भारतीय किसान यूनियन के मीडिया प्रभारी की ओर से जारी बयान में राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार के साथ बातचीत वहीं से बहाल होगी, जहां 22 जनवरी को ख़त्म हुई थी. मांग भी वहीं हैं कि तीनों काले क़ानूनों को निरस्त किया जाए और न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए नया क़ानून बनाया जाए.
गाजियाबाद: भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत ने बीते रविवार को कहा कि यदि सरकार आमंत्रित करती है तो नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान बातचीत के लिए तैयार हैं, बातचीत वहीं से शुरू होगी, जहां 22 जनवरी को खत्म हुई थी और मांगों में कोई बदलाव नहीं है.
उन्होंने कहा कि बातचीत की बहाली के लिए सरकार को प्रदर्शनकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संयुक्त किसान मोर्चा को इसके लिए निमंत्रण देना चाहिए.
बीकेयू मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र मलिक की ओर से जारी बयान में टिकैत ने कहा, ‘सरकार के साथ बातचीत वहीं से बहाल होगी, जहां 22 जनवरी को खत्म हुई थी. मांग भी वहीं हैं कि तीनों काले कानूनों को निरस्त किया जाए, न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने के लिए नया कानून बनाया जाए.’
टिकैत का बयान कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बीच हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज द्वारा केंद्रीय कृषि मंत्री से वार्ता बहाली के लिए की गई अपील के बाद आया है.
अनिल विज ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि वो केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ बातचीत फिर शुरू करें, क्योंकि कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा लगातार मंडरा रहा है.
देश भर में कोरोना वायरस के मामलों में बढ़ोतरी और हरियाणा में भी खराब होती स्थिति का हवाला देते हुए विज ने कहा कि वह दिल्ली से लगी राज्य की सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों के बारे में चिंतित हैं.
मंत्री ने कहा, ‘प्रदर्शनकारी किसानों को लेकर चिंता बनी हुई है, जो हरियाणा की सीमा पर बैठे हैं और मुझे उनको कोरोना से बचाना है.’ विज ने नौ अप्रैल को लिखे अपने पत्र में कहा, ‘एक चिंता यह भी है कि उनसे यह बीमारी पूरे राज्य में न फैल जाए.’
मालूम हो कि प्रदर्शनकारी किसानों और सरकार के बीच पिछली औपचारिक बातचीत बीते 22 जनवरी को हुई थी, लेकिन गतिरोध बरकरार था. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के लिए किसानों द्वारा निकाले गए ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से अब तक कोई बातचीत नहीं हो सकी है.
केंद्र सरकार के विवादित कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते साल 26 नवंबर से दिल्ली चलो मार्च के तहत किसानों ने अपना प्रदर्शन शुरू किया था. पंजाब और हरियाणा में दो दिनों के संघर्ष के बाद किसानों को दिल्ली की सीमा में प्रवेश की मंजूरी मिल गई थी.
केंद्र सरकार ने उन्हें दिल्ली के बुराड़ी मैदान में प्रदर्शन की अनुमति दी थी, लेकिन किसानों ने इस मैदान को खुली जेल बताते हुए यहां आने से इनकार करते हुए दिल्ली की तीनों सीमाओं- सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन शुरू किया था, जो आज भी जारी है.
केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते साल 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में चार महीने से अधिक समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.
अब तक प्रदर्शनकारी यूनियनों और सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन गतिरोध जारी है क्योंकि दोनों पक्ष अपने अपने रुख पर कायम हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)