सागर सरहदी: हक़-ए- बंदगी… अदा कर चले

स्मृति शेष: प्रख्यात लेखक-फिल्मकार सागर सरहदी कभी विभाजन से संगत नहीं बैठा पाए. बंबई में बस जाने के बावजूद उनके अंदर का वह शरणार्थी लगातार अपने घर, अपनी जड़ों की तलाश में ही रहा.

/
मुंबई में अपने घर में सागर सरहदी. (साभार: वीडियोग्रैब/राज्यसभा टीवी)

स्मृति शेष: प्रख्यात लेखक-फिल्मकार सागर सरहदी कभी विभाजन से संगत नहीं बैठा पाए. बंबई में बस जाने के बावजूद उनके अंदर का वह शरणार्थी लगातार अपने घर, अपनी जड़ों की तलाश में ही रहा.

सागर सरहदी [जन्म: 1933-अवसान 2021] (फोटो साभार: इंस्टाग्राम/जैकी श्रॉफ)
सागर सरहदी. [जन्म: 1933-अवसान: 2021] (फोटो साभार: इंस्टाग्राम/जैकी श्रॉफ)
‘हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएंगे हम तुम को खबर होते तक’

उर्दू के ड्रामानिगार और कथाकार सागर सरहदी जिन्हें सिने-जगत में उनकी यादगार पटकथा और संवाद लेखन के लिए जाना जाता है, की ज़िंदगी को मिर्ज़ा ग़ालिब की इन पंक्तियों से समझा जा सकता है.

87 सालों की एक भरपूर ज़िंदगी, जिसने अपने फन से कलाकारों की न जाने कितनी पीढ़ियों को संवारा, उसे ही ज़िंदगी के ढलते सालों में जिस तगाफुल का, जिस दरकिनारी का सामना करना पड़ा, वह सिर्फ फिल्म-जगत की ही नहीं, हमारे समय के सांस्कृतिक संकट की ओर इशारा करती है.

जिस रचनात्मकता ने बाज़ार जैसी सार्थक फिल्म बनाई, उसे अपनी ही अन्य फिल्मों के लिए वितरक न मिलें, या जिनकी कहानियों को प्रकाशित करने के लिए प्रकाशक ही पैसे मांगे, उसके गुज़र जाने पर ही शायद, साहित्य और कला को उनके अवदान का मूल्य हमें समझ में आएगा.

बहरहाल, मौका सागर सरहदी की ज़िंदगी को, उनकी विरासत को सम्मान देने का है, तो जरूरी है कि हम इस एक व्यक्ति के भीतर छुपी हुई अनंत संभावनाओं को जाने और समझें.

अविभाजित भारत के पश्चिमोत्तर सीमाई प्रांत के एक छोटे-से गांव बाफ्फा (एबटाबाद) में जन्मे सागर (मूल नाम- गंगा सागर तलवार) जन्मजात विद्रोही थे. किताबों, पढ़ने का आकर्षण बचपन से ही था, इसीलिए रोज़मर्रा की ज़िंदगी के साज-बाज में मन न रमता.

प्रकृति की गोद में बसे इस गांव में बहते हुई दरिया-पहाड़ों के ऊंचे घेरों-लंबे दरख्तों में सागर, जिसने बचपन ही में अपनी मां को खोया था, वह ममत्व पाया था जिसकी कसक ताउम्र बनी रही. और इस प्रकृति ने ही शायद उनके लेखन के रुमानियत को अचेतन रूप से प्रभावित किया था.

सीमा पर बसे इस गांव में, ज़िंदगी अपने सहज प्रवाह में चलती जा रही थी कि अचानक बंटवारे के रूप में एक हादसा घटित हुआ. सन 1947 में हिंसा के उस भीषण दौर ने, जहां इंसान हर रिश्ते से निरपेक्ष हो कर एक वहशी पशु मात्र रह गया था, बाफ्फा के लोगों को भी किसी सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए विवश कर दिया.

सागर 12 वर्ष की छोटी उम्र में अपने परिवार के साथ पहले श्रीनगर और बाद में दिल्ली के शरणार्थी कैंप में पहुंचे. ज़िंदगी जो अब तक ज़िंदगी थी, उसे विभाजन के एक इशारे से मृत्युदंड-सा दे दिया गया. अपने विभिन्न साक्षात्कारों में सरहदी साहब ने अपने घरों से निकाल बाहर कर दिए जाने की नियति का ज़िक्र किया है:

‘आखिर वह कौन-सी ताकत है जो हमें इंसान से एक रिफ़्यूजी में बदल देती है. जो हमारी किस्मत का फैसला ले लेती है. जो हमें हमारे घरों से बेघर कर दर-दर भटकने के लिए छोड़ देती है.’

