एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र का मानना है कि सार्वजनिक उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी बेचने के बाद नौकरी में आरक्षण लागू करने की न तो जरूरत है और न ही यह क़ानूनी रूप से संभव है. हालांकि सरकार ने कहा है कि वे इन कंपनियों में एससी, एसटी, ओबीसी समेत पूर्ववर्ती कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने रणनीतिक विनिवेश के तहत सरकारी कंपनियों के संभावित खरीददारों को बताया है कि उन्हें नौकरी देने के लिए आरक्षण नियमों का पालन नहीं करना होगा.
लाइव मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र का मानना है कि इन कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी बेचने के बाद नौकरी में आरक्षण लागू करने की ‘न तो जरूरत है और न ही यह कानूनी रूप से संभव है.’
हालांकि इस मामले की जानकारी रखने वाले तीन व्यक्तियों ने नाम न लिखने की शर्त पर अखबार को बताया कि सरकार अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों समेत पूर्ववर्ती कर्मचारियों की सुरक्षा करेगी. केंद्र सरकार इस संबंध में खरीदी करने वाली कंपनी के साथ समझौता करेगी.
इन लोगों ने कहा कि सरकार शेयरधारक समझौते (एसएचए) में नियमों और शर्तों पर बातचीत करेगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि एक बार प्रबंधन नियंत्रण को निजी संस्था को हस्तांतरित करने के बाद यह पर्याप्त रूप से कर्मचारियों की सुरक्षा करता है. नौकरी में आरक्षण लागू करना वांछनीय या कानूनी रूप से संभव नहीं है.
मालूम हो कि केंद्र एवं राज्य सरकार की कंपनियों में अनुसूचित जाति के लिए 15 फीसदी, अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5 फीसदी और ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू करना अनिवार्य है.
रिपोर्ट में निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (डीआईपीएएम- दीपम) की एक फाइल का हवाला देते हुए कहा गया है कि एक कल्याणकारी राज्य में सरकार कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखना चाहती है. विभाग ने कहा कि रणनीतिक साझेदार को फर्म चलाने की स्वतंत्रता और कर्मचारियों के हितों के बीच सावधानीपूर्वक सामंजस्य बिठाना होगा. इन प्रतिस्पर्धी हितों को समझौते का मसौदा तैयार करने में सावधानीपूर्वक संतुलित करना होगा.
श्रम कानून विशेषज्ञ और लीगल कंसल्टेंसी फर्म अनहद लॉ की संस्थापक मानिषी पाठक ने कहा कि संविधान के तहत केवल सरकार ही आरक्षण का प्रावधान बना सकती है.
जनवरी 2020 में प्रकाशित हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने डीआईपीएएम से कहा था कि वे ‘नौकरियों में आरक्षण के मामलों का समाधान करें.’ ये निर्देश ऐसे समय पर आया था जब विभिन्न स्टेकहोल्डर्स ने सरकारी कंपनियों की बिक्री पर आरक्षण में आने वाले खतरों को लेकर चिंता जाहिर की थी.
इसके साथ ही रिपोर्ट में ये भी कहा गया था मौजूदा कानूनों के अनुसार रणनीतिक विनिवेश के तहत सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री के बाद आरक्षण नीतियों को लागू नहीं किया जा सकता है.
अगले वित्त वर्ष में देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी एलआईसी का आईपीओ लाने की सरकार की योजना है. इसके अलावा एयर इंडिया, बीपीसीएल, पवन हंस, बीईएमएल, एनआईएनल और शिपिंग कॉरपोरेशन के निजीकरण की प्रक्रिया भी दूसरे चरण में पहुंच गई है. इन उपक्रमों के लिए सरकार को कई रुचि पत्र मिले हैं.
मालूम हो कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक फरवरी को 2021-22 का बजट पेश करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों और एक बीमा कंपनी के निजीकरण का प्रस्ताव किया था. उन्होंने विनिवेश के तहत 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने की घोषणा की थी.
उन्होंने कहा था, ‘वर्ष 2021-22 में आईडीबीआई बैंक के अलावा हम दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और एक जनरल इंश्योरेंस कंपनी का निजीकरण करने का प्रस्ताव करते हैं.’
मोदी सरकार द्वारा सरकारी कंपनियों एवं बैंकों को बेचने के खिलाफ चौतरफा विरोध हो रहा है. पिछले महीने इसके खिलाफ यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस ने दो दिन के लिए देशव्यापी आंदोलन किया था.