2,500 से अधिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों ने की स्टेन स्वामी को ज़मानत देने की अपील

एल्गार परिषद मामले में अक्टूबर 2020 में हिरासत में लिए गए 84 वर्षीय स्टेन स्वामी पार्किंसन समेत कई बीमारियों से पीड़ित हैं. मेडिकल आधार पर उनकी ज़मानत याचिका ख़ारिज होने के विरोध में जारी बयान में कहा गया है कि वे उन हज़ारों विचाराधीन क़ैदियों के प्रतीक हैं जो सालों से यूएपीए के फ़र्ज़ी आरोपों में जेल में हैं.

अक्टूबर 2020 में सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा रांची में स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन. (फाइल फोटो: पीटीआई)

एल्गार परिषद मामले में अक्टूबर 2020 में हिरासत में लिए गए 84 वर्षीय स्टेन स्वामी पार्किंसन समेत कई बीमारियों से पीड़ित हैं. मेडिकल आधार पर उनकी ज़मानत याचिका ख़ारिज होने के विरोध में जारी बयान में कहा गया है कि वे उन हज़ारों विचाराधीन क़ैदियों के प्रतीक हैं जो सालों से यूएपीए के फ़र्ज़ी आरोपों में जेल में हैं.

सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा रांची में स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन. (फोटो: पीटीआई)
अक्टूबर 2020 में सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा रांची में स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: देश और दुनिया के 2,500 से सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, कलाकारों समेत कई लोगों ने 84 वर्षीय स्टेन स्वामी को ज़मानत देने की अपील की है, जिसे बीते 22 मार्च को एनआईए की अदालत द्वारा ख़ारिज कर दिया गया था.

वर्तमान में नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद 84 वर्षीय स्वामी को एनआईए ने पिछले साल आठ अक्टूबर को रांची से गिरफ्तार किया गया था.

भीमा कोरेगांव हिंसा-एल्गार परिषद मामले में उनके खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं समेत कठोर यूएपीए कानून के तहत भी मामला दर्ज किया गया है.

स्वामी के वकील के अनुसार, वह पार्किंसन की बीमारी से ग्रसित हैं और दोनों कान से नहीं सुन पाते, साथ ही उन्हें अन्य कई बीमारियां भी हैं. इसी आधार पर उनकी जमानत की अर्जी दी गई थी, जिसे एनआईए जज द्वारा ख़ारिज कर दिया गया.

इस याचिका के ख़ारिज होने के विरुद्ध और उन्हें तत्काल जमानत देने की अपील के साथ शिक्षाविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत ढाई झज्जर से अधिक लोगों ने एक वक्तव्य जारी किया है.

उन्होंने यह भी अपील की है कि यूएपीए को रद्द किया जाए, साथ ही न्याय व लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित व्यवस्था की पुनर्स्थापना हो, जिसमें जमानत मिलना कोई असामान्य बात न हो.

वक्तव्य जारी करने वालों में अनेक जाने-माने शिक्षाविद, सामाजिक कार्यकर्ता, कलाकार, फिल्म निर्माता, अर्थशास्त्री, जेसुइट्स, शोधकर्ता, पत्रकार, वकील, रिटायर्ड आईएएस अधिकारी और लेखक, जैसे एडमिरल लक्ष्मीनारायण रामदास, अलोका कुजूर, अल्पा शाह, आनंद पटवर्धन, अनुराधा तलवार, अपूर्वानंद, अरुणा रॉय, आशीष कोठारी, बेला भाटिया, भारत भूषण चौधरी, सेड्रिक प्रकाश, दयामनी बरला, एलीना होरो, फराह नकवी, जयति घोष, ज्यां द्रेज़, जॉन दयाल, कविता श्रीवास्तव, ललिता रामदास, नंदिता दास, निखिल डे, रीतिका खेड़ा, श्रीधर वी, सुशांतो मुखर्जी, वासवी किरो, वर्जिनियस खाखा, वजाहत हबीबुल्लाह, योगेंद्र यादव व अन्य अनेक नागरिक शामिल हैं.

बयान में कहा गया है, ‘एक ऐसे व्यक्ति, जो बुज़ुर्ग हैं, रोग ग्रसित हैं, ज़्यादा चलने-फिरने में सक्षम नहीं हैं एवं जिनका दूसरों के विरुद्ध हिंसा का कोई इतिहास नहीं है, इनकी जमानत खारिज होना सोच से परे हैं. स्टेन स्वामी उन हजारों विचाराधीन कैदियों के प्रतीक हैं, जो सालों से यूएपीए के फ़र्ज़ी आरोपों पर जेल में बंद हैं. वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों अथवा सरकार का विरोध करने वालों के विरुद्ध अक्सर यूएपीए को इस्तेमाल किया जाता है. यह सोचने की बात है कि यूएपीए मामलों में से नगण्य मामलों में ही दोष सिद्ध होता है.’