ऐसा लगता है मानो वह कभी विभाजन से आंतरिक स्तर पर अपनी संगत नहीं बैठा पाए. बंबई में बस जाने के बावजूद भी ऐसा लगता मानो उनके अंदर का वह शरणार्थी अब भी अपने घर, अपनी जड़ों की तलाश में था. इस टीस ने उनकी संवेदना को इस गहरे स्तर पर प्रभावित किया था कि न केवल उनके व्यक्तित्व में एक क्रोध और उबाल था, बल्कि उनकी लेखनी में भी छन-छनकर आ गया था.

बड़े भाई के साथ बंबई चले आने पर सागर के लिए, जीविका का प्रश्न लगातार ही बना रहा. लिखने-पढ़ने के लगाव ने हालांकि किसी भी नौकरी में उन्हें टिकने नहीं दिया क्योंकि स्वयं उन्हीं के शब्दों में, ‘मैं एक प्रोफेशनल लेखक था और सुबह 7 बजे से शाम के 7 बजे तक मुंबई की लोकल से सफर कर के दफ़्तर की नौकरी करने में मेरे अंदर के लेखक के लिए कोई ऊर्जा नहीं बचती थी, इसलिए मजबूरन अच्छी नौकरियों से भी इस्तीफा देना पड़ा.’

फिल्मों में जाने का उनका फैसला भी सिर्फ अच्छी आजीविका के प्रयास से जुड़ा हुआ था. फिल्मी दुनिया में अच्छा पैसा मिलने और उसकी चमक-दमक से प्रभावित होने की बात उन्होंने स्वीकार की थी, पर साथ ही ताउम्र यह मलाल भी उन्हें रहा कि अपने साहित्यिक लेखन का द्वार उन्होंने स्वयं अपने हाथों से बंद कर दिया.

मूल रूप से सागर उर्दू के लेखक थे, जिनके नाम कई मशहूर नाटक और कहानियां दर्ज़ थीं. शहीद भगत सिंह, भूखे भजन न होई गोपाला, हीर-रांझा, तन्हाई जैसे नाटकों से उन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली थी.

फिल्म कभी कभी (1976) का पोस्टर. (साभार: सिनेस्तान)
फिल्म कभी कभी (1976) का पोस्टर. (साभार: सिनेस्तान)

देखा जाए तो, सरहदी के लिए फिल्मों में संवाद-लेखन में सफलता भी इसलिए ही सहज रही क्योंकि उनकी असल पकड़ नाटकों के लिखने में थी. किस कलाकार को कितनी पंक्तियां देनी हैं, जिससे कि अभिनय प्रभावी बन सके, इस फन में वह माहिर थे.

हालांकि उन्हें उर्दू कहानियों की दृष्टि से भी याद किया जाना चाहिए, जो भले ही बहुतायत न लिखी गईं हों, पर प्रभाव में जबरदस्त हैं. आगे चलकर खयाल की दस्तक (1980) और आवाज़ों के मौसम (1989) नाम से उनके दो नाट्यसंग्रह भी प्रकाशित हुए.

बंबई में प्रगतिवादी लेखक संघ के संपर्क में आने पर उनके इस लेखकीय व्यक्तित्व को और धार मिली थी. उस समय के नामचीन प्रगतिवादी साहित्यकारों कैफ़ी आज़मी, ख़्वाजा अहमद अब्बास, सज्जाद ज़हीर, कृश्न चंदर के संपर्क में युवा सागर को न केवल प्रगतिवादी साहित्य को समझने का मौका मिला, बल्कि मार्क्सवाद और मनोविज्ञान जैसी अवधारणों को भी उन्होंने समझा.

इस तरह सागर के रचनात्मक व्यक्तित्व को जिस तरह के संस्कार मिले थे, उसने पढ़ते-लिखते रहने को ही ज़िंदगी के असली माने बना दिया. अपने एक साक्षात्कार में वो कहते हैं ‘जिस दिन पढ़ाई-लिखाई छोड़ दी, उस दिन मर जाऊंगा.’

