेस और एआईडीयूएफ के गठबंधन पर सख़्त ऐतराज़ है और वह साबित करने में जुटी हुई है कि कांग्रेस ने वोट के लिए एक ‘सांप्रदायिक’ पार्टी से गठबंधन कर लिया है हालांकि भाजपा के नेता बता नहीं रहे कि वह पार्टी सांप्रदायिक कैसे है.

असम में भाजपा की रणनीति है कि कांग्रेस को मुस्लिमपरस्त बताकर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण लिया जाए लेकिन इतिहास किसी के मिटाए मिटता नहीं है और यह बात तो पुरानी भी नहीं है कि भाजपा ने ख़ुद सत्ता हासिल करने के लिए एआईयूडीएफ से समझौता किया था.

पर तब अजमल की पार्टी सांप्रदायिक नहीं थी! ठीक उसी तरह से जिस तरह से पीडीपी पहले ‘पाकिस्तान-परस्त’ पार्टी थी फिर जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने के समय पर पवित्र हो गई थी और बाद में फिर से गुपकर ‘गैंग’ का हिस्सा हो गई.

महाराष्ट्र में भाजपा की 36 बरस पुराना गठबंधन छोड़कर शिवसेना जब कांग्रेस और एनसीपी के साथ आ गई तो भाजपा को गठबंधन ‘अपवित्र’ दिखने लगा.

सबसे पहले बात असम की करते हैं. साल 2020 मे ज़िला परिषद चुनाव हुआ था, जिसमें तीन जिला परिषद के अध्यक्ष पदों पर भाजपा बिना बहुमत के एआईयूडीएफ की मदद से क़ाबिज़ हुई.

पहला- दरंग जिला परिषद चुनाव में भाजपा को 6 कांग्रेस को 5 और एआईयूडीएफ को 2 सीटें मिली थी वहीं कांग्रेस छोड़कर आए निर्दलीय उम्मीदवार हुमायूं कबीर ने एक सीट जीती थी. किसी को भी बहुमत नहीं मिला लेकिन गुप्त मतदान में भाजपा के धीरेंद्र डेका पंचायत एआईयूडीएफ के सहयोग से अध्यक्ष घोषित कर दिए गए.

दूसरा ज़िला है नागांव -जिला परिषद चुनाव में भाजपा 3 सीटों से बहुमत के आंकड़े से पीछे थी. 29 सदस्यीय जिला परिषद में भाजपा को 12 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

कांग्रेस 11 सीटें जीती थी जबकि असम गण परिषद और एआईयूडीएफ को तीन – तीन सीटें हासिल हुई थीं, इस जिला परिषद में भी एआईयूडीएफ के सहयोग से अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों भाजपा के ही बने.

और तीसरा ज़िला है करीमगंज, जहां जिला परिषद चुनाव मे भाजपा को केवल 6 सीटें मिली थी जबकि कांग्रेस ने 10, एआईयूडीएफ ने 2 और निर्दलियों ने भी 2 सीट हासिल की थी. लेकिन यहां भी एआईयूडीएफ के सहयोग से भाजपा के आशीष नाथ अध्यक्ष चुन लिया गया.

इससे पहले 2014 के राज्यसभा चुनाव में भी भाजपा और एआईयूडीएफ ने गठबंधन किया था. 2014 में राज्यसभा के लिए तीन सीटों पर होने वाले चुनाव में कांग्रेस ने राज्यसभा सदस्य भुवनेश्वर कालिता, सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश से सांसद संजय सिंह और असम में अपने सहयोगी दल बीपीएफ के विश्वजीत दयमारी की उम्मीदवारी तय की थी.

तब भाजपा ने एआईयूडीएफ और असम गण परिषद ने निर्दलीय उम्मीदवार हैदर हुसैन को समर्थन देने का फैसला किया था.

इस गठजोड़ पर तब कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा था कि भाजपा ने अपनी विचारधारा को तिलांजलि देकर एआईयूडीएफ से गठबंधन किया है.

अब भाजपा में जाने के बाद वही हिमंता कांग्रेस-एआईयूडीएफ के गठबंधन पर सांप्रदायिक  होने का आरोप लगाते हैं.

