तिरुवनंतपुरम स्थित पेप्पारा वन्यजीव अभ्यारण्य के एक हिस्से में एक ईसाई संप्रदाय द्वारा क्रॉस लगाकर तीर्थ स्थल बनाने की कोशिश की गई थी, जिसे लेकर ईसाईयों, वन अधिकारियों और आदिवासी समुदायों के बीच विवाद खड़ा हो गया था.
नई दिल्ली: केरल हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते शुक्रवार को अपने एक आदेश में कहा कि किसी भी धार्मिक समुदाय को आरक्षित वन भूमि पर तीर्थ करने की इजाजत नहीं है. यदि कोई ऐसा करता है, तो इस संबंध में कार्रवाई की जानी चाहिए.
लाइव लॉ के मुताबिक, जस्टिस एन. नागरेश की सदस्यता वाली पीठ ने कहा, ‘किसी भी धार्मिक समुदाय को आरक्षित वन भूमि के अंदर किसी भी स्थान पर तीर्थ करने की अनुमति नहीं है. यदि लोगों का कोई समूह जबरदस्ती आरक्षित वन क्षेत्र में घुसता है और गैर-कानूनी रूप से कोई संरचना तैयार कर देता है, तो वन अधिकारियों को कानून के अनुसार ऐसी संरचना को हटाना चाहिए.’
न्यायालय ने तिरुवनंतपुरम के विथुरा में पेप्पारा वन्यजीव अभ्यारण्य से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की.
नेय्यतिनकारा लैटिन डायोसेसी (एक ईसाई संप्रदाय), वन अधिकारियों, आदिवासी समयुदाय के लोगों और पर्यावरणविदों के बीच इस बात को लेकर विवाद खड़ा हो गया था कि डायोसिस और उनके अनुयायियों को वन क्षेत्र में तीर्थ यात्रा करने और बोनाकौड जंगल, जो पेप्पारा वन्यजीव अभ्यारण्य का हिस्सा है, में जगह-जगह क्रॉस लगाने की इजाजत दी जानी चाहिए या नहीं.
इसी को लेकर सभी पक्षों ने न्यायालय ने याचिका दायर की थी.
एक याचिकाकर्ता ने कहा कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 18 के तहत बोनाकौड वन क्षेत्र एक अधिसूचित वन्यजीव अभ्यारण्य है और इसे दीवान ऑफ त्रावनकोण के समय आरक्षित वन घोषित किया गया था.
उन्होंने दावा किया कि 2013-14 से ही कुछ अराजक तत्व जंगल में विभिन्न जगहों पर क्रॉस लगाकर इस पर अतिक्रमण करना चाह रहे हैं. वहीं अन्य दो याचिकाओं में दावा किया गया कि ये तीर्थ क्षेत्र है और यहां क्रॉस लगाना गलत नहीं है.
हालांकि कोर्ट ने पाया कि इस क्षेत्र को तीर्थ स्थल बताने के दावे को वन विभाग ने खारिज किया है. इसमें से एक याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वन क्षेत्र के नजदीक में हिंदू समुदाय के लोगों को मंदिर में पूजा करने की इजाजत दी जाती है.
इस पर कोर्ट ने हाईकोर्ट के डिवीजन पीठ के एक फैसले का हवाला दिया, जिसमें कोर्ट ने अगस्त्यर्कूदम (जहां पर मंदिर है) में प्रवेश पर बैन लगा दिया था और इस संबंध में सरकार को निर्देश दिया था.
इसी का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि किसी भी धार्मिक समुदाय को आरक्षित वन क्षेत्र में तीर्थ करने की इजाजत नहीं है.