पर फिल्मों के लिए लेखन को आजीविका बना लेने पर उर्दू अदब से उनका रिश्ता कमज़ोर पड़ गया. सिर्फ एक साहित्यकार होकर जीवन-यापन अगर आज के संदर्भों में असंभव है, तो उस वक़्त भी था. पर सागर इस बात को भी पूरी तरह से सही नहीं मानते थे.

उनके बकौल,

‘प्रेमचंद जो साहित्यिक दुनिया के खुदा थे, फिल्मों में लेखन के लिए आए थे, पर उनकी कहानी पर बनी फिल्म ने उन्हें इतना हतोत्साहित कर दिया कि वो वापस अपने साहित्य की दुनिया में चले गए. तमाम कठिनाइयों और संघर्षों के बावजूद भी प्रेमचंद मरते दम तक साहित्य लिखते रहे. पर मैं ये लड़ाई न लड़ सका. मैं फ़िल्मी दुनिया में ही सीमित रह गया. मेरे भीतर के उर्दू अफ़सानानिगार को मैंने मार दिया.’

पर तमाम व्यस्तताओं और सफलता के बावजूद उनके अंदर का वह प्रगतिवादी लेखक खुलकर सांस लेने के लिए छटपटाता रहा और शायद यही वजह है कि रोमांटिक फिल्मों से मिली प्रसिद्धि को उन्होंने अपनी संवेदनात्मकता पर छाने नहीं दिया. कई दफा उन्होंने अपने अंदर चल रहे इस द्वंद्व का खुलासा किया था.

‘फिल्म कभी-कभी में राखी की आंखों के लिए मैंने लिखा, ‘ये आंखें जहां देखती हैं, एक रिश्ता कायम कर लेती हैं…’ इसी तरह एक और फिल्म में रेखा के लिए लिखा ‘आपकी आंखों में आसमान झांकता है’…. अभिनेत्रियों की आंखों की सुंदरता पर जुमले लिखते हुए यह महसूस हुआ कि अब किसी और अभिनेत्री के लिए क्या लिखूंगा? क्या मैं यही लिखता रहूंगा? मैं, जो एक शरणार्थी है, जिसने इतनी मुश्किल ज़िंदगी गुज़ारी है….कैंपों में दिन बिताए है, घरों को छोड़ा है…. वह हीरोइनों की आंखों के बारे में लिख रहा है.’

यह आत्मसंवाद वस्तुतः एक प्रकार का आत्मनिरीक्षण था, जिसने उनकी रचनात्मकता को झिंझोड़ा और ज़िंदगी और कला की सार्थकता के मायने तलाशने के लिए विवश किया. इसी के परिणामस्वरूप उन्होंने अंततः बाज़ार जैसी सफल फिल्म बनाई.

गरीबों, मजबूरों की बात करने के अपने सिद्धांतों को सागर सरहदी ने इस फिल्म के माध्यम से अमली जामा पहनाया. बाज़ार कहानी है एक ऐसे समाज की, जहां अमीरी-गरीबी ने संसाधनों पर अधिकार के अंतर ने इतनी खाई उत्पन्न कर दी है कि वह अब समाज नहीं बल्कि बाज़ार बन गया है. वह बाज़ार, जहां अमीर अपनी क्रयशक्ति के बल पर गरीबों की ज़िंदगियों को ही ख़रीद लेते हैं.

स्त्रियों के प्रति सरहदी साहब की दृष्टि सहानुभूति से भी अधिक उन्हें सशक्त रूप में देखने की थी. और वजह यह नहीं थी कि उन्होंने स्वयं विवाह नहीं किया था और इसलिए व्यावहारिकता से परे होकर, स्त्री-पुरुष संबंधों में एक ज़बानी समानता का आदर्श प्रचारित किया करते थे.

उनके जीवन में कई स्त्रियां आयीं और देखा जाये तो अपने समय से कहीं आगे सरहदी उस समय में विवाह के बगैर स्त्री के साथ परस्पर प्रेम और बराबरी का संबंध रखने का साहस रखते थे.