इस पूरे बयान को नीचे पढ़ा जा सकता है.

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हम, विभिन्न जन संगठन व सामाजिक कार्यकर्ता 22 मार्च 2021 को विशेष एनआईएअदालत द्वारा भीमा कोरेगांव मामले में स्टेन स्वामी की जमानत के आवेदन को ख़ारिज करने के निर्णय से हैरान हैं. उन्हें 8 अक्टूबर 2020 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वे जेल में हैं.

84 वर्षीय स्टेन स्वामी पार्किंसन रोग के मरीज़ हैं एवं उनके दोनों हाथों में अत्यधिक कंपन होता है. उन्हें गिलास से तरल पदार्थ पीने, नहाने एवं कपड़े धोने में कठिनाई होती है. उन्हें अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हैं.

उनकी गिरफ़्तारी से पहले वे अपना अधिकांश समय बगईचा, रांची में ही गुजारते थे. हालांकि 2018 से (पहले महाराष्ट्र पुलिस, बाद में एनआईए द्वारा) उन्हें लगातार भीमा कोरेगांव मामले में परेशान किया जा रहा था, लेकिन वे बगईचा में ही स्थायी रहे और  जांच में पूर्ण सहयोग किया.

एक ऐसे व्यक्ति, जो बुज़ुर्ग हैं, रोग ग्रसित हैं, ज़्यादा चलने-फिरने में सक्षम नहीं हैं एवं जिनका दूसरों के विरुद्ध हिंसा का कोई इतिहास नहीं है, इनकी जमानत खारिज होना सोच से परे हैं.

हम स्टेन को विशेषकर एक सज्जन, ईमानदार और जनहित में काम करने वाले इन्सान के रूप में जानते हैं. हमारे मन में उनके और उनके काम के लिए सर्वोच्च्च सम्मान है. वे दशकों से झारखंड में आदिवासियों व वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे हैं.

यह सोचने की बात है कि एक तरफ स्टेन स्वामी के लिए जन समर्थन लगातार बढ़ रहा है और दूसरी ओर न्यायालय ने उनके जमानत आवेदन को ‘समुदाय के भले’ के नाम पर ख़ारिज कर दिया है. बड़ी संख्या में आदिवासियों , ग्राम सभाओं, जन संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनीतिक दलों, नेताओं एवं झारखंड के मुख्यमंत्री ने भी स्टेन की गिरफ़्तारी की निंदा की है एवं उनके संघर्ष को समर्थन दिया है.

एनआईए द्वारा इकठ्ठा किए गए इलेक्ट्रॉनिक सबूतों के आधार पर बनी आर्सेनल रिपोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भीमा कोरेगांव मामले में आरोपित सामाजिक कार्यकर्ताओं के कंप्यूटर में फ़र्ज़ी दस्तावेज़ डाले गए थे. स्टेन ने खुद एनआईए द्वारा प्रस्तुत विभिन्न दस्तावेजों (जो तथाकथित रूप से उनके कंप्यूटर से पाए गए हैं) का पूर्ण खंडन किया था और कहा था कि ये दस्तावेज़ फ़र्ज़ी रूप से उनके कंप्यूटर में डाले गए है.

यह चिंताजनक है कि न्यायालय ने जमानत को ख़ारिज करने के दौरान इन बातों को दरकिनार किया.

स्टेन स्वामी उन हजारों विचाराधीन कैदियों के प्रतीक हैं जो सालों से यूएपीए के फ़र्ज़ी आरोपों पर जेल में बंद हैं. वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों अथवा सरकार का विरोध करने वालों के विरुद्ध अक्सर यूएपीए को इस्तेमाल किया जाता है.

यह सोचने की बात है कि यूएपीए मामलों में से नगण्य मामलों में ही दोष सिद्ध होता है (2016-19 में 2.2%, हाल में केंद्र सरकार द्वारा संसद में दिए जवाब के अनुसार) यह इंगित करता है कि यूएपीए के लगभग सभी मामले निराधार होते हैं.

हम अपील करते हैं कि स्टेन स्वामी को तत्काल जमानत दी जाए, यूएपीए को रद्द किया जाए एवं न्याय व लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित व्यवस्था की पुनः स्थापना हो जिसमें जमानत मिलना असामान्य बात न हो.

(हस्ताक्षरकर्ताओं की पूरी सूची और बयान को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)