तख़्तापलट के बाद सैन्य शासन के ख़िलाफ़ म्यांमार में चल रहे प्रदर्शन के दौरान हुए संघर्ष में बीते 27 मार्च को तकरीबन 90 लोगों की मौत हो गई थी. लोकतंत्र समर्थक समूहों ने पूछा है कि दुनिया के सबसे महान लोकतंत्रों में से एक भारत ने क्यों जनरलों से हाथ मिलाने के लिए एक प्रतिनिधि क्यों भेजा, जिनके हाथ हमारे खून से लथपथ हैं.
नई दिल्ली: म्यांमार में सैन्य तख्तापलट होने के बाद बीते 27 मार्च को वहां की सेना ने कम से कम 90 नागरिकों की गोली मारकर हत्या कर दी, हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में यह संख्या 114 तक बताई जा रही है. उसी दिन भारत उन आठ देशों में शामिल था, जिन्होंने नयपिटाव में म्यांमार सशस्त्र बल दिवस परेड में भाग लेने के लिए एक प्रतिनिधि भेजा था.
बता दें कि बीते 1 फरवरी को सैन्य तख्तापलट के बाद से ही कई हफ्तों तक प्रदर्शन हुए और इसके जवाब में सेना ने घातक तरीके से उसे दबाने की कोशिश की. शनिवार को (27 मार्च) हुई खूनी कार्रवाई से पहले मृतकों की संख्या करीब 400 थी.
भारतीय अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की है कि भारतीय दूत ने इस व्यापक परेड में हिस्सा लिया था. इस दिन को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के खिलाफ बर्मीज नेशनल आर्मी के विद्रोह का 76वां सालगिरह मनाया जाता है.
तख्तापलट और मृत नागरिकों की संख्या बढ़ने के बावजूद म्यांमार सेना की आधिकारिक परेड में प्रतिनिधियों को भेजने वाले अन्य देशों- चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस और थाईलैंड और रूस, में से कोई भी पश्चिमी (पारंपरिक) या भारतीय मानकों द्वारा लोकतांत्रिक नहीं माना जाएगा.
रूस का प्रतिनिधित्व उसके उप रक्षा मंत्री ने किया, जबकि बाकी ने अपने स्थानीय दूतावास से प्रतिनिधि भेजे.
आधिकारिक परेड में विदेशी मिशनों की भागीदारी के बारे में खबरें आते ही सोशल मीडिया पर लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारी तत्काल इसकी निंदा करने लगे.
म्यांमार के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के एक वेरिफाइड ट्विटर अकाउंट ने पूछा, ‘दुनिया के सबसे महान लोकतंत्रों में से एक भारत ने क्यों जनरलों से हाथ मिलाने के लिए एक प्रतिनिधि भेजा, जिनके हाथ हमारे खून से लथपथ हैं.’
Indian embassy in Myanmar sent their military attaché to the military junta’s ‘armed forces day’ ceremony. India is one of the greatest democracies in the world. Why do you shake hands with the generals whose hands are soaked with our blood? @DrSJaishankar @MEAIndia @PMOIndia
— Civil Disobedience Movement (@cvdom2021) March 27, 2021
भारतीय अधिकारियों ने द वायर को बताया कि अमेरिका म्यांमार के सशस्त्र बल दिवस परेड में शामिल नहीं होने के लिए देशों पर दबाव डाल रहा था.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, परेड में सीनियर जनरल मिन आंग ह्लाइंग ने दोहराया कि चुनाव होंगे, हालांकि उन्होंने कोई समयसीमा नहीं दी.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी टीवी पर एक लाइव प्रसारण के दौरान उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र की रक्षा के लिए सेना पूरे देश से हाथ मिलाना चाहती है. मांग मनवाने के लिए स्थिरता और सुरक्षा को प्रभावित करने वाले हिंसात्मक कार्य अनुचित हैं.’
पश्चिमी राजनयिकों और सैन्य नेताओं के टटमडाव (म्यांमार की सेना का पूरा नाम) के साथ बातचीत की ओर इशारा करते हुए भारतीय अधिकारियों ने इस सुझाव को अस्वीकार कर दिया कि परेड में भारत की उपस्थिति चिंताजनक थी.