जिस रोमांस को अपने संवादों के द्वारा वह पर्दे पर उतारा करते थे, वह कल्पना नहीं बल्कि उनका खुद का अनुभूत सत्य था. वे कहते थे, ‘मैंने शादी नहीं की, पर प्रेम तो किया है और कई बार किया है, भरपूर किया है’, और देखा जाए तो क्या यह स्थिति उन अनगिनत स्त्री-पुरुष संबंधों के बर-अक्स एक ज़्यादा बेहतर स्थिति नहीं है, जो विवाह के नाम पर शुष्क और नीरस बन गए संबंधों को ढोते जाने की नियति से ग्रस्त हैं?

बाज़ार फिल्म के दृश्य में नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और सुप्रिया पाठक कपूर. (साभार: वीडियोग्रैब/शेमारू)
बाज़ार फिल्म के दृश्य में नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और सुप्रिया पाठक कपूर. (साभार: वीडियोग्रैब/शेमारू)

बहरहाल, स्त्री-मुक्ति की बात सिनेमा के माध्यम से उठाने वाले सरहदी कुछ गिने-चुने निर्देशकों में से थे, और खासकर एक ऐसे समय में जहां हिंदी फिल्मों में अभिनेता के ‘कल्ट’ को विकसित किया जा रहा था और अभिनेत्रियां बस कल्ट को विकसित करने का मूक यंत्र मात्र होती थीं. फिल्म बाज़ार में एक जगह सलीम (नसीरुद्दीन शाह), नज़मा (स्मिता पाटिल) से कहता है,

‘तुम इस मरते हुए समाज की गिरती हुई दीवार हो नज़मा. … जब तक जीने के लिए किसी मर्द का सहारा चाहिए, चाहे वह अख़्तर हो, चाहे सलीम, तुम खिलौना बनी रहोगी. जिस दिन बिना सहारे के जीना सीख लोगी, उस दिन तुम्हारी अपनी शख्सियत होगी. उस दिन तुम नज़मा होगी.’

बाद के सालों में सागर फिल्म-जगत में या यूं कह लें हमारे समाज की संवेदनात्मकता में आए परिवर्तनों से थोड़ा व्यथित जरूर रहते थे, पर निराश नहीं थे. तकनीक और मोबाइल के बढ़ते प्रचलन और युवा वर्ग की इसे लेकर अंधभक्ति पर भी वह चिंतित रहते थे.

मुंबई में अपने घर में सागर सरहदी. (साभार: वीडियोग्रैब/राज्यसभा टीवी)
मुंबई में अपने घर में सागर सरहदी. (साभार: वीडियोग्रैब/राज्यसभा टीवी)

वे महसूस करते थे कि तकनीक ने लोगों को किताबों, कला से दूर कर दिया है, जो अपने आस-पास के समाज और उसकी समस्याओं से एकदम ही अनभिज्ञ बना रहना चाहता है. यह वही सांस्कृतिक संकट है, जिसका कि ज़िक्र हम ऊपर कर चुके हैं, और जिसे सरहदी भी महसूस किया करते थे.

उनकी यह भाव-भूमि एक संवेदनशील सर्जक मन में उठने वाले तरंगों से भी अधिक हमारे समय के यथार्थ को दिखलाती है. सागर सरहदी के रूप में जिस व्यक्ति को हमने जानने की कोशिश इन पन्नों में की है, वह एक बात तो निश्चित ही सिद्ध करती है कि आशा और उम्मीद उनके व्यक्तित्व का हिस्सा थे, जिसकी पहचान हमें उनकी जिजीविषा में तो जो मिलती है, उनकी प्रगतिशील जड़ों में भी दिखती है:

‘मैं एक मार्क्सवादी हूं, और मुझे यह सिखाया गया है कि यह दुनिया अगर जीने के लिए एक अच्छी जगह नहीं है, तो इसे बेहतर करने के लिए हमें ही जुटना होगा.’

और यह बात आज उनके जाने के बाद भी उन सभी संवेदनशील मनुष्यों के लिए सही है, जो अपने मुआ’शरे, अपने आज को कल से बेहतर करने का ख़्वाब देखते हैं.

