बिहार में 2007 से आधा दर्जन सरकारी विकास योजनाओं का पैसा एक निजी संस्था के खाते में ट्रांसफर किया जा रहा था. मामले के एक आरोपी की रविवार रात अस्पताल में संदिग्ध हालात में मौत.
बिहार में हुए सृजन घोटाले का राज उसी तरह परत दर परत खुल रहा है, जैसे मध्य प्रदेश के व्यापमं घोटाले में हुआ था. व्यापमं घोटाले में अंत तक यह नहीं पता चला कि यह कितने का घोटाला था, कितने लोग आरोपी थे और इस घोटाले के उजागर होने के बाद कितनी हत्याएं/मौतें हुईं. बिहार के सृजन घोटाला मामले में भी इसी तरह हर रोज़ नया खुलासा हो रहा है. इस घोटाले की राशि के बारे में मीडिया रिपोर्ट में अलग अलग दावा किया जा रहा है.
इसी बीच सृजन घोटाला मामले में अहम आरोपी महेश मंडल की रहस्यमय ढंग से भागलपुर मेडिकल कॉलेज में रविवार रात मौत हो गई. महेश मंडल बिहार के भागलपुर कल्याण विभाग में कार्यरत थे. सृजन घोटाले में संलिप्तता के आरोप में उन्हें 13 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था. 15 अगस्त को अदालत ने उन्हें जेल भेज दिया, जिसके बाद तबियत खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
मंडल के परिजनों का आरोप है कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने में जानबूझ कर लापरवाही बरती गई और उनकी मौत हो गई. मंडल की किडनी में समस्या थी और उन्हें डायबिटीज भी था.
दैनिक जागरण की एक ख़बर में कहा गया है कि मंडल मुंबई में अपनी किडनी का इलाज करा रहे थे और एक महीने में एयर टिकट पर ही डेढ़ से दो लाख रुपये खर्च करते थे.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, मंडल सरकार, बैंक और सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड नामक एनजीओ के बीच कड़ी का काम करते थे. वे एनजीओ की संस्थापक मनोरमा देवी को ओरिजिनल बैंक स्टेटमेंट मुहैया कराने में मदद करते थे. मंडल के बेटे शिव मंडल भागलपुर में जिला परिषद के सदस्य हैं और जदयू के जिला इकाई के अध्यक्ष हैं. पुलिस का दावा है कि मंडल ने पिछले 15 सालों में सृजन की ओर से कमीशन के रूप में 3 करोड़ रुपये लेने की बात कबूल की थी. बीती फरवरी में मनोरमा देवी की भी मौत हो चुकी है.
क्या है सृजन घोटाला
यह घोटाला एक एनजीओ, नेताओं, सरकारी विभागों और अधिकारियों के गठजोड़ की कहानी है. इसके तहत शहरी विकास के लिए भेजे गए पैसे को गैर-सरकारी संगठन के एकाउंट में पहुंचाया गया और वहां से बंदरबांट हुई.
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी छानबीन में पाया कि एक छोटा सा एनजीओ सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड भागलपुर जिला प्रशासन के आधा दर्जन सरकारी विकास योजनाओं का पैसा चोरी कर रहा था. यह सब अधिकारियों, बैंक कर्मियों और सृजन के सदस्यों द्वारा किया जा रहा था.
जैसा कि एफआइआर दर्ज हुई है, इस मामले में सरकारी खाते का पैसा सीधे सीधे निजी खाते में ट्रांसफर किया जा रहा था. अखबार हैरानी जताते हुए लिखता है कि क्यों और कैसे आॅडिटर्स ने सरकारी पैसे की इस ठगी को नजरअंदाज किया? इसके संरक्षक रहे 9 जिलाधिकारियों ने क्यों लाल झंडी नहीं दिखाई? कोआॅपरेटिव सोसाइटीज के रजिस्ट्रार आफिस भी संदेह के घेरे में है.
मनोरमा देवी ने 1993-94 में ‘सृजन महिला विकास सहयोग समिति’ शुरू की थी. 1996 में सृजन को सहकारिता विभाग में को-ऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में मान्यता मिल गई. को-ऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में सदस्य महिलाओं के पैसे जमा भी किए जाते थे और इस जमा पैसे पर उन्हें ब्याज दिया जाता था. यह संस्था तमाम महिलाओं को कर्ज भी देती थी.
