जांच एजेंसियों द्वारा डिजिटल डिवाइस ज़ब्ती संबंधी नियम बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

अकादमिक जगत के कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि जब भी जांच एजेंसियां डिजिटल डिवाइस ज़ब्त करती हैं, तब कई वर्षों में तैयार किए गए उनके शोध कार्यों पर ख़तरा बढ़ जाता है, वे ख़राब हो जाते हैं या ग़ायब हो जाते हैं. याचिका में इस संबंध में दिशानिर्देश बनाने का आग्रह किया गया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/White Oak Cremation)

अकादमिक जगत के कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि जब भी जांच एजेंसियां डिजिटल डिवाइस ज़ब्त करती हैं, तब कई वर्षों में तैयार किए गए उनके शोध कार्यों पर ख़तरा बढ़ जाता है, वे ख़राब हो जाते हैं या ग़ायब हो जाते हैं. याचिका में इस संबंध में दिशानिर्देश बनाने का आग्रह किया गया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/White Oak Cremation)
(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/White Oak Cremation)

नई दिल्ली: अकादमिक जगत के कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र एवं राज्य सरकारों को निर्देश देने की मांग की है कि किस स्थिति में जांच एजेंसियां निजी डिजिटल एवं इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को जब्त करके संबंधित मामलों की जांच कर सकती हैं.

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ताओं में जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर और रिसर्चर राम रामास्वामी, पुणे के सावित्रिबाई फुले विश्वविद्यालय में प्रोफेसर सुजाता पटेल, अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में सांस्कृतिक अध्ययन के प्रोफेसर माधव प्रसाद, जामिया मिलिया इस्लामिया में आधुनिक भारतीय इतिहास के प्रोफेसर मुकुल केशवन और इकोलॉजिकल इकोनॉमिस्ट दीपक माल्घन शामिल हैं.

इन्होंने आरोप लगाया है कि हाल के दिनों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां जांच एजेंसियों ने मनमाने ढंग से इस तरह की सामग्री जब्त की है.

उन्होंने कहा कि चूंकि जांच के लिए सामग्री जुटाने के उद्देश्य से एजेंसियों को बेतहाशा शक्तियां मिली हुई हैं, इसलिए कई बार ऐसा होता है कि लोगों के लैपटॉप इत्यादि से उनके बेशकीमती रिसर्च खराब हो जाते हैं या गायब हो जाते हैं, जो कि संबंधित व्यक्ति के पूरे प्रोफेशनल करिअर के दौरान तैयार किया गया कार्य होता है.

उन्होंने कहा, ‘अकादमिक समुदाय अपने शोध और लेखन को इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल माध्यम में स्टोर करके रखता है, और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की जब्ती की स्थिति में अकादमिक या साहित्यिक कार्यों के नुकसान, विरूपण, हानि या समय से पहले जोखिम का खतरा काफी रहता है.’

विशेषज्ञों ने कहा कि इस मामले में अभी तक कोई भी प्रक्रिया, कानून या दिशानिर्देश तैयार नहीं किया गया है. इसे लेकर बीते 26 मार्च को जस्टिस संजय किशन कौल और आर. सुभाष रेड्डी की पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वैसे तो केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के पास इस आवश्यक प्रक्रिया के लिए कुछ नियम हैं, लेकिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के संबंध में अभी तक कोई दिशानिर्देश नहीं हैं.

जांच अधिकारियों द्वारा जब्त की चीजों की जानकारी देने के संबंध में याचिकाकर्ता ने कहा कि वे सिर्फ कंप्यूटर, लैपटॉप या फोन इत्यादि की जानकारी देते हैं, लेकिन वे सभी विशेष जानकारी मुहैया नहीं कराते हैं.

याचिकाकर्ता ने कहा कि जो भी चीजें जब्त की जाती हैं उसकी एक प्रति आरोपी के पास होनी चाहिए, इससे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में रखी गई सामग्री के साथ छेड़छाड़ नहीं किया जा सकेगा.

याचिका में भारत द्वारा अनुमोदित आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय करार के अनुच्छेद 15(1)(ग) का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि किसी भी वैज्ञानिक, साहित्यिक या कलात्मक कार्य में नैतिक और भौतिक हितों की रक्षा के लिए राज्यों की भी उतनी ही जिम्मेदारी बनती है.