पुदुचेरी में भाजपा द्वारा आधार के ज़रिये मतदाताओं के मोबाइल नंबर एकत्र करने के मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग को इसे आचार संहिता के उल्लंघन के तौर पर लेना चाहिए और पार्टी के ख़िलाफ़ अलग से आपराधिक जांच करनी चाहिए. कोर्ट ने यूआईडीएआई से भी जवाब तलब किया है.
चेन्नई: पुदुचेरी में स्थानीय मतदाताओं के मोबाइल नंबर एकत्र करने के मामले में भाजपा की पुदुचेरी इकाई के जवाब से असंतुष्ट मद्रास उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) और चुनाव आयोग से मामले की जांच करने को कहा.
डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) की पुदुचेरी इकाई के अध्यक्ष ए. आनंद की जनहित याचिका पर मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और जस्टिस सेंथिलकुमार राममूर्ति की पीठ ने सुनवाई की.
लाइव लॉ के अनुसार पीठ ने कहा, ‘प्रतिवादी नंबर छह (भाजपा) द्वारा आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर चलाया गया प्रचार अभियान गंभीर उल्लंघन मालूम देता है.
यूआईडीएआई द्वारा इन आरोपों से इनकार किया गया कि केंद्रशासित राज्य में 6 अप्रैल को होने वाले चुनाव के प्रचार के लिए पार्टी को कोई आधार डेटा, खास तौर पर मतदाताओं के मोबाइल नंबर दिए गए. पार्टी की पुदुचेरी इकाई के वकील ने कहा कि भाजपा ने कोई मोबाइल फोन डेटा नहीं चुराया.
उन्होंने कहा, ‘यह (डेटा) एक लंबी अवधि के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा इकठ्ठा किया गया था. कोरोना महामारी के दौरान मतदाताओं को बूथ स्तर के वॉट्सऐप ग्रुप्स से जुड़ने का एसएमएस भेजने के इस नए तरीके का इस्तेमाल किया गया था.’
हालांकि अदालत ने इस तर्क को नहीं माना और कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं का इस तरह नंबर जुटाना ‘पूरी तरह अस्वीकार्य’ है और यूआईडीएआई को इस बारे में जवाब देना चाहिए कि डेटा कैसे साझा हुआ.
अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि आदर्श आचार संहिता लगी हुई है, ऐसे में चुनाव आयोग की अनुमति के बिना कोई नया तरीका नहीं अपनाया जाना चाहिए.
अदालत ने कहा कि यूआईडीएआई को मामले को रफा-दफा करने का प्रयास किए बिना निजता को बनाए रखने में उल्लंघन के मामलों पर गौर करना चाहिए.
अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग को मुद्दे को बिना किसी रुकावट के आचार संहिता के उल्लंघन के तौर पर लेना चाहिए और पार्टी के खिलाफ अलग से आपराधिक जांच करनी चाहिए.
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि भाजपा के स्थानीय उम्मीदवारों ने यूआईडीएआई से मोबाइल नंबर हासिल किए और लक्षित प्रचार के लिए अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों के व्हाट्सऐप ग्रुप तैयार किये.
याचिकाकर्ता ने कहा कि चुनाव आयोग से जरूरी मंजूरी के बिना प्रचार के लिए यह तरीका अपनाकर अनुचित राजनीतिक फायदा उठाने के अलावा नागरिकों की निजता का भी गंभीर उल्लंघन हुआ.
पीठ ने कहा कि मामले का यह व्यापक पहलू राजनीति के शोर-शराबे में गुम नहीं होना चाहिए. पीठ मामले पर छह हफ्ते बाद 11 अप्रैल को चुनाव हो जाने के बाद सुनवाई करेगी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)