(अदिति भारद्वाज दिल्ली विश्वविद्यालय में शोधार्थी हैं.)

data cambodia data china data syd data taipei data hanoi data japan pkv bandarqq dominoqq data manila judi bola parlay mpo bandarqq judi bola euro 2024 pkv games data macau data sgp data macau data hk toto rtp bet sbobet sbobet pkv pkv pkv parlay judi bola parlay jadwal bola hari ini slot88 link slot thailand slot gacor pkv pkv bandarqq judi bola slot bca slot ovo slot dana slot bni judi bola sbobet parlay rtpbet mpo rtpbet rtpbet judi bola nexus slot akun demo judi bola judi bola pkv bandarqq sv388 casino online pkv judi bola pkv sbobet pkv bocoran admin riki slot bca slot bni slot server thailand nexus slot bocoran admin riki slot mania slot neo bank slot hoki nexus slot slot777 slot demo bocoran admin riki pkv slot depo 10k pkv pkv pkv pkv slot77 slot gacor slot server thailand slot88 slot77 mpo mpo pkv bandarqq pkv games pkv games pkv games Pkv Games Pkv Games BandarQQ/ pkv games dominoqq bandarqq pokerqq pkv pkv slot mahjong pkv games bandarqq slot77 slot thailand bocoran admin jarwo judi bola slot ovo slot dana depo 25 bonus 25 dominoqq pkv games idn poker bandarqq judi bola slot princes slot petir x500 slot thailand slot qris slot deposit shoppepay slot pragmatic slot princes slot petir x500 parlay deposit 25 bonus 25 slot thailand slot indonesia slot server luar slot kamboja pkv games pkv games bandarqq slot filipina depo 25 bonus 25 pkv games pkv games bandarqq dominoqq pkv games slot linkaja slot deposit bank slot x500 slot bonanza slot server international slot deposit bni slot bri slot mandiri slot x500 slot bonanza pkv games pkv games pkv games slot depo 10k bandarqq pkv games mpo slot mpo slot dominoqq judi bola starlight princess pkv games depo 25 bonus 25 dominoqq pkv games pkv games pkv games mpo slot pkv games pkv games pkv games bandarqq mpo slot slot77 slot pulsa pkv games bandarqq dominoqq pkv games pkv games bandarqq pkv games slot77 pkv games bandarqq bandarqq bandarqq dominoqq slot triofus slot triofus dominoqq dominoqq pkv games pkv games bandarqq slot triofus slot triofus slot triofus bandarqq bandarqq dominoqq pkv games dominoqq bandarqq pkv games dominoqq slot kamboja pg slot idn slot pkv games bandarqq pkv games pyramid slot bandarqq pkv games slot anti rungkad bandarqq depo 25 bonus 25 depo 50 bonus 50 kakek merah slot bandarqq pkv games pkv games bandarqq pkv games dominoqq pkv games pkv games pkv games slot deposit 5000 joker123 wso slot pkv games bandarqq pkv games poker qq pkv deposit pulsa tanpa potongan bandarqq slot ovo slot777 slot mpo slot777 online poker slot depo 10k slot deposit pulsa slot ovo bo bandarqq pkv games dominoqq pkv games sweet bonanza pkv games online slot bonus slot77 gacor pkv akun pro kamboja slot hoki judi bola parlay dominoqq pkv slot poker games hoki pkv games play pkv games qq bandarqq pkv mpo play slot77 gacor pkv qq bandarqq easy win daftar dominoqq pkv games qq pkv games gacor mpo play win dominoqq mpo slot tergacor mpo slot play slot deposit indosat slot 10k alternatif slot77 pg soft dominoqq login bandarqq login pkv slot poker qq slot pulsa slot77 mpo slot bandarqq hoki bandarqq gacor pkv games mpo slot mix parlay bandarqq login bandarqq daftar dominoqq pkv games login dominoqq mpo pkv games pkv games hoki pkv games gacor pkv games online bandarqq dominoqq daftar dominoqq pkv games resmi mpo bandarqq resmi slot indosat dominoqq login bandarqq hoki daftar pkv games slot bri login bandarqq pkv games resmi dominoqq resmi bandarqq resmi bandarqq akun id pro bandarqq pkv dominoqq pro pkv games pro poker qq id pro pkv games dominoqq slot pulsa 5000 pkvgames pkv pkv slot indosat pkv pkv pkv bandarqq deposit pulsa tanpa potongan slot bri slot bri win mpo baru slot pulsa gacor dominoqq winrate slot bonus akun pro thailand slot dana mpo play pkv games menang slot777 gacor mpo slot anti rungkat slot garansi pg slot bocoran slot jarwo slot depo 5k mpo slot gacor slot mpo slot depo 10k id pro bandarqq slot 5k situs slot77 slot bonus 100 bonus new member dominoqq bandarqq gacor 131 slot indosat bandarqq dominoqq slot pulsa pkv pkv games slot pulsa 5000