कोरोना लॉकडाउन में बेरोज़गारी हुई भयावह, 11 करोड़ से अधिक लोगों ने किया मनरेगा में काम

बीते साल अप्रत्याशित तरीके से लागू लॉकडाउन के चलते करोड़ों दिहाड़ी मज़दूर अपने गांव लौटने को मजबूर हुए थे, जहां ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा उनकी आजीविका का एकमात्र ज़रिया बनी. आंकड़े दर्शाते हैं कि इससे पहले 2013-14 से 2019-20 के बीच 6.21 से 7.88 करोड़ लोगों ने मनरेगा के तहत रोज़गार पाया था.

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(फोटो: रॉयटर्स)

बीते साल अप्रत्याशित तरीके से लागू लॉकडाउन के चलते करोड़ों दिहाड़ी मज़दूर अपने गांव लौटने को मजबूर हुए थे, जहां ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा उनकी आजीविका का एकमात्र ज़रिया बनी. आंकड़े दर्शाते हैं कि इससे पहले 2013-14 से 2019-20 के बीच 6.21 से 7.88 करोड़ लोगों ने मनरेगा के तहत रोज़गार पाया था.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: कोरोना महामारी के बीच अनियोजित तरीके से लागू किए गए लॉकडाउन के चलते करोड़ों की संख्या में दिहाड़ी मजदूर अपने गांवों की ओर लौटने को मजबूर हुए थे. ऐसे में ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा उनकी आजीविका का एकमात्र जरिया बना.

आलम ये है कि साल 2006-07 में मनरेगा की शुरूआत के बाद से पहली बार ऐसा हुआ है कि इस योजना के तहत किसी एक वित्तीय वर्ष (2020-21) में 11 करोड़ से अधिक लोगों ने कार्य किया है. यह दर्शाता है कि लॉकडाउन के कारण बेरोजगारी काफी चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एक अप्रैल तक के आंकड़ों के मुताबिक 2020-21 में 11.17 करोड़ लोगों ने कार्य किया, जो 2019-20 में कार्य किए 7.88 करोड़ लोगों की तुलना में 41.75 फीसदी अधिक है.

उपलब्ध आंकड़े दर्शाते हैं कि इससे पहले 2013-14 से 2019-20 के बीच 6.21 करोड़ से 7.88 करोड़ लोगों ने मनरेगा के तहत रोजगार प्राप्त किया था.

वहीं यदि परिवारों के आंकड़ों को देखें तो वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान सबसे ज्यादा 7.54 करोड़ परिवारों ने मनरेगा में काम किया. यह 2019-20 में काम किए 5.48 करोड़ परिवारों की तुलना में 37.59 फीसदी अधिक है. इससे पहले सबसे ज्यादा परिवारों द्वारा मनरेगा में काम करने का रिकॉर्ड वर्ष 2010-11 का था, जब 5.5 करोड़ परिवारों ने काम किया था.

इसके साथ ही 2020-21 में सबसे ज्यादा 68.58 लाख परिवारों ने मनरेगा में 100 दिन के लिए काम किया, जो कि इससे पहले 2019-20 में 40.60 लाख परिवारों द्वारा पूरा किए गए 100 दिन के कार्य की तुलना में 68.91 फीसदी अधिक है.

कुल मिलाकर वित्त वर्ष 2020-21 में प्रति परिवार ने औसतन 51.51 दिन काम किया, जो कि इससे पहले 2019-20 में 48.4 दिन की तुलना में थोड़ा अधिक है.

मालूम हो कि कोरोना वायरस के चलते उत्पन्न हुए अप्रत्याशित संकट के समाधान के लिए मोदी सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत योजना’ के तहत मनरेगा योजना के बजट में 40,000 करोड़ रुपये की वृद्धि की थी.

इस तरह पूर्व में निर्धारित 61,500 करोड़ रुपये को मिलाकर मौजूदा वित्त वर्ष 2020-21 के लिए मनरेगा योजना का बढ़कर 1.01 लाख करोड़ रुपये हो गया. किसी वित्त वर्ष के लिए यह अब तक का सर्वाधिक मनरेगा बजट था.