खबरों के मुताबिक, 2007-2008 में सृजन को-ऑपरेटिव बैंक खुल गया. इसके बाद घोटाले का खेल शुरू हुआ. भागलपुर सरकारी खजाने का पैसा सृजन को-ऑपरेटिव बैंक के खाते में ट्रांसफर होता था, फिर इस पैसे को बाजार में लगाया जाता था. सृजन में स्वयं सहायता समूह के नाम पर कई फर्जी ग्रुप बने. उनके खाते खुले और इन खातों के माध्यम से नेताओं और अधिकारियों का कालाधन सफेद किया जाने लगा.
प्रभात खबर के मुताबिक, ‘सरकारी विभाग के बैंकर्स चेक या सामान्य चेक के पीछे ‘सृजन समिति’ की मुहर लगाते हुए मनोरमा देवी हस्ताक्षर कर देती थीं. इस तरह उस चेक का भुगतान सृजन के उसी बैंक में खुले खाते में हो जाते थे. जब भी कभी संबंधित विभाग को अपने खाते की विवरणी चाहिए होती थी, तो फर्जी प्रिंटर से प्रिंट करा कर विवरणी दे दी जाती थी. इस तरह विभागीय ऑडिट में भी अवैध निकासी पकड़ में नहीं आ पाती थी.’
लालू यादव का आरोप है कि इस सृजन नाम के एनजीओ से भाजपा के शाहनवाज हुसैन और गिरिराज सिंह जैसे नेताओं के घनिष्ठ संबंध रहे हैं. इस आरोप के समर्थन में लालू ने कुछ फोटो भी जारी किए, जिसमें ये दोनों नेता एजनीओ की संस्थापक मनोरमा देवी के साथ दिख रहे हैं.
कितने का घोटाला?
सृजन घोटाला परत दर परत सामने आ रहा है. शुरुआती रिपोर्ट्स में कहा गया कि यह घोटाला 502 करोड़ का है. फिर कहा गया कि सृजन घोटाला 700 करोड़ का है. एनडीटीवी और इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक यह घोटाला 700 करोड़ का है. एक स्थानीय पत्रकार ने कहा कि फिलहाल 1000 करोड़ के घोटाले के सबूत हैं लेकिन यह घोटाला और बड़ा है. लालू यादव ने इसे 1000 करोड़, फिर 15000 करोड़ और एक बार 20000 करोड़ का बताया. दैनिक जागरण ने हेडिंग लगाई है- 1264 करोड़ का हुआ घोटाला. इसके पहले जागरण ने क्रमश: 1000 और 700 करोड़ लिखा था. जनसत्ता अखबार ने शुरुआत में 343 करोड़ का बताया था, अब उसका आंकड़ा 900 करोड़ तक पहुंच गया है. एक भाषण के दौरान नीतीश कुमार ने इसे 250 करोड़ का घोटाला बताया. स्पष्ट है कि यह घोटाला वाकई कितने करोड़ का है, फिलहाल कोई नहीं जानता.
इस घोटाले का दायरा बढ़कर बांका तक पहुंच गया है. प्रभात खबर अखबार के मुताबिक, भू-अर्जन पदाधिकारी आदित्य नारायण झा ने बांका थाने में वर्ष 2009-13 के तत्कालीन भू-अर्जन पदाधिकारी जयश्री ठाकुर, प्रबंधक बैंक आॅफ बड़ौदा एवं इडियन बैंक भागलपुर व सृजन महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड के सभी पदाधिकारी व सबंधित कर्मी के ऊपर 83.10 करोड़ की सरकारी राशि के गबन की प्राथमिकी दर्ज कराई है. एसपी चंदन कुशवाहा ने बताया कि मामले की जांच के लिए एसआईटी टीम गठित कर दी गई है.’
नीतीश को चार साल से थी जानकारी: विपक्ष
बिहार में विपक्षी दल राजद सुप्रीमो लालू यादव का आरोप है कि यह घोटाला 15 हजार करोड़ से ज्यादा का है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की जानकारी में हुआ है.