द इरावड्डी की रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी के तख्तापलट के बाद शनिवार को सबसे अधिक लोगों की मौत हुई. म्यांमार के इस समाचार पोर्टल ने यहां के 14 राज्यों और क्षेत्रों में से दस में चार बच्चों सहित 102 लोगों की मौत दर्ज की.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने कहा कि एक दिन में सबसे अधिक लोगों की मौत का कारण बनने वाली कार्रवाई अस्वीकार्य थी. एकीकृत और दृढ़ अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया का आह्वान करते हुए गुतारेस ने कहा कि इस संकट का तत्काल समाधान खोजना महत्वपूर्ण है.
I am deeply shocked by the killing of dozens of civilians, including children & young people, by security forces in Myanmar today.
The continuing military crackdown is unacceptable and demands a firm, unified & resolute international response. https://t.co/qtnQaH5jvN
— António Guterres (@antonioguterres) March 27, 2021
गौरतलब है कि म्यांमार में सेना ने बीते एक फरवरी को तख्तापलट कर आंग सान सू ची और अन्य नेताओं को नजरबंद करते हुए देश की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी.
म्यांमार की सेना ने एक साल के लिए देश का नियंत्रण अपने हाथ में लेते हुए कहा था कि उसने देश में नवंबर में हुए चुनावों में धोखाधड़ी की वजह से सत्ता कमांडर इन चीफ मिन आंग ह्लाइंग को सौंप दी है.
सेना का कहना है कि सू ची की निर्वाचित असैन्य सरकार को हटाने का एक कारण यह है कि वह व्यापक चुनावी अनियमितताओं के आरोपों की ठीक से जांच करने में विफल रहीं.
पिछले साल नवंबर में हुए चुनावों में सू ची की पार्टी ने संसद के निचले और ऊपरी सदन की कुल 476 सीटों में से 396 पर जीत दर्ज की थी, जो बहुमत के आंकड़े 322 से कहीं अधिक था, लेकिन 2008 में सेना द्वारा तैयार किए गए संविधान के तहत कुल सीटों में 25 प्रतिशत सीटें सेना को दी गई थीं.
इसके बाद से वहां बड़े स्तर पर विरोध-प्रदर्शन और हिंसा होने की खबरें आई हैं. शनिवार से पहले 14 मार्च सबसे हिंसक दिनों में से एक रहा था. इस दिन प्रदर्शनों के खिलाफ कार्रवाई में कम से कम 38 लोगों की मौत हुई.
तख्तापलट के बाद भारत ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में गहरी चिंता जताई थी और कानून और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखने की उम्मीद जताई थी.
अभी तक भारत ने म्यांमार की सेना द्वारा नागरिकों की हत्या की निंदा करते हुए कोई स्वतंत्र बयान जारी नहीं किया है, हालांकि यह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में एक सख्त रिजॉल्यूशन का हिस्सा है.
म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र महासभा की अनौपचारिक बैठक के दौरान भारत ने निर्वाचित सरकार की बहाली पर अपनी स्थिति दोहराई थी.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के दूत ने हिरासत में लिए गए सभी लोगों की रिहाई का आह्वान किया और उम्मीद जताई कि म्यांमार द्वारा पिछले दशकों में लोकतंत्र की दिशा में किए गए लाभ को कम नहीं किया जाना चाहिए.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के एक गैर-स्थायी सदस्य के रूप में भारत ने न्यूयॉर्क से जारी दस्तावेजों में भी अपना योगदान दिया. हालांकि पांचों स्थायी सदस्य, खासकर ब्रिटेन म्यांमार के खिलाफ बयान जारी करने में अधिक सक्रिय हैं.
अब तक यूएनएससी ने फरवरी में एक प्रेस बयान और इस महीने एक अध्यक्षीय बयान जारी किया है और इन दोनों को आम सहमति से अपनाया गया.
इसका मतलब यह है कि जबकि चीन और रूस ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि म्यांमार में पैदा हुआ मौजूदा घटनाक्रम देश का एक आंतरिक मामला है, इसके साथ ही उन्होंने यूएनएससी कार्यों का भी समर्थन किया है.
इसी तरह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने म्यांमार पर सर्वसम्मति से एक संकल्प अपनाया कि वह 1 फरवरी के सैन्य अधिग्रहण की कड़े शब्दों में निंदा करता है.
संयुक्त राष्ट्र के 47 सदस्यीय दल, जिसमें भारत, चीन, रूस, बांग्लादेश और पाकिस्तान शामिल हैं, ने भी म्यांमार के सशस्त्र सेनाओं और पुलिस द्वारा घातक बल के अंधाधुंध उपयोग सहित बल के विवेकहीन उपयोग की निंदा की थी.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)