भाजपा -पीडीपी गठबंधन सरकार और धारा 370

जनवरी 2015 में बनी इस गठबंधन को सफल बनाने में संघ के जाने-माने चेहरे और भाजपा महासचिव राम माधव की बड़ी भूमिका थी.

सरकार बनाने के लिए समझौता होने पर तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में एक लोकप्रिय सरकार का गठन होने जा रहा है, लेकिन घाटी में बिगड़ रहे हालातों का हवाला देकर तीन साल बाद ही सरकार गिरा दी गई.

सरकार गिरने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘वो हमारी ‘महामिलावट’ थी और हमें लोकतांत्रिक मजबूरी में सरकार देनी थी अगर नेशनल कॉन्फ्रेंस उस समय मुफ्ती साहब को सहयोग देकर खड़ी हो जाती, तो हम तो विपक्ष में रहने के लिए तैयार थे, हमने इंतजार किया था.

लेकिन सच यह है कि भाजपा हमेशा से ही पीडीपी को पाकिस्तान-परस्त पार्टी के रूप में देखती आई थी और उसके बारे में भाजपा के नेताओं का ख़याल था कि उसका पाकिस्तान के प्रति नरम रुख है.

भाजपा की दृष्टि में पीडीपी भारत के हितों के लिए ठीक पार्टी नहीं थी लेकिन इसके बावजूद सत्ता हासिल करने के लिए भाजपा ने पीडीपी से गठबंधन किया था.

गठबंधन तोड़ने के लिए तर्क दिया गया कि पीडीपी के नेतृत्व में चल रही सरकार आतंकवाद को काबू में नहीं कर पा रही है. इधर कश्मीर में सरकार गिरी और उधर केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाने की तैयारी कर ली.

जब कश्मीर के नेता इसके ख़िलाफ़ खड़े हो गए तो उसी भाजपा के लिए पीडीपी फिर से दुश्मन हो गई. सत्ता के लिए हुई दोस्ती एकाएक दुश्मनी में बदल गई. पहले जो सहयोगी थे वो अब अब गुपकार ‘गैंग’ हो गए.

श्रीनगर के गुपकर रोड पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुखिया फारूक अब्दुल्ला का घर है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने के एक दिन पहले 4 अगस्त 2019 को आठ स्थानीय दलों ने यहां बैठक की थी.

इसमें एक प्रस्ताव पारित किया गया था. उसे ही गुपकर डिक्लेरेशन कहा गया. गुपकर डिक्लेरेशन में अनुच्छेद-370 और 35 ए की बहाली के साथ ही जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा मांगा गया है. सहयोगी दलों के सबसे सीनियर नेता होने के नाते फारूक अब्दुल्ला को इसका अध्यक्ष बनाया गया है.

इनमें अब्दुल्ला की अध्यक्षता वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस, महबूबा मुफ्ती की अगुआई वाली पीडीपी के अलावा सज्जाद गनी लोन की पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस, जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट और माकपा की स्थानीय इकाई शामिल है.

आज भाजपा इन्हें गुपकर गैंग कहकर संबोधित करती है. पीडीपी नेता महबूबा मुफ़्ती ने भाजपा के विरोध पर कहा भी था कि जब भाजपा से गठबंधन करो तो ठीक और अगर दूसरों से कर लो तो भाजपा को वह पार्टी ग़लत दिखने लगती हैं.

भाजपा और शिवसेना

36 साल पुराना यह गठबंधन भाजपा की चालाकियों की वजह से टूट गया. प्रधानमंत्री मोदी ने 2019 के विधानसभा चुनाव से पूर्व कहा था कि शिवसेना के साथ भाजपा का गठबंधन राजनीति से परे है और मजबूत भारत की इच्छा से प्रेरित है.

हालांकि जब शिवसेना किसी भी कीमत पर सरकार न बना सके इसलिए भाजपा ने पहले राज्यपाल के साथ मिलकर आनन-फानन में फडणवीस का शपथ ग्रहण करवा दिया गया, फिर राष्ट्रपति शासन लगवा दिया गया. अब जब वहां पर कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की मिलीजुली सरकार बन गई है तो भाजपा के बोल बदल गए.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)