लालू यादव ने इस मामले में एक के बाद कई ट्वीट करके सवाल उठाए हैं. उन्होंने लिखा, ‘2013 में तत्कालीन भागलपुर ज़िलाधिकारी ने ‘सृजन’ में घोटाले की शिकायत मिलने पर जांच का आदेश दिया था. लेकिन जांच रिपोर्ट आज तक नहीं आई.’
2006 से चल रहे #सृजन घोटाले मे नीतीश ने 11 साल तक कार्रवाई क्यो नहीं की?CM और वित्त मंत्री सुशील मोदी इस मामले के सीधे दोषी है। #NitishScam
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) August 20, 2017
अगले ट्वीट में लालू ने सवाल किया, ‘नीतीश बताएं, DM के आदेश के बाद भी जांच रिपोर्ट को क्यों दबाया गया? जांच रिपोर्ट को किसके इशारे पर दबाकर किसे फायदा पहुंचाया गया?’
उन्होंने पूछा, ‘2013 में सृजन घोटाले में जांच का आदेश देने वाले जिलाधिकारी का मुख्यमंत्री नीतीश ने तबादला क्यों किया? किस बात का डर था?…2006 से चल रहे सृजन घोटाले में नीतीश ने 11 साल तक कार्रवाई क्यो नहीं की? CM और वित्त मंत्री सुशील मोदी इस मामले के सीधे दोषी हैं.’
नीतीश बताएँ,DM के आदेश के बाद भी जाँच रिपोर्ट को क्यो दबाया गया? जाँच रिपोर्ट को किसके इशारे पर दबाकर किसे फायदा पहुँचाया गया? #NitishScam
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) August 20, 2017
लालू ने महेश मंडल की मौत पर भी ट्ववीट किया, ‘सृजन महाघोटाले में पहली मौत. 13 गिरफ़्तार उनमें से एक की मौत. मरने वाला भागलपुर में नीतीश की पार्टी के एक बहुत अमीर नेता का पिता था.’
तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया, ‘सृजन घोटाले में गिरफ़्तार जदयू नेता के पिता व आरोपी नाज़िर महेश मंडल की देर रात जेल में विषम परिस्थितियों में मौत. व्यापम से भी व्यापक है सृजन.’
सृजन घोटाले में गिरफ़्तार जदयू नेता के पिता व आरोपी नाज़िर महेश मंडल की देर रात जेल में विषम परिस्थितियों मे मौत।व्यापम से भी व्यापक है सृजन
— Tejashwi Yadav (@yadavtejashwi) August 21, 2017
लालू यादव ने कुछ जरूरी सवाल उठाते हुए नीतीश सरकार पर लीपापोती का आरोप लगाया है. हिंदुस्तान अखबार के मुताबिक, लालू यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आरोप लगाया है कि सृजन घोटाला 2006 से ही चल रहा था. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और वित्त मंत्री सुशील मोदी को इसकी आधिकारिक जानकारी थी. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. अब सीबीआई जांच के नाम पर जनता को बेवकूफ बना रहे हैं. लालू ने सवाल उठाया कि नीतीश कुमार कह रहे हैं कि घोटाले को उन्होंने ही उजागर किया, लेकिन आखिर यह घोटाला कर कौन रहा था?
दैनिक जागरण के अनुसार, लालू ने आरोप लगाया कि सामाजिक कार्यकर्ता संजीत कुमार ने 25 जुलाई, 2013 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर विस्तृत सूचना दी थी, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई. इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक ने भी 9 सितंबर, 2013 को सरकार को पत्र लिखकर संदेह जताया था और सृजन संस्था की जांच कराने को कहा था.
लालू यादव का आरोप है कि उस समय के भागलपुर के जिलाधिकारी ने भी सृजन की जांच का आदेश दिया था, लेकिन उनका तबादला कर दिया गया. आर्थिक अपराध शाखा ने अधिकारी जयश्री ठाकुर को सृजन घोटाले में लिप्त पाया था. करोड़ों रुपये जब्त किए गए थे, लेकिन पूरे मामले की जांच नहीं की गई. अधिकारी को बर्खास्त करने का अधिकार मुख्यमंत्री के पास था लेकिन उक्त अधिकारी की पोस्टिंग भागलपुर और बांका में ही